इज़रायल में हम जेल में नहीं, बूचडख़ाने में बंद थे” रिहा हुए फ़िलिस्तीनियों की दर्दनाक कहानी
इज़रायल की कठोर क़ैद से रिहा हुए फ़िलिस्तीनियों ने अपनी-अपनी दर्दनाक दास्तानें सुनाईं, जो मानवाधिकारों के खुले उल्लंघन का सबूत पेश करती हैं। सोमवार को इज़रायली हिरासत से रिहा हुए लोगों ने बताया कि, जेल के अंदर उन्हें किस तरह की यातनाओं, अपमान और अमानवीय बर्ताव का सामना करना पड़ा।
एक फ़िलिस्तीनी क़ैदी अब्दुल्लाह अबू राफ़े ने कहा, “आज़ादी की खुशी तो बहुत है, लेकिन बदकिस्मती से हम किसी जेल में नहीं बल्कि एक क़साईखाने में बंद थे, जिसका नाम ‘ओफ़र जेल’ रखा गया है। वहाँ कैदियों के लिए गद्दे तक नहीं थे।”
इन्हीं में से एक थे मोहम्मद अल-खलीली, जो अल-जज़ीरा के संवाददाता इब्राहिम अल-खलीली के भाई हैं। मोहम्मद को बिना किसी आरोप या मुकदमे के 19 महीने तक इज़रायली जेल में रखा गया था। रिहाई के बाद उन्होंने अपनी पीड़ा को एक लंबी जद्दोजहद बताया और कहा, “हमें मारा गया, डराया गया, धमकाया गया। हमने बहुत कुछ सहा, लेकिन शुक्र है कि अब यह सब ख़त्म हो गया।”
मोहम्मद अल-खलीली उन फ़िलिस्तीनियों में शामिल थे जिन्हें सोमवार को इज़रायल ने रिहा किया। अल-जज़ीरा के प्रतिनिधि इब्राहिम अल-खलीली दक्षिण ग़ाज़ा गए ताकि 19 महीने बाद अपने भाई से मुलाकात कर सकें। दोनों भाइयों को पिछले साल ग़ाज़ा सिटी में इज़रायली ज़मीनी कार्रवाई के दौरान गिरफ़्तार किया गया था। इब्राहिम को कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया था, लेकिन मोहम्मद को लंबी हिरासत में रखा गया।
ग़ाज़ा में इस समय एकमात्र राहत की बात यह है कि अब वहाँ बमबारी, ड्रोन हमले और क़त्लेआम नहीं हो रहे, लेकिन लोगों के दिमाग में एक ही सवाल गूंज रहा है — “अब आगे क्या होगा?” युद्ध-विराम के बावजूद ग़ाज़ा के लाखों लोग बेघर और भूखे हैं। उनके पास न पैसा बचा है, न शिक्षा, न घर। ज़्यादातर आबादी अब खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर है।
अबू सैदू नाम के एक पूर्व कैदी ने बताया कि इज़रायली जेलों में क़ैदियों को अकल्पनीय यातनाएँ, भूख और मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। अबू सैदू ने बताया, “जेल में इज़रायली सैनिक हमसे कहते थे कि, तुम्हारे बच्चे मारे गए हैं, ग़ाज़ा तबाह हो गया है।” लेकिन कल रिहा होकर जब वह ग़ाज़ा पहुँचे तो उन्हें पता चला कि उनके बच्चे और परिवार के लोग ज़िंदा हैं। अपने घर लौटकर जब उन्होंने अपने बच्चों को देखा तो कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गए। उन्होंने कहा, “हम हर दिन एक बार नहीं, बल्कि हज़ार बार मरते थे।”


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