ग़ज़्ज़ा अस्पताल पर इज़रायल ने हमला नहीं किया है बल्कि बेगुनाहों का खुल्लम खुल्ला नरसंहार किया है

ग़ज़्ज़ा अस्पताल पर इज़रायल ने हमला नहीं किया है बल्कि बेगुनाहों का खुल्लम खुल्ला नरसंहार किया है

ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित अस्पताल पर बमबारी को लेकर इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) और हमास एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने रहे हैं। दूसरी तरफ फिलिस्तीन सरकार यानी महमूद अब्बास की सरकार ने इसके लिए बेंजामिन नेतन्याहू पर आरोप लगाए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि यूएन में फिलिस्तीन के राजदूत ने नेतन्याहू के खिलाफ सबूत को लेकर बड़ा बयान दिया है। महमूद अब्बास ने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन से बुधवार को होने वाली मुलाकात रद्द कर दी। महमूद अब्बास ने कहा कि इज़रायल ने ग़ज़्ज़ा के अस्पताल में नरसंहार किया है। इज़रायल ने सारी हदें पार कर ली हैं।

दूसरी तरफ़ इज़रायल ने इस हमले का ज़िम्मेदार हमास को ठहराया है। इज़रायल वार रूम ने इस हमले से इंकार किया है, इज़रायल ने कहा कि यह हमला इज़रायल की ओर से नहीं किया गया बल्कि हमास के मिसफायर का परिणाम है। जबकि हमास के पास इस तरह का कोई भी मीज़ाइल या बारूद मौजूद नहीं है जो एक बार के हमले में इतने लोगों को मौत के घाट उतार सके। इस तरह का बारूद अमेरिका और इज़रायल के पास मौजूद है। इज़रायल पर इस से पहले भी यह आरोप लगा है कि वह ग़ज़्ज़ा में ऐसे बमों का इस्तेमाल कर रहा है जिसका उपयोग अंतराष्ट्रीय क़ानून का उलंघन है।

आरोपों प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है। लेकिन इन सबके बीच फ़िलिस्तीनी सरकार ने इस हमले का ज़िम्मेदार इज़रायल को बताया है। यूएन में फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने नेतन्याहू के दावों का जोरदार खंडन करते हुए कहा कि “वह झूठा है, उसके डिजिटल प्रवक्ता ने ट्वीट किया कि इज़राइल ने यह सोचकर हमला किया कि इस अस्पताल के आसपास हमास का आधार (बेस) था, और फिर उसने वह ट्वीट हटा दिया। हमारे पास उस ट्वीट की कॉपी है… अब उसने फ़िलिस्तीनियों पर दोष मढ़ने की कोशिश करने के लिए कहानी बदल दी है।

इतना तो तय है कि इज़रायल इस हमले की ज़िम्मेदारी कभी भी अपने सिर नहीं लेगा बल्कि मीडिया द्वारा दुष्प्रचार करके इसका ज़िम्मेदार हमास को ठहराने की कोशिश करेगा। क्योंकि इज़रायल हमास के बीच जो युद्ध चल रहा है इज़रायल मीडिया द्वारा उसका ज़िम्मेदार हमास को ठहरा है। इज़रायल-हमास जंग की मीडिया इस समय एक तरफ़ा कवरेज कर रहा है इसका आरोप कई देशों के नेताओं ने लगाए हैं। पूरा मीडिया इस हमले का ज़िम्मेदार हमास को ठहरा रहा है। एक वीडियो भी वायरल हुई है जिसमे इज़रायल में एक महिला पत्रकार से कहा जा रहा कि अभी हम लाइव नहीं हैं , जैसे ही हम लाइव होंगे तुम्हें इस तरह की एक्टिंग करना है जैसे हमास ने हमला कर दिया है और तुम उस हमले से बहुत डरी हुई हो।

पूरा मीडिया, हमास और हिज़्बुल्लाह को आतंकी संगठन कह कर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, जबकि इन दोनों संगठनों को अमेरिका और इज़रायल के अलावा किसी देश ने आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है,और इन दोनों संगठनों ने इज़रायल के अलावा किसी भी देश में किसी भी तरह की कोई भी गतिविधि अंजाम नहीं दी है यहां तक कि अमेरिका को भी इन दोनों संगठनों से कोई नुक़सान नहीं पहुंचा है। इन दोनों संगठनों की लड़ाई केवल इज़रायल से फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर है। इज़रायल के लिए जो भी ख़तरा बनता है उसे वह आतंकवादी कहने लगता है।

प्रश्न यह उठता है की इस नरसंहार का ज़िम्मेदार कौन है? इज़रायल अस्पताल पर हुए हमले से, जिसमे 500 से ज़्यादा की मौत हो चुकी है इंकार कर रहा है रहा है जबकि फ़िलिस्तीनी सरकार ने यूएन में सबूत होने का दावा करते हुए इन मौतों का ज़िम्मेदार इज़रायल को ठहराया है। इज़रायल लाख इंकार करता रहे लेकिन इस वास्तविकता से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि फ़िलिस्तीन को इज़रायल ने खुली हुई जेल बना दिया है। फ़िलिस्तीनियों के जीने के अधिकार को इज़रायल ने अपने पास रखा है।

भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अनुसार इज़रायल अतिक्रमणकारी है। उसने फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है उसे अरबों की ज़मीन वापस करनी होगी।

क्या इससे कोई इंकार कर सकता है कि इज़रायल ने हमास से बदला लेने के नाम पर दस दिनों से ग़ज़्ज़ा को शमशान घाट बना रखा है। वास्तविकता तो यह है कि इज़रायल पिछले दस दिनों से लगातार ग़ज़्ज़ा में वहां के लोगों का खुल्लम खुल्ला नरसंहार कर रहा है। क्या यह ग़लत कि वह दस दिनों से ग़ज़्ज़ा में बमबारी कर रहा है? क्या यह ग़लत है कि ग़ज़्ज़ा की इमारतें मलबे का ढेर बन गई हैं जिसमे औरतों मर्दों और बच्चों की लाशें दबी हुई हैं, जिन्हें निकाला भी नहीं जा सका है? क्या यह भी ग़लत है कि उसने हमास के नाम पर दस दिनों से बिजली, पानी, ईंधन की सप्लाई बंद रखी है, जिसके कारण लोग भूखे प्यासे मर रहे हैं ?

क्या यह भी ग़लत है कि बिजली और ईंधन की सप्लाई बंद होने के कारण बहुत से घायलों और मरीज़ों ने दम तोड़ दिया? जो ज़िंदा बचे हैं क्या वह बिना उपचार के नहीं पड़े हैं ? क्या यह सब नरसंहार नहीं है ? अस्पताल पर होने वाला हमला और लाशों के ढेर यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि इज़रायल ग़ज़्ज़ा पर क़ब्ज़ा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। चाहे इसके लिए टैंकों को ज़िंदा लोगों को रौंदना ही क्यों न पड़े। पूरी दुनियां इस अत्याचार पर केवल बयान देकर मूकदर्शक बनी हुई है, यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट भी और ह्यूमन राइट की बात करने वाले भी !

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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