हमास ने युद्ध-विराम समझौता नहीं माना तो उनके नेताओं को क़तर से बाहर कर देंगे: क़तर
क़तर सरकार द्वारा हमास को युद्ध-विराम समझौते का पालन करने के लिए दी गई चेतावनी पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक बड़े हिस्से में तीव्र प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। क़तर ने घोषणा की है कि अगर हमास संघर्ष विराम का पालन नहीं करता, तो उसके शीर्ष नेताओं को क़तर से बाहर कर दिया जाएगा। इस फैसले को लेकर अरब और इस्लामी जगत में असंतोष व्याप्त है, जहां लोगों का मानना है कि क़तर का यह कदम फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के संघर्ष को कमजोर कर सकता है।
हमास समर्थकों का क़तर के निर्णय पर रोष
हमास समर्थकों का कहना है कि फिलिस्तीन की आज़ादी के लिए संघर्ष करना हमास का मौलिक अधिकार है और क़तर जैसे प्रमुख मुस्लिम देश का उन्हें धमकी देना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। कई मुस्लिम देशों के संगठनों और नेताओं ने बयान जारी कर कहा है कि क़तर को इज़रायल के दबाव में आकर हमास के नेताओं को अपने देश से बाहर निकालने की धमकी नहीं देनी चाहिए। उनका तर्क है कि इस्लामी जगत को फिलिस्तीन के संघर्ष का समर्थन करना चाहिए और इज़रायल के अन्यायपूर्ण और दमनकारी नीतियों का खुलकर विरोध करना चाहिए।
इस बीच, हमास प्रवक्ता ने स्पष्ट किया है कि क़तर का यह निर्णय फिलिस्तीन के स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। प्रवक्ता ने कहा कि फिलिस्तीन के लोगों का संघर्ष उनके अधिकारों और भूमि की रक्षा के लिए है, और क़तर जैसे देश को इस संघर्ष में उनके साथ खड़ा होना चाहिए, न कि इज़रायल के दबाव में आकर उन्हें धमकाना चाहिए।
इज़रायल की नीतियों पर उठे सवाल
दूसरी ओर, इज़रायल की नीतियों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि इज़रायल की कार्रवाइयाँ हमास पर नहीं बल्कि ग़ाज़ा पट्टी के निर्दोष नागरिकों पर भी असर डाल रही हैं। निरंतर हमले और आर्थिक प्रतिबंधों के कारण ग़ाज़ा के लोगों को जीवन की बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इज़रायल का सैन्य दृष्टिकोण फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बनता जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इज़रायल के अतिरेक और कठोर नीतियों ने अरब देशों के बीच असंतोष को और गहरा कर दिया है। यह माना जा रहा है कि इज़रायल की सरकार क़तर पर दबाव डालकर फिलिस्तीनी प्रतिरोध को कमजोर करना चाहती है, ताकि वह अपनी नीतियों को निर्बाध रूप से लागू कर सके।
अरब देशों में क़तर के फैसले की आलोचना
कई अरब देशों ने क़तर के इस कदम की आलोचना करते हुए इसे अरब एकता के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा है कि इस्लामी देशों का कर्तव्य है कि वे एकजुट होकर इज़रायल के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करें, न कि इस संघर्ष को और जटिल बनाएं। अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और अन्य अरब देशों के नेताओं ने कहा है कि क़तर के इस फैसले से इज़रायल को लाभ पहुंचेगा, जबकि इसका असर फिलिस्तीनी जनता के हक में नहीं जाएगा। फिलिस्तीन के समर्थक देशों का मानना है कि हमास का समर्थन करना फिलिस्तीनियों के आत्म-सम्मान और राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
फिलिस्तीन समर्थक समूहों ने क़तर के इस निर्णय पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि क़तर जैसे देशों को फिलिस्तीन के संघर्ष को समर्थन देना चाहिए। साथ ही, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की है कि वह इज़रायल की नीतियों पर सख्त रुख अपनाए और फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन करे। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील की जा रही है कि वे ग़ाज़ा पट्टी पर इज़रायल की नीतियों को लेकर जांच और कार्रवाई करें ताकि क्षेत्र में शांति और न्याय की स्थिति स्थापित हो सके।
इस घटनाक्रम ने क़तर और अन्य अरब देशों के लिए भी एक सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वह इज़रायल के दबाव के आगे झुकेंगे या अपने सिद्धांतों पर कायम रहकर फिलिस्तीन का समर्थन करेंगे। फिलिस्तीनी संगठनों और समर्थकों की अपेक्षा है कि क़तर अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेगा और अरब देशों में एकता बनाए रखते हुए फिलिस्तीन के हक में आवाज उठाएगा।