ग़ाज़ा से इज़रायल पर ताज़ा रॉकेट हमला
फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी की अंतरराष्ट्रीय टीम की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा पट्टी के पास स्थित यहूदी बस्तियों में फिर से सायरन बजने लगे हैं और एक रॉकेट दागे जाने की पुष्टि की गई है। इज़रायली सेना ने कहा है कि यह रॉकेट ग़ाज़ा से छोड़ा गया था और केसूफ़ीम के पास एक खुले इलाके में आकर गिरा। घटनास्थल के पास सायरन बजाए गए और लोगों में दहशत फैल गई। इज़रायली सेना ने हमले की पुष्टि की है। हालांकि, अभी तक इस हमले से जुड़ी अधिक जानकारी सामने नहीं आई है। विस्तृत समाचार जल्द साझा किया जाएगा।
गौरतलब है कि 7 अक्टूबर 2023 को “तूफ़ान अल-अक़्सा” नामक अभियान शुरू होने के बाद से, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध गुटों, ख़ासतौर पर हमास और इस्लामी जिहाद ने रॉकेट और मिसाइल हमलों को अपने संघर्ष का एक अहम हथियार बना लिया है।
युद्ध की शुरुआत को अब 20 महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इसके बावजूद ग़ाज़ा से इज़रायली इलाक़ों पर लगातार रॉकेट और मिसाइलें दागी जा रही हैं। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि नेतन्याहू सरकार के दावे के विपरीत, न तो प्रतिरोध की बुनियादी ढांचे पूरी तरह तबाह हुए हैं और न ही उनके राजनीतिक और सैन्य इरादे टूटे हैं।ग़ाज़ा में सुरंगें और मिसाइल निर्माण केंद्र तमाम भीषण बमबारी के बावजूद अब भी सक्रिय हैं।
इज़रायली दावे और जमीनी हकीकत में फर्क:
नेतन्याहू सरकार का दावा है कि उन्होंने ग़ाज़ा की “रॉकेट उत्पादन क्षमताओं” और “हमास की सुरंगों” को पूरी तरह नष्ट कर दिया है, लेकिन लगातार हो रहे रॉकेट हमले इस दावे को झुठलाते हैं। 20 महीनों बाद भी ग़ाज़ा से मिसाइल हमले यह संकेत देते हैं कि, रेज़िस्टेंस की टैक्नोलॉजी अभी भी चालू है।टनल नेटवर्क और निर्माण वर्कशॉप बचे हुए हैं या फिर फिर से स्थापित किए जा रहे हैं। स्थानीय समर्थन और हथियारों की आपूर्ति किसी ना किसी रूप में अब भी जारी है।
इज़रायल पर मनोवैज्ञानिक दबाव:
घरेलू मोर्चे पर इज़रायल सरकार की नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं। लंबे समय तक युद्ध चलने के बावजूद हमास और अन्य गुटों का सफाया नहीं हो पाया, जिससे सरकार की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। भले ही ग़ाज़ा में 70% से ज़्यादा इमारतें नष्ट हो चुकी हों, लेकिन प्रतिरोध की भावना और सैन्य क्षमताएं पूरी तरह ख़त्म नहीं हुईं। रॉकेट हमले इस बात के संकेत हैं कि “पूरी तबाही” की नीति नाकाम रही है।
ग़ाज़ा से एक भी रॉकेट का दागा जाना केवल एक हमला नहीं, बल्कि “रिज़िस्टेंस का एलान” है। 20 महीने के युद्ध और तबाही के बावजूद, ग़ाज़ा की ज़मीन अब भी ज़िंदा है। यह हमला दिखाता है कि तकनीकी, सामरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर इज़रायल अब भी पूरी तरह से नियंत्रण नहीं पा सका है। इस संघर्ष का अंत सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक समाधान से ही संभव होगा — और रॉकेट इसका प्रतीकात्मक जवाब हैं।


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