अरब देशों को इज़रायल को आतंकवादी घोषित करना चाहिए था: यमन
यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के प्रमुख सदस्य मुहम्मद अली अल-हूती ने मंगलवार तड़के रियाद में इस्लामी और अरब देशों के असाधारण शिखर सम्मेलन के अंतिम बयान पर गंभीर असहमति जताई। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर ध्यान आकर्षित किया कि यह सम्मेलन इज़रायल को उसके कथित युद्ध अपराधों और आक्रामकताओं के लिए जवाबदेह ठहराने में विफल रहा है।
अल-हूती का मानना है कि सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों को इज़रायल को आतंकवादी सूची में शामिल कर एक कड़ा संदेश देना चाहिए था, जो क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के प्रति उनकी गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता।
अल-मसीरा चैनल ने अल-हूती की टिप्पणियों को उद्धृत करते हुए बताया कि “अरब शासक बिना किसी ठोस कदम के अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों के समर्थन की मांग कैसे कर सकते हैं?” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये अरब शासक इज़रायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रस्तावों का समर्थन करने का दावा तो करते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसे कदम उठाने से परहेज करते हैं जो इन प्रस्तावों के कार्यान्वयन की दिशा में हो।
अल-हूती ने सम्मेलन के बयान को लेकर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिसमें केवल