ईरान पर इज़रायली हमला हास्यास्पद, सऊदी अरब ने हमले की निंदा की
जैसा कि, पहले से ही अंदाजा अंदाजा लगाया ज रहा था कि, 1 अक्टूबर को ईरान ने इज़रायल पर मिसाइल अटैक करके जिस तरह उसके ऑयरन डोम और उसकी सुरक्षा प्रणाली की पोल खोल कर रख दी थी, उसके बाद नेतन्याहू अपनी साख, और अपनी तानाशाही को बरक़रार रखने के लिए ईरान पर कोई मामूली सा हमला कर सकते हैं। ताकि उनकी इज़्ज़त भी बच जाए और ईरान का ज़्यादा नुकसान भी न हो, और ईरान उसके परिणाम स्वरुप कोई जवाबी कार्यवाई भी न करे।
इज़रायली हमले के नाकाम होने के बाद अल-जज़ीरा ने एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया कि “इज़रायली का ईरान पर हमला समाप्त हो गया है, और अब हम तेहरान से उम्मीद करते हैं कि वह जवाब न दे या तनाव को और न बढ़ाए।” इस बयान से यह साफ झलकता है कि इज़रायल के हमले को लेकर ईरान के दृढ़ और सशक्त रुख ने अवैध शासित राज्य इज़रायल को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।
अमेरिकी अधिकारी की यह अपील के साथ यह धमकी कि “अगर ईरान जवाब देगा, तो हम इज़रायल की पूरी तरह से रक्षा करेंगे,” दरअसल उनके भीतर की असुरक्षा और हार की स्वीकारोक्ति है। अमेरिकी अधिकारी ने भी माना कि “यह इज़रायल और ईरान के बीच सीधे हमलों का अंत होना चाहिए।” इस बयान से यहूदी अवैध शासन की कमजोरी और घबराहट का संकेत मिलता है। इससे पहले, खुद इज़रायली सेना ने भी अपनी कार्रवाई की समाप्ति की घोषणा करते हुए कहा था कि “अगर ईरान ने नए सिरे से तनाव बढ़ाने की शुरुआत की, तो हम जवाब देंगे।”
यह पहला अवसर है जब इज़रायल ने युद्ध शुरू करते ही युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी। यह बयान एक तरह से अपनी नाकामी छिपाने का प्रयास था। इज़रायली धमकियों के बीच, सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि इज़रायल का ईरान पर हमला इस्लामी गणराज्य ईरान के ‘वादा-ए-सादिक 2’ अभियान की तुलना में बेहद कमजोर और बेअसर था। यह इज़रायली शासन की रणनीतिक विफलता को उजागर करता है। ईरान की एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली ने इज़रायली हमलों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया और उन्हें नाकाम बना दिया।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि, इज़रायल हमेशा ईरान को हमले, और अंजाम भुगतने की धमकी देता रहा है, लेकिन उसके बावजूद ईरान में बम शेल्टर नाम की कोई चीज़ मौजूद नहीं है, जबकि इज़रायल में सैकड़ों जगह बम शेल्टर मौजूद हैं जहां लाखों लोग एक मामूली से पटाख़े की आवाज़ भी सुन कर भाग जाते हैं और वहां जाकर पनाह लेते हैं। ईरान में बम शेल्टर्स का न होना इस बात को सिद्ध करता है कि, ईरानी सरकार और ईरानी नागरिकों के नज़दीक ‘इज़रायल’ की कोई हैसियत नहीं है।
अगर इज़रायल का ऑयरन डोम और सुरक्षा प्रणाली इतनी मज़बूत और व्यवस्थित है तो उसे बम शेल्टर्स बनाने की आवश्यकता क्यों है? उसके नागरिकों को वहां पनाह क्यों लेनी पड़ती है ? सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि, जब उसे अपनी ताक़त और अपने पावर पर इतना घमंड है तो फिर वह युद्ध के समय फ़ौरन आपातकाल घोषित क्यों करता है? मीडिया समूह पर हमले क्यों करता है? क्यों इज़रायल अपने ऊपर होने वाले हमलों की वास्तविक जानकारी लीक नहीं होने देता? घटना स्थल पर मीडिया कर्मियों को क्यों नहीं जाने देता? उसे किस बात का डर है?
