इज़रायल युद्ध-विराम के लिए गिड़गिड़ाने पर मजबूर हुआ: हिज़्बुल्लाह
लेबनान की संसद के सदस्य और हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ नेता इब्राहिम अल-मूसवी ने हाल ही में एक बयान में इज़रायल और हिज़्बुल्लाह के बीच हालिया तनाव और संघर्ष की स्थिति पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इज़रायली दुश्मन ने, प्रतिरोध समूह के खिलाफ बड़े-बड़े दावे किए थे और धमकियां दी थीं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि इज़रायल खुद युद्ध-विराम के लिए गिड़गिड़ाने पर मजबूर हो गया।
युद्ध-विराम की स्थिति और अप्रत्यक्ष वार्ता
अल-मूसवी ने जोर देकर कहा कि प्रतिरोध ने स्पष्ट संदेश दिया कि इज़रायली बस्तीवासी केवल अप्रत्यक्ष वार्ता और युद्ध-विराम के माध्यम से ही उत्तर की ओर लौट सकते हैं। यह बयान उस परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है जब हाल ही में इज़रायल ने लेबनान के दक्षिणी इलाकों में आक्रामक कार्रवाई की, जिसके जवाब में हिज़्बुल्लाह ने व्यापक हमले किए।
उन्होंने यह भी बताया कि इन वार्ताओं का स्वरूप अप्रत्यक्ष था और इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1701 को लागू करना था। यह प्रस्ताव 2006 में लेबनान और इज़रायल के बीच हुए संघर्ष के बाद लाया गया था, जो संघर्ष-विराम और स्थिरता बनाए रखने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
इज़रायल-अमेरिका के समझौतों पर प्रतिक्रिया
अल-मूसवी ने इज़रायल और अमेरिका के बीच किसी भी प्रकार के संभावित समझौते को लेबनान और हिज़्बुल्लाह के लिए महत्वहीन बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे समझौते प्रतिरोध की नीति को प्रभावित नहीं कर सकते। हिज़्बुल्लाह का हमेशा से यह रुख रहा है कि वह लेबनान की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे इसके लिए कितने भी बड़े दबाव का सामना करना पड़े।
हसन नसरुल्लाह के जनाज़े का समय और तारीख, उचित समय पर तय होंगी
इब्राहिम अल-मूसवी ने हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैय्यद हसन नसरुल्लाह के बारे में एक भावुक बयान भी दिया। उन्होंने कहा, “सैय्यद हसन नसरुल्लाह, जो उम्मत (इस्लामी समुदाय) के शहीदों के सैय्यद हैं, उनके जनाज़े का समय और तारीख उस समय तय की जाएगी जब परिस्थितियां उचित होंगी।” उनका यह बयान प्रतीकात्मक है, जो नसरुल्लाह की नेतृत्व क्षमता और प्रतिरोध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
प्रतिक्रिया और व्यापक प्रभाव
अल-मूसवी का यह बयान स्पष्ट करता है कि लेबनान और इज़रायल के बीच तनाव केवल सैन्य स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैचारिक और रणनीतिक लड़ाई भी है। हिज़्बुल्लाह ने यह दिखा दिया है कि वह अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करने में सक्षम है।
यह घटनाक्रम इज़रायल और हिज़्बुल्लाह के बीच शक्ति संतुलन में बदलाव का संकेत देता है, जहां हिज़्बुल्लाह की सैन्य और राजनीतिक स्थिति मजबूत बनी हुई है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की भूमिका क्या होगी।


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