आयतुल्लाह ख़ामेनई का हज संदेश, पश्चिम की दुष्टता का सामना करे इस्लामी जगत

आयतुल्लाह ख़ामेनई का हज संदेश, पश्चिमी जगत की दुष्टता का सामना करे इस्लामी जगत ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह ख़ामेनई ने अपने हज संदेश में कहा है कि मुस्लिम जगत पिछली डेढ़ सदी में पश्चिमी जगत के लालच, हस्तक्षेप और दुष्टता के निशाने पर रहा है। इस्लामी जगत को इस जोर जबरदस्ती का मुकाबला करने के लिए उठ खड़ा होना होगा।

आयतुल्लाह खामेनई ने कहा कि इस्लामी ईरान के प्रतिरोध का सारा जोर इस बात पर है कि इस्लामी जगत इस्लामी सिद्धांतों पर अमल करते हुए अमेरिका और उसके साम्राज्यवादी सहयोगियों के हस्तक्षेप और दुष्टता के मुकाबले पर उठ खड़ा हो।

आयतुल्लाह खामेनई ने हज के अवसर पर दुनिया भर के मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा मेरे मुसलमान भाइयों और बहनों इस साल भी इस्लामी जगत हज की महान नेमत से महरूम रह गया है। इस साल भी लाखों मुसलमान हज और अल्लाह के घर के दीदार से वंचित रह गए हैं।

यह भी अतीत की तरह इस्लामी उम्मत का एक इम्तिहान है जिसके नतीजे में एक उज्जवल भविष्य इस्लामी जगत को मिल सकता है। अहम बात यह है कि हज अपने सच्चे और वास्तविक रूप में हर मुसलमान के दिलों जान में जिंदा रहे। कठिन हालात के कारण हम अगर हज अंजाम देने में सक्षम नहीं है तो उस का महान संदेश फीका न पड़ने पाए।

हज बहुत बड़े राज और रहस्य वाली इबादत है एक मुसलमान की व्यक्तिगत पहचान और समाज के निर्माण और दुनिया के सामने इस्लामी सुंदरताओं को पेश करने वाली इबादत। इस साल अल्लाह के घर तक पहुंच नहीं हैं लेकिन इस घर के मालिक पर ध्यान, उसका जिक्र, उसके सामने तौबा करने तक तो पहुंच है। मैदाने अराफात में पहुंचना संभव नहीं लेकिन अरफा के दिन की दुआ और अल्लाह की पहचान बढ़ाने वाली मुनाजात तो संभव है।

इस्लामी जगत एवं इस्लामी देशों, हमारे जवानों , विद्वानों और धर्म गुरु और बुद्धिजीवियों समेत विभिन्न राजनेताओं, दलों को शर्मनाक अतीत की भरपाई करनी चाहिए। हमें पश्चिमी जगत और साम्राज्यवादी ताकतों की जोर जबरदस्ती हस्तक्षेप और दुष्टता के मुकाबले पर डट जाना चाहिए।

इस्लामी गणतंत्र ईरान का प्रतिरोध जिस से साम्राज्यवादी दुनिया चिंतित एवं क्रोधित है, यही है। हमारा कहना ही यही है कि अमेरिका और अन्य हमलावर ताकतों के हस्तक्षेप और शैतानी हरकतों के मुकाबले में इस्लामी सिद्धांतों और शिक्षा पर भरोसा करके हमें इस्लामी दुनिया के भविष्य की बागडोर खुद अपने हाथ में लेनी चाहिए। हम इस्लाम के अनुयाई जिनके पास विशाल जनशक्ति, विशाल क्षेत्रफल, बेशुमार प्राकृतिक संसाधन एवं जीवित और जागृत राष्ट्र हैं।

हमें अपने संसाधनों, संभावनाओं और क्षमताओं के साथ अपने भविष्य का निर्धारण खुद करना चाहिए। पिछले 150 वर्षों में मुस्लिम राष्ट्रों ने अपने देशों और सरकारों के भाग्य में कोई भूमिका नहीं निभाई है। कुछ अपवादों को छोड़कर यह पूरी तरह पश्चिमी जगत पर निर्भर रहे हैं।

इस्लामी दुनिया का दुर्भाग्य, वैज्ञानिक पिछड़ापन एवं राजनीतिक निर्भरता समेत आर्थिक एवं सामाजिक अराजकता हमें एक महान कर्तव्य की ओर पुकारती है। अतिगृहित फिलिस्तीन हम से मदद की गुहार लगा रहा है। खून में डूबा मजलूम यमन हमारे दिलों को दुखी कर रहा है। अफगानिस्तान की दुर्दशा हमें चिंतित किए हुए है।

इराक के दुख भरे हालात, सीरिया और लेबनान में जारी हिंसा और अन्य मुस्लिम देश अमेरिका और उसके सहयोगियो की दुष्टता के कारण आग और खून में डूबे हुए हैं और यह हमारे जवानों की गैरत और हिम्मत को ललकार रहे हैं।

अकेला और नाकाबंदी का शिकार यमन! पिछले 7 वर्षों से लगातार अपने दुष्ट दुश्मन के युद्ध अपराधों, उत्पीड़न और अत्याचारों का सामना कर रहा है। वह देश में भोजन, दवा के अकाल और रहने की सुविधाओं के अकाल के बावजूद दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके रहा है और उन्हें अपने प्रतिरोध से चकित कर दिया है।

इराक में भी प्रतिरोधी दलों ने साफ और स्पष्ट शब्दों में अतिक्रमणकारी अमेरिका और उसकी कठपुतली आईएसआईएस को मार भगाया है और साफ कहा है कि इराक में अमेरिका की किसी भी दुष्टता और अतिक्रमण का सामना करने के लिए तैयार हैं।

भाइयों और बहनों!हमारा क्षेत्र और यहां तेजी से बदलते घटनाक्रम एक सीख हैं एक सबक है, एक ओर दुश्मन और उसकी दुष्टता के मुकाबले प्रतिरोध और संघर्ष से हासिल होने वाली ताकत और इज्जत है तो दूसरी तरफ दुश्मन के सामने घुटने टेकने और कमजोर पड़ने से मिलने वाली जिल्लत और अपमान।

अल्लाह का वादा सच्चा है जो अपनी राह में लड़ने वालों से किया है अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे कदम जमा देगा।

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