अगर इस सभी प्रश्नों का उत्तर तलाश किया जाए तो यह बात खुल कर सामने आ जाएगी कि, इज़रायल सिर्फ़ कमज़ोर और निहत्थे और आम नागरिकों पर हमले करता है। यह बात ग़ाज़ा और लेबनान पर होने वाले इज़रायली हमले के बाद खुल कर लोगों के सामने आ चुकी है, जहां उसने केवल मासूम बच्चों, औरतों, बुज़ुर्गों, और निहत्थे लोगों को निशाना बनाया है। एक साल ख़त्म हो जाने के बाद भी इज़रायल हमास का कुछ नहीं बिगाड़ सका है। इज़रायल अपने हताहतों की संख्या इस लिए भी छिपाता है कि, कहीं उसकी जनता और उसके सैनिक नेतन्याहू शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह न कर दें।
इसके अलावा दूसरा कारण यह है कि, इज़रायल नहीं चाहता कि, उसकी सुरक्षा ख़ामियों का किसी को पता चले। क्योंकि उसने अपनी ‘झूठी ताक़त’ और अपने ‘फ़र्ज़ी भौकाल’ पर ही अपनी अर्थव्यस्था और व्यापार का साम्राज्य खड़ा किया है। अगर उसका भौकाल ख़त्म हो गया तो बहुत से देश उसके साथ हथियारों की डील ख़त्म कर सकते हैं जो उसके लिए ईरान के मिसाइल अटैक से भी ज़्यादा घातक साबित हो सकता है। और वह नहीं चाहता कि, ऐसा कुछ हो। इज़रायल चाहता है कि, उसकी ताक़त का भ्रम बाक़ी रहे।
इज़रायली हमले के बाद ईरान में ज़िंदगी सामान्य है। सभी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय उड़ाने बहाल हैं। स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, हर रोज़ की तरह खुले हुए हैं। अगर मीडिया में ख़बर न आती तो किसी को यह भी पता नहीं चलता कि, ईरान पर किसी तरह का हमला हुआ है। इससे यह पता चलता है कि, इज़रायली हमला कितना मामूली था, जिसे ईरानी वायु सेना ने हवा में ही इंटरसेप्ट कर दिया।
सऊदी अरब ने हमले की कड़ी निंदा की
सऊदी अरब ने इज़रायली शासन द्वारा ईरान पर किए गए सैन्य हमले की निंदा करते हुए इसे ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय कानूनों व परंपराओं के खिलाफ बताया। रियाद ने क्षेत्रीय तनावों को समाप्त करने और संघर्षों के विस्तार को रोकने की अपनी स्थिर स्थिति पर जोर दिया और कहा कि यह तनाव क्षेत्र के देशों और जनता की सुरक्षा और स्थिरता को खतरे में डाल रहा है।
सऊदी अरब ने ईरान पर इज़रायली हमले की निंदा करके नेतन्याहू को भयभीत कर दिया है। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि, सऊदी अरब, इज़रायली हमले की निंदा करेगा। अब उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि ईरान की जवाबी कार्यवाई के साथ- साथ कहीं इस्लामिक देश भी हमारे ख़िलाफ़ एकजुट न हो जाएं। ईरान पर इज़रायली हमलों की कई देशों ने निंदा की है, लेकिन सबसे पहले जिस देश ने निंदा की है, वह सऊदी अरब है, और यह बात नेतन्याहू को परेशान कर सकती है। अब सबकी निगाह ईरान के अगले क़दम पर टिकी है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।