इस्माईल हानिया: देशवासियों का चहेता और इज़रायल का दुश्मन

इस्माईल हानिया: देशवासियों का चहेता और इज़रायल का दुश्मन

ग़ाज़ा युद्ध के दौरान अपने भाइयों, बेटों और पोते-पोतियों के रूप में अपने परिवार के लगभग 60 सदस्यों को खोने के बाद भी इस्माईल हानिया वैश्विक स्तर पर दृढ़ता की मिसाल बनकर उभरे। हानिया का शुमार फिलिस्तीन की प्रतिरोध आंदोलन के उन नेताओं में होता था जो दिलेरी और बहादुरी की वजह से जनता में लोकप्रिय थे। मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात को उन्हें तेहरान में धोखे और बेहद कायराना तरीके से मार दिया गया। इस हत्या की जिम्मेदारी इज़रायल ने नहीं ली, मगर नेतन्याहू सरकार के एक मंत्री ने उनकी शहादत पर जश्न मनाकर यह संकेत दे दिया कि इज़रायल इस हमले के पीछे है।

62 साल की उम्र में शहीद होने वाले इस्माईल हानिया ने ग़ाज़ा के शाति शरणार्थी शिविर में एक ऐसे परिवार में जन्म लिया जो 1948 में फिलिस्तीन की जमीन पर इज़रायल के जबरन कब्जे की वजह से अस्कलान में अपना घर छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हुआ था। गाजा शहर में स्थित इस्लामिक यूनिवर्सिटी में अरबी साहित्य की पढ़ाई के दौरान ही हानिया ने फिलिस्तीन की आजादी के संघर्ष में भाग लेना शुरू कर दिया था। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उन्होंने 1983 में ‘इस्लामिक स्टूडेंट्स ब्लॉक’ में शामिल होकर बाद में हमास के गठन की राह प्रशस्त की।

इज़रायली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीन में दिसंबर 1987 में जब पहला इंतिफ़ादा आंदोलन शुरू हुआ तो हानिया उसमें शामिल युवा प्रदर्शनकारियों में सबसे आगे थे। इसी साल हमास की स्थापना हुई और हानिया इसके युवा सदस्यों में शामिल थे। अपनी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता के कारण उन्होंने संगठन में जल्द ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया और हमास के संस्थापक और आध्यात्मिक नेता शेख अहमद यासीन के करीबी सहयोगियों में शामिल हो गए।

इज़रायल ने उन्हें कम से कम तीन बार कैद किया। सबसे लंबी कैद तीन साल की थी, जिसके बाद 1992 में उन्हें अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी और महमूद अल-ज़हार जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं और हमास के सैकड़ों सदस्यों के साथ देश से निकालकर लेबनान भेज दिया गया था। एक साल बाद ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर हुए और हानिया की गाजा वापसी संभव हुई। यहाँ उन्हें इज़रायल की लंबी कैद के बाद 1997 में रिहा हुए हमास के आध्यात्मिक नेता शेख अहमद यासीन के करीब आने का मौका मिला। इस्माईल हानिया ने उनके डिप्टी के रूप में सेवाएं दीं। इस महत्वपूर्ण पद पर पहुँचने के बाद वे इज़रायल के निशाने पर आ गए क्योंकि तब तक इज़रायल ने फिलिस्तीनी नेतृत्व को चुन-चुन कर मारने की साजिश शुरू कर दी थी।

सितंबर 2003 में इज़रायल ने शेख अहमद यासीन और हानिया को हवाई हमले में मारने की कोशिश की लेकिन दोनों नेता बाल-बाल बच गए। जिस इमारत को तेल अवीव ने निशाना बनाया था, उससे वे दोनों कुछ सेकंड पहले ही निकल गए थे। कुछ ही महीनों बाद शेख यासीन को सुबह की नमाज के बाद मस्जिद से बाहर निकलते समय मार दिया गया और वे शहीद हो गए। अगले महीने तेल अवीव ने अब्दुल अज़ीज़ अल-रंतीसी को हेलीकॉप्टर से हमला कर मार दिया। इसके बाद हानिया हमास के वरिष्ठतम नेता बनकर उभरे। फिलिस्तीनी नेतृत्व में उनका कद 2006 में तब और ऊँचा हो गया जब हमास ने पहली बार चुनाव में हिस्सा लिया और महमूद अब्बास की फतह पार्टी को बुरी तरह से हराकर शानदार जीत हासिल की।

इस्माईल हानिया ने प्रधानमंत्री पद संभाला और फिलिस्तीनी अथॉरिटी में हमास की पहली सरकार बनी। चुनाव परिणाम और हमास के सत्ता में आने से अमेरिका और यूरोपीय देशों में खलबली मच गई। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हमास पर “आतंकवादी” संगठन का झूठा आरोप लगाकर फिलिस्तीनी अथॉरिटी की सहायता रोक दी, हालांकि हमास की जंग केवल इज़रायल से फिलिस्तीन की आज़ादी के लिए थी। हमास ने इज़रायल के अलावा किसी भी देश में किसी भी प्रकार की कोई ग़लत गतिविधि अंजाम नहीं दी है, जिसकी बुनियाद पर उस पर आतंकी समूह होने का आरोप लगाया जा सके।

हमास का प्रतिरोध और आंदोलन केवल क़ुद्स की आज़ादी के लिए है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते 2007 में फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस्माईल हानिया की सरकार को बर्खास्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 2007 में ग़ाज़ा में हमास की स्वतंत्र सरकार स्थापित हो गई। 2017 में इस्माईल हानिया ने खालिद मशाल की जगह ली और हमास की राजनीतिक इकाई के प्रमुख नियुक्त हुए। इसके बाद से वे कभी तुर्की, कभी कतर तो कभी काहिरा से कूटनीतिक मोर्चे पर हमास का नेतृत्व करते रहे और इस तरह हमास का अंतरराष्ट्रीय चेहरा बन गए।

7 अक्टूबर को ग़ाज़ा में युद्ध शुरू होने के बाद इज़रायल ने स्पष्ट कर दिया था कि हमास का नेतृत्व उसके निशाने पर है। युद्ध में इस्माईल हानिया अपने तीन बेटे, एक भाई और कई पोते-पोतियों को खो चुके थे। वे खुद तीन भाई थे जबकि उनकी 13 संतानें हैं जिनमें से तीन बेटे ग़ाज़ा युद्ध में शहीद हो चुके हैं। 2023 में उनके परिवार पर किए गए सबसे बड़े हमले में एक ही समय में 14 लोगों ने शहादत प्राप्त की, जिसमें उनके भाई भी शामिल थे। कुछ दिनों बाद एक और हमले में उन्होंने अपने पोते और सबसे बड़ी पोती को खो दिया। 10 अप्रैल 2024 के हमले में उन्होंने अपने तीन बेटे हाजिम, आमिर और मोहम्मद को खो दिया। हमास के अनुसार 7 अक्टूबर के बाद से हानिया परिवार के 60 से अधिक सदस्य शहीद हो चुके हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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