ईरान-सऊदी अरब के मधुर संबंध, इज़रायल के लिए काँटा
पश्चिम एशिया की बदलती भौगोलिक और राजनीतिक हकीकत अब किसी से छिपी नहीं है। ईरान और सऊदी अरब के बीच बीते वर्षों में जो नज़दीकियाँ बढ़ी हैं, वे केवल कूटनीतिक संधियों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि एक नए इस्लामी समीकरण की बुनियाद रख रही हैं – ऐसा समीकरण जो अमेरिका और इज़रायल के एकाधिकारवादी एजेंडे के लिए खुली चुनौती बन चुका है।पिछले कुछ वर्षों में ईरान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती दोस्ताना रिश्तों ने पश्चिमी एशिया (मध्य पूर्व) में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में, जब इज़रायल ने जून महीने में ईरान पर हमला किया, तब इन संबंधों ने और भी अधिक वैश्विक ध्यान आकर्षित किया।
13 जून को इज़रायल ने ईरान की ज़मीन पर बिना किसी उकसावे के हमला किया, जिसमें ईरान के उच्च रैंकिंग सैन्य कमांडर, परमाणु वैज्ञानिक और आम नागरिकों को निशाना बनाया गया। इसके कुछ ही दिनों बाद अमेरिका ने भी इस युद्ध में इज़रायल का साथ देते हुए ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया—जो कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का खुला उल्लंघन माना गया। यह वही ईरान नहीं था जिसे कभी कमजोर समझा जाता था। ईरान ने संयम के साथ मगर ज़बरदस्त पलटवार किया। तेल अवीव और हैफा जैसे शहरों पर मिसाइल हमले, क़तर के अल-उदीद अमेरिकी एयरबेस को निशाना बनाना – यह सब पश्चिम के लिए एक चेतावनी थी: ईरान अब सिर्फ़ रक्षा नहीं, नेतृत्व कर रहा है।
इसके जवाब में ईरान की सेना ने एक तेज़ और शक्तिशाली पलटवार किया, जिसमें इज़रायल के रणनीतिक शहरों जैसे तेल अवीव और हैफा पर मिसाइल हमले किए गए, साथ ही क़तर स्थित अल-उदीद अमेरिकी एयरबेस को भी निशाना बनाया गया—जो पश्चिमी एशिया में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है। 24 जून तक, ईरान के समन्वित हमलों ने अमेरिका और इज़रायल की आक्रामकता को लगभग पूरी तरह रोक दिया। ईरान की मिसाइल शक्ति की सटीकता और व्यापकता से इज़रायल और उसके पश्चिमी सहयोगी, विशेष रूप से अमेरिका, बुरी तरह चौंक गए।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने शुक्रवार को अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से लिखा:
“हालांकि इज़रायल के पास Arrow, David’s Sling और Iron Dome जैसे आधुनिक मल्टी-लेयर डिफेंस सिस्टम हैं, लेकिन युद्ध के अंत तक इज़रायल की इंटरसेप्टर मिसाइलें कम पड़ने लगी थीं। अगर ईरान ने कुछ और बड़ी मिसाइलों की बारिश की होती, तो इज़रायल के पास अपने टॉप-टियर Arrow-3 हथियार ख़त्म हो सकते थे।”
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने इज़रायल को सपोर्ट करने के लिए दो THAAD (Terminal High Altitude Area Defense) सिस्टम तैनात किए थे, लेकिन ये भी ईरानी मिसाइलों की बारिश को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। “THAAD ऑपरेटरों ने इज़रायली सिस्टम्स के साथ मिलकर 150 से ज़्यादा मिसाइलें दागीं, लेकिन ईरान की मिसाइलों की लहरें थमने का नाम नहीं ले रही थीं।”
स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि पेंटागन ने सऊदी अरब द्वारा खरीदे गए THAAD इंटरसेप्टर्स को इज़रायल भेजने पर विचार किया, लेकिन, “सऊदी अरब ने अमेरिका की यह मांग ठुकरा दी। मिडिल ईस्ट आई के अनुसार, अमेरिकी अधिकारियों ने पुष्टि की है कि वॉशिंगटन ने रियाद से अनुरोध किया था कि वह अपने THAAD इंटरसेप्टर्स इज़रायल को दे, लेकिन सऊदी अरब ने मना कर दिया।“सऊदी अरब का यह इनकार वॉशिंगटन के लिए बड़ा झटका है।
यह इनकार बताता है कि सऊदी अरब अब ईरान के साथ अपने संबंधों को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। 8 जुलाई को सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची से जेद्दाह में मुलाकात की। इस मुलाकात में MBS ने ईरान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ किसी भी तरह की सैन्य आक्रामकता की निंदा की और ईरान-सऊदी संबंधों में आ रहे सुधार का स्वागत किया।
अराक़ची ने भी सऊदी अरब की “ज़िम्मेदाराना स्थिति” की सराहना की और कहा कि ईरान अपने पड़ोसियों, खासकर सऊदी अरब के साथ अच्छे रिश्तों को प्राथमिकता देता है। उन्होंने सऊदी रक्षा मंत्री प्रिंस खालिद बिन सलमान और विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान से भी मुलाकात की, और रणनीतिक सहयोग को मज़बूत करने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता दोहराई।
चीन की मध्यस्थता बनी ईरान-सऊदी एकता की रीढ़
ईरान-सऊदी रिश्तों की यह गर्मजोशी 2023 में हुए चीन की मध्यस्थता वाले समझौते की देन है, जिसमें दोनों देशों ने कई सालों की कटुता के बाद फिर से कूटनीतिक रिश्ते बहाल किए थे। तब से चीन की सक्रिय भूमिका ने दोनों इस्लामी शक्तियों को नज़दीक लाने में अहम योगदान दिया है। अब जब हालिया ईरान-इज़रायल युद्ध की धूल बैठ रही है, तो ईरान और सऊदी अरब की मज़बूत होती साझेदारी पश्चिम एशिया में स्थिरता की एक बड़ी उम्मीद के रूप में उभर रही है।
दोनों देशों के बीच बढ़ता कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक सहयोग न सिर्फ क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदल रहा है, बल्कि इज़रायली आक्रामकता के चक्र को तोड़कर एक वैकल्पिक शांति मॉडल पेश कर रहा है। कभी एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे तेहरान और रियाद अब इस्लामी दुनिया को एकजुट करने और क्षेत्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और सहयोग पर आधारित एक नए युग की शुरुआत करते दिख रहे हैं।
इनका साझा संदेश साफ है:
“क्षेत्रीय शांति बाहरी हस्तक्षेप या सैन्यीकरण से नहीं, बल्कि इस्लामी एकता और साझी ज़िम्मेदारी से आएगी। एक अस्थिर समय में, ईरान और सऊदी अरब ने दिखाया है कि इस्लामी देश विभाजन से ऊपर उठकर न सिर्फ अपने लोगों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करते हुए आक्रांताओं का मुकाबला भी कर सकते हैं। यही रास्ता शायद पश्चिम एशिया के भविष्य को परिभाषित करेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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