ग़ाज़ा के समर्थन में वैश्विक मार्च की शुरुआत
ग़ाज़ा के समर्थन में वैश्विक मार्च की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें भारत का एक प्रतिनिधिमंडल भी भाग लेगा। हालाँकि इज़रायल ने ग़ाज़ा फ़्रीडम फ़्लोटिला कोएलिशन के जहाज़ “मेडलीन” को हिरासत में लेकर उसमें सवार कार्यकर्ताओं को अग़वा कर लिया, फिर भी दुनिया भर से हज़ारों लोग मिस्र के क़ाहिरा के रास्ते रफ़ा बॉर्डर की ओर कूच कर रहे हैं।
ट्यूनीशिया से एक कारवां 9 जून को सड़क मार्ग से मिस्र के लिए रवाना होगा, जो क़ाहिरा से रफ़ा तक मार्च करेगा। ‘पल एक्शन्स’ संस्था के संस्थापक तब्बस ने मक्तूब को बताया, “हम पूरी तैयारी में हैं। केवल ट्यूनीशिया से अब तक 7000 से अधिक लोगों ने नाम दर्ज कराया है, जिनमें से 2500 ने भागीदारी की पुष्टि की है। हम उम्मीद करते हैं कि रफ़ा तक पहुँचते-पहुँचते अलग-अलग देशों से 10,000 से अधिक लोग इस शांति पूर्ण अभियान में शामिल होंगे।”
ट्यूनीशिया में ‘फ़िलिस्तीन एक्शन कोऑर्डिनेशन’ ने घोषणा की है कि ग़ाज़ा की घेराबंदी तोड़ने के लिए एक कारवां सूसा, सफ़ाक़्स और गाबेस शहरों से रवाना होगा और लीबिया तथा मिस्र होते हुए ग़ाज़ा पहुँचेगा। कोऑर्डिनेशन समूह ने कहा, “यह कारवां ग़ाज़ा के पीड़ित नागरिकों के साथ एकजुटता दर्शाएगा और मानवीय सहायता पहुँचाएगा।”
तब्बस ने कहा, “हम 9 जून को कारवां के साथ ट्यूनीशिया से रवाना होंगे और 13 जून तक क़ाहिरा, फिर अरिश और रफ़ा की ओर बढ़ेंगे। यह रास्ता क्षेत्रीय सहयोग, सुरक्षा और व्यवहारिकता के आधार पर तय किया गया है।” उन्होंने आगे कहा, “ग़ाज़ा के निर्दोष नागरिकों की पीड़ा और इस जारी नरसंहार ने हमें मूक दर्शक बने रहने से रोक दिया। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है, एक इंसान के रूप में, एक मुसलमान, एक ट्यूनीशियाई और एक अरब के रूप में। क्योंकि ख़ामोशी भी एक अपराध है।”
तब्बस ने कहा, “यह पहली बार है जब 52 से अधिक देशों के लोग, ग़ाज़ा की घेराबंदी को तोड़ने के उद्देश्य के लिए एक साथ आए हैं। । यह दर्शाता है कि फ़िलिस्तीन की पुकार राजनीति से ऊपर उठकर पूरी दुनिया को एकजुट करती है।”
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस यात्रा में ख़तरे हैं, खासकर यह देखते हुए कि इज़रायल का इतिहास शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर हमला करने का रहा है। “हमें खतरे का अंदाज़ा है। लेकिन यह एक शांतिपूर्ण, असशस्त्र नागरिक कारवां है। अगर इज़रायल ने हमला किया, तो उसकी क्रूरता और अधिक उजागर होगी। हमें डर नहीं है, हमारा ख़ून ग़ाज़ा के लोगों से कीमती नहीं है।”
इस मार्च में भारत से भी कई लोग भाग ले रहे हैं। मुंबई की रहने वाली सना सैयद, जो भारत से प्रतिनिधिमंडल के समन्वय में मदद कर रही हैं, ने इसे मानवता की ओर एक अहम कदम बताया। उन्होंने कहा, “7 अक्टूबर के बाद दुनिया भर में भ्रम और अफ़वाहों का माहौल था, लेकिन समय के साथ यह साफ़ हो गया कि इज़रायल मासूमों पर नरसंहार कर रहा है। मैं एक माँ हूं और कई बार इस पर रोई हूं। हमने स्क्रीन पर बच्चों को टुकड़ों में देखा है, उनके अंग बिना एनेस्थीसिया के काटे जाते देखे हैं।”


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