दोहा सम्मेलन को अरब दुनिया के लिए शर्मनाक बताया गया
इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) और अरब लीग के नेताओं की आपात बैठक सोमवार को अरब और इस्लामी देशों के नेताओं की मौजूदगी में समाप्त हुई। लेकिन विदेशी सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने इस बैठक को “बेकार और दिखावटी” क़रार दिया।
फार्स न्यूज़ एजेंसी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के अनुसार, प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर सक्रिय यूज़र्स ने अंतिम बयान की आलोचना करते हुए कहा कि अरब और इस्लामी देशों के नेताओं ने अपने आप को “इज़रायल के ख़िलाफ़ किसी भी व्यावहारिक, दंडात्मक, प्रतिबंधात्मक या सैन्य कार्रवाई” के लिए बाध्य नहीं किया।
ध्यान देने योग्य है कि ग़ाज़ा युद्ध की शुरुआत में भी नवंबर 2023 में रियाद में हुई बैठक में अरब और इस्लामी देशों के नेता सिर्फ़ बयानों तक सीमित रहे थे और इज़रायल के ख़िलाफ़ कोई गंभीर व असरदार कदम नहीं उठाया था। उस समय भी उन्होंने केवल कागज़ पर इज़रायल के हमलों की निंदा की थी।
यह भी अहम है कि ओपेक (OPEC) के अधिकतर सदस्य — जैसे सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर आदि — इस दोहा सम्मेलन में मौजूद थे। ओपेक के पास दुनिया के लगभग 80% प्रमाणित तेल भंडार हैं और इस बैठक में शामिल देशों के पास मिलकर दुनिया की लगभग 50% गैस भंडार है।
दूसरे शब्दों में, अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बड़ी कार माना जाए, तो शायद अमेरिका, चीन और यूरोप उसका इंजन और ढाँचा हों, लेकिन उस कार का ईंधन (तेल और गैस) दोहा सम्मेलन में मौजूद देशों के पास है। क़तर पर इज़रायली हमले के बाद होने वाली इस आपात बैठक के बाद लोग यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि, शायद इज़रायल के ख़िलाफ़ कोई कठोर कार्यवाई के लिए कोई प्रस्ताव पास होगा लेकिन यह बैठक। केवल निंदा तक ही सीमित रही।
यह पहला मौका नहीं है। नवंबर 2023 में रियाद सम्मेलन हुआ था, उस समय भी अरब और इस्लामी देशों ने सिर्फ़ काग़ज़ी बयान जारी किया और इज़रायल के ख़िलाफ़ कोई ठोस आर्थिक, राजनीतिक या सैन्य कदम नहीं उठाया। अब वही दोहा में भी दोहराया गया।
एक विदेशी यूज़र ने सही लिखा:
“जब तुम्हारे पास पूरी दुनिया का ईंधन है, तब भी तुम इज़रायल के ख़िलाफ़ सिर्फ़ बयान पढ़ रहे हो — यह सबसे बड़ी गुलामी है। दुनिया भर के लोग अब अरब देशों की इस ख़ामोशी और कायराना रवैये को समझ चुके हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर दोहा सम्मेलन को “अरब दुनिया की शर्मनाक हार” और “इज़रायल के लिए हरी झंडी” कहा जा रहा है।
असल सच्चाई यह है कि, अरब लीडरशिप अब सिर्फ़ अपने महलों, व्यापार और कुर्सियों की सुरक्षा चाहती है। ग़ाज़ा के बच्चों का खून उनके लिए सिर्फ़ एक राजनीतिक बयानबाज़ी का विषय रह गया है।


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