सीरिया को दूसरा “ग़ाज़ा पट्टी” बनाने का इज़रायली मंसूबा
7 अक्टूबर के बाद इज़रायल द्वारा ग़ाज़ा पट्टी पर किए गए भीषण हमले न केवल फ़िलिस्तीनी जनता बल्कि पूरे अरब जगत के लिए एक कड़ी चेतावनी थे। इज़रायल ने हमास के ख़िलाफ़ कार्रवाई का बहाना बनाकर ग़ाज़ा में एक निर्मम युद्ध छेड़ा, जिसमें पच्चास हज़ार से ज़्यादा निर्दोष लोगों की जान गई और लाखों लोग बेघर हो गए। अब ऐसा लगता है कि, इज़रायल वही रणनीति सीरिया में भी अपनाने की तैयारी कर रहा है।
हाल के महीनों में इज़रायल ने सीरिया पर हमलों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा किया है। दमिश्क, हलब और अन्य महत्वपूर्ण सैन्य व नागरिक ठिकानों को बार-बार निशाना बनाया जा रहा है। इज़रायली सेना और उसके मीडिया प्रचारतंत्र का दावा है कि यह हमले ईरान समर्थित गुटों और हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ किए जा रहे हैं, लेकिन असल में यह सीरिया को अस्थिर करने और उसे पूरी तरह से तबाह करने की एक सोची-समझी साज़िश का हिस्सा है। इज़रायल की यह रणनीति केवल सैन्य रूप से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश है।
सीरिया को निशाना बनाने के पीछे की असली वजह
इज़रायल द्वारा सीरिया पर लगातार किए जा रहे हमलों के पीछे कई गहरी रणनीतिक और राजनीतिक वजहें हैं। ग़ाज़ा की तरह ही सीरिया को भी लगातार हमलों के ज़रिए तबाह किया जा रहा है। इज़रायल की कोशिश है कि ग़ाज़ा में किए गए अपने युद्ध अपराधों से ध्यान हटाकर सीरिया को नए युद्ध में झोंक दिया जाए। इससे एक तरफ़ ग़ाज़ा में उसके “नरसंहार” से ध्यान हटेगा और दूसरी तरफ़ सीरिया की स्थिति और ख़राब होगी।
1. ईरानी प्रभाव को कम करना
ईरान और सीरिया के बीच वर्षों से गहरे राजनीतिक और सैन्य संबंध रहे हैं। इज़रायल ईरान के इस प्रभाव को कमजोर करना चाहता है ताकि भविष्य में उसे लेबनान और अन्य पड़ोसी क्षेत्रों में किसी बड़े प्रतिरोध का सामना न करना पड़े। सीरिया में ईरान की मज़बूत सैन्य और आर्थिक उपस्थिति को देखते हुए, इज़रायल उसे अपने लिए एक बड़ा खतरा मानता है।
2. हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोधी ताक़तों को कमज़ोर करना
लेबनान की हिज़्बुल्लाह और अन्य फ़िलिस्तीनी व सीरियाई समर्थित प्रतिरोधी गुट इज़रायल के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हैं। ग़ाज़ा में हमास के ख़िलाफ़ अभियान शुरू करने के बाद इज़रायल ने यह महसूस किया कि हिज़्बुल्लाह जैसी ताक़तें भी उसके लिए उतनी ही घातक साबित हो सकती हैं। इसलिए इज़रायल अब सीरिया पर हमले कर प्रतिरोधी समूहों को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है।
3. अमेरिका और पश्चिमी समर्थन से मिली हरी झंडी
इज़रायल अपने इन आक्रामक क़दमों को बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ा रहा है क्योंकि उसे अमेरिका और पश्चिमी देशों का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। अमेरिका खुद सीरिया के कुछ हिस्सों पर अवैध रूप से कब्जा जमाए हुए है और इज़रायल को भी यह छूट दे रखी है कि वह सीरिया को तबाह करने की किसी भी हद तक जा सकता है।
4. अरब देशों को डराने की नीति
इज़रायल मध्य पूर्व के अन्य अरब देशों को यह स्पष्ट संदेश देना चाहता है कि अगर वे उसके ख़िलाफ़ खड़े होते हैं, तो उनका हश्र भी ग़ाज़ा और सीरिया जैसा होगा। यह नीति विशेष रूप से सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को डराने के लिए बनाई गई है, ताकि वे फ़लस्तीनी मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी साध लें।
5. ग़ाज़ा में हो रहे युद्ध अपराधों से ध्यान हटाना
ग़ाज़ा में इज़रायल द्वारा किए जा रहे युद्ध अपराधों की वजह से पूरी दुनिया में उसकी आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र और कई अन्य संस्थाएं इज़रायल को युद्ध अपराधी मान चुकी हैं। ऐसे में, इज़रायल अब सीरिया को निशाना बनाकर एक नया मोर्चा खोलना चाहता है ताकि वैश्विक मीडिया का ध्यान ग़ाज़ा से हट जाए और उसकी बर्बरता की ओर किसी की निगाह न जाए।
क्या इज़रायल अपनी योजना में सफल होगा?
