क्या ईरान के सुप्रीम लीडर की हत्या की धमकी आतंकवाद नहीं ??
इन दिनों सोशल मीडिया पर ईरान के सर्वोच्च नेता (आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ) को दी जा रही धमकियों पर बहस तेज़ हो गई है। जनता के एक बड़े हिस्से ने इन धमकियों की कड़ी निंदा की है, जबकि कई मशहूर धर्म गुरुओं ने ऐसी हरकतों को “मोहारबा”, यानी ईश्वर और उसके दीन से युद्ध क़रार दिया है। लेकिन यहाँ पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि, क्या एक लोकतांत्रिक देश के सुप्रीम लीडर की हत्या की धमकी देना आतंकवाद की श्रेणी में नहीं आता? क्या अमेरिका और इज़रायल जैसे तथाकथित लोकतांत्रिक देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री द्वारा किसी देश के सर्वोच्च नेता की हत्या की धमकी देना सही है?
आतंकवाद की परिभाषा आज के वैश्विक विमर्श में सबसे विवादित मुद्दों में से एक है। जब एक राष्ट्र या संगठन किसी निर्दोष नागरिक पर हमला करता है, तो वह आतंकवाद कहलाता है, लेकिन जब कोई पश्चिमी शक्ति या उसके सहयोगी राष्ट्रों के नेताओं के खिलाफ खुलेआम धमकी देते हैं—तो उसे ‘आज़ादी की आवाज़’, ‘रणनीतिक बयान’, या ‘डिप्लोमैटिक प्रतिक्रिया’ कहा जाता है। सवाल यह है कि क्या ईरान के सुप्रीम लीडर की हत्या की धमकी, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्ष, एक प्रकार का आतंकवाद नहीं है?
ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई, केवल ईरान के सियासी लीडर नहीं, बल्कि पूरी दुनियां में मुसलमानों के धार्मिक नेता भी हैं। उनके करोड़ों अनुयायी केवल ईरान में नहीं, बल्कि पूरी दुनियां में पाए जाते हैं। वह ईरान में पूरे देश के संवैधानिक ढांचे के प्रमुख हैं। संविधान के अनुसार, वह सशस्त्र बलों के प्रमुख, न्यायपालिका के संरक्षक, और विदेश नीति के सर्वोच्च मार्गदर्शक होते हैं। ऐसे में उनकी हत्या की धमकी, केवल एक व्यक्ति के खिलाफ हमला नहीं, बल्कि एक संप्रभु राष्ट्र की राजनीतिक स्थिरता पर सीधा हमला है।
पिछले वर्षों में अमेरिकी प्रशासन से लेकर इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसी ‘मोसाद’ तक, कई बार सार्वजनिक रूप से यह कहा गया कि अगर ईरान ने अपनी क्षेत्रीय रणनीति या परमाणु कार्यक्रम में कोई “लक्ष्मण रेखा” पार की, तो उनके नेतृत्व को “ख़त्म” किया जा सकता है। 2020 में क़ासिम सुलेमानी की हत्या इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है। अब यदि ऐसी ही भाषा सर्वोच्च नेता के लिए इस्तेमाल की जाती है—जैसे कि, कुछ अमेरिकी सीनेटरों, या इज़रायली पीएम और अधिकारियों द्वारा, तो यह सीधा ‘Targeted State Terrorism’ नहीं तो और क्या है?
यदि यही धमकी किसी पश्चिमी नेता को दी जाती?
कल्पना कीजिए कि यदि किसी दूसरे देश के अधिकारी ने खुलेआम कहा होता कि “हम जो ट्रंप या नेतन्याहू की हत्या कर देंगे”, तो पूरा पश्चिम उस देश को ‘Rogue Nation’ घोषित कर देता। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक होती, प्रतिबंध लगाए जाते, और मीडिया में उस देश को आतंकवाद का केंद्र बताया जाता। लेकिन जब यही बात कोई पश्चिमी प्रतिनिधि ईरान के नेता के लिए कहता है, तो वैश्विक मंच पर मौन क्यों रहता है?
आतंकवाद की परिभाषा पर दोहरा मापदंड
संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवाद की परिभाषा में कहा है कि “ऐसा कोई भी कार्य जो डर, हिंसा या अस्थिरता के जरिए किसी राजनीतिक या धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाए, वह आतंकवाद है।” ऐसे में किसी राष्ट्र के सर्वोच्च नेता को धमकाना, उस देश के भीतर डर का वातावरण बनाना, उसकी सरकार को अस्थिर करना—क्या ये सभी तत्व आतंकवाद की परिभाषा में नहीं आते?