हालाँकि, इज़रायल के इस मंसूबे को क्षेत्रीय प्रतिरोधी ताक़तों ने भांप लिया है। सीरियाई सेना, हिज़्बुल्लाह और अन्य प्रतिरोधी गुट इज़रायल के इन हमलों का जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। इज़रायल जिस तरह से हमास को बहाना बनाकर ग़ाज़ा के बाद अब सीरिया में “नरसंहार” की योजना बना रहा है, वह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए एक गंभीर ख़तरा है। पश्चिमी देशों की चुप्पी और अरब देशों की निष्क्रियता इसे और बढ़ावा दे रही है। अगर इस योजना को रोका नहीं गया, तो पूरे मध्य पूर्व को एक और विनाशकारी युद्ध का सामना करना पड़ सकता है।
सीरिया और ग़ाज़ा के बीच अंतर
इज़रायल ने जिस तरह ग़ाज़ा में जनसंहार किया और वेस्ट बैंक में अब भी कर रहा है, वही स्थिति अब सीरिया में भी देखने को मिल रही है। हालाँकि, यहाँ कुछ महत्वपूर्ण भिन्नताएँ भी हैं। ग़ाज़ा पर हमला करने के लिए इज़रायल को बहुत हद तक अमेरिका और यूरोपीय देशों का सार्वजनिक समर्थन मिला, लेकिन सीरिया में उसकी स्थिति थोड़ी अलग है। यहाँ रूस की मौजूदगी और ईरान की सक्रिय भागीदारी इसे पूरी तरह से ग़ाज़ा जैसा नहीं बनने देगी।
हिज़्बुल्लाह और अन्य प्रतिरोधी ताक़तों की भागीदारी
इज़रायल यदि सीरिया में किसी बड़े सैन्य हमले की योजना बनाता है, तो हिज़्बुल्लाह और अन्य गुट तुरंत सक्रिय हो सकते हैं और इज़रायल के लिए एक नया मोर्चा खोल सकते हैं। इज़रायल की यह नीति केवल उसके सैन्य प्रभुत्व को बनाए रखने की नहीं, बल्कि पूरे मध्य पूर्व को अस्थिर करने की है। अगर वैश्विक समुदाय ने इसे समय रहते नहीं रोका, तो यह संघर्ष और अधिक भयानक रूप ले सकता है। सीरिया की जनता, उसकी सेना और क्षेत्रीय प्रतिरोधी गुट इस आक्रमण के ख़िलाफ़ तैयार हो रहे हैं। इज़रायल को यह समझना होगा कि मध्य पूर्व को युद्ध में धकेलने से उसे भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सीरिया में इज़रायली हमला, नेतन्याहू की हठधर्मी और क्रूरता
इज़रायल ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए सीरिया पर हमला किया है। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब नेतन्याहू सरकार ने क्षेत्र में अकारण हिंसा को बढ़ावा दिया हो। लगातार हो रहे इन हमलों से स्पष्ट है कि इज़रायल न केवल अपनी विस्तारवादी नीतियों पर अमल कर रहा है, बल्कि क्षेत्र में स्थिरता को भी नुकसान पहुँचा रहा है। इज़रायली हमलों के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि इज़रायल किसी भी कीमत पर अपनी सामरिक शक्ति को मजबूत बनाए रखना चाहता है। वह नहीं चाहता कि कोई भी देश, विशेष रूप से ईरान या सीरिया, क्षेत्र में प्रभावी भूमिका निभाए।
नेतन्याहू की हठधर्मी पर अंतरराष्ट्रीय चुप्पी
नेतन्याहू सरकार अपनी आक्रामक नीतियों के लिए कुख्यात है। ग़ाज़ा में नरसंहार से लेकर सीरिया में हमलों तक, नेतन्याहू का रवैया हमेशा से ही क्रूर और निरंकुश रहा है। बावजूद इसके, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिलती। पश्चिमी देश, खासतौर पर अमेरिका, इज़रायल की इन नीतियों को पूरी तरह समर्थन देते हैं, जिससे उसे खुली छूट मिलती है।
सीरिया के लिए बढ़ती चुनौतियाँ
सीरिया पिछले एक दशक से अधिक समय से युद्ध और संघर्ष की मार झेल रहा है। इज़रायली हमले न केवल सीरियाई संप्रभुता का उल्लंघन हैं, बल्कि पहले से ही संघर्षरत देश की मुश्किलों को और बढ़ा देते हैं। यह हमले सीरिया में स्थिरता बहाल करने के प्रयासों को कमजोर करने की कोशिश भी हैं। सीरिया पर बार-बार हो रहे इज़रायली हमले यह संकेत देते हैं कि यह संघर्ष केवल यहीं नहीं रुकेगा। इज़रायल की आक्रामकता से पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता और बढ़ सकती है। अगर क्षेत्रीय देशों ने इसका सामूहिक जवाब नहीं दिया, तो इज़रायल भविष्य में और भी अधिक दुस्साहस दिखा सकता है।
नेतन्याहू सरकार की हठधर्मी नीतियाँ न केवल इज़रायल को बल्कि पूरे मध्य पूर्व को एक खतरनाक मोड़ पर ले जा रही हैं। सीरिया पर हो रहे ये हमले अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सीधा उल्लंघन हैं, जिन पर वैश्विक संस्थाओं की चुप्पी एक गंभीर चिंता का विषय है। अब यह देखना होगा कि क्या कोई देश या संगठन इज़रायली आक्रामकता के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाता है, या फिर यह हिंसा इसी तरह चलती रहेगी।