संयुक्त राष्ट्र चार्टर की धारा 2(4) के अनुसार, कोई भी देश किसी अन्य संप्रभु राष्ट्र की राजनीतिक स्वतंत्रता या क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ बल प्रयोग की धमकी नहीं दे सकता। सुप्रीम लीडर की हत्या की धमकी न केवल इस अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह उस वैश्विक व्यवस्था के विरुद्ध है जिसे पश्चिम स्वयं स्थापित करने का दावा करता है।
खुफिया एजेंसियों के पर्दे के पीछे के षड्यंत्र
मोसाद, सीआईए, और अन्य पश्चिमी एजेंसियों पर बार-बार आरोप लगते आए हैं कि वे ईरानी नेतृत्व को अस्थिर करने के लिए ‘Assassination Plots’ बनाते हैं। इन प्रयासों का पर्दाफाश ईरानी सुरक्षा एजेंसियां कई बार कर चुकी हैं। क्या इन प्रयासों को आतंकवादी गतिविधि की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए?
सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को चाहिए कि ऐसे मामलों में चुप्पी न साधें। आज अगर ईरान के लीडर को धमकी दी जा रही है, तो कल किसी और राष्ट्राध्यक्ष को भी टारगेट किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय कानून की रक्षा सबका दायित्व है। ईरान के सुप्रीम लीडर की हत्या की धमकी केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि एक सभ्यता, एक राष्ट्र, और एक संप्रभुता पर हमला है। इसे किसी भी प्रकार से नज़रअंदाज़ करना या ‘रणनीतिक भाषा’ कहना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मूल्यों का भी अपमान है। यदि किसी भी देश के नेता की हत्या की धमकी को हम ‘आतंकवाद’ नहीं मानते, तो हमें आतंकवाद की परिभाषा फिर से लिखनी होगी।
जब पश्चिमी मीडिया ईरान के सुप्रीम लीडर के खिलाफ धमकियों को सामान्य घटना की तरह रिपोर्ट करता है, लेकिन ईरानी नेतृत्व की प्रतिक्रिया को ‘आक्रामकता’ बताता है, तो यह एक प्रचार युद्ध का हिस्सा बन जाता है। यह मीडिया आतंकवाद को वैध बनाता है, जब वह हिंसा को राजनीतिक ‘उपकरण’ के रूप में पेश करता है। ईरान जब भी अपने नेता की सुरक्षा को लेकर सजग होता है, सुरक्षा घेरा बढ़ाता है या जवाबी बयान देता है, तो उसे ‘तानाशाही’ या ‘आक्रामकता’ कहा जाता है। जबकि कोई भी राष्ट्र अपने सर्वोच्च नेता की जान को खतरे में नहीं डाल सकता।
इतिहास गवाह है कि इमाम खुमैनी के दौर में भी, विशेषकर युद्ध के कठिन समय में, जब उनके कई साथी किसी फैसले के खिलाफ होते थे, इमाम ख़ुमैनी अपने निर्णय पर अडिग रहते थे, और बाद में वही फैसला सही साबित होता था। आज ईरानी सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई भी उसी निष्ठा, साहस और दूरदृष्टि के प्रतीक हैं। दुश्मनों की परेशानी यही है: वे जानते हैं कि जब तक ऐसा नेतृत्व मौजूद है, ईरान को न तो झुकाया जा सकता है और न ही खरीदा जा सकता है।
दूसरे देशों में, वे नेताओं को पैसों और पदों का लालच देकर अपने एजेंडे का हिस्सा बना लेते हैं, जैसे मिस्र के अनवर सादात, जो पहले इज़रायल विरोधी थे लेकिन बाद में उन्हीं के समर्थक बन बैठे। लेकिन ईरान के सुप्रीम लीडर को न डराया जा सकता है, न बहकाया जा सकता है। और यही बात ईरानी जनता को इस नेतृत्व से जोड़े रखती है।
यही वजह है कि दुश्मन अब या तो सुप्रीम लीडर की शख्सियत को निशाना बना रहे हैं, या उनकी जान के दुश्मन बन चुके हैं। वे “विलायत-ए-फ़क़ीह” की नींव को कमज़ोर करने की साज़िशें कर रहे हैं ताकि यह केवल एक प्रतीकात्मक और औपचारिक पद बनकर रह जाए।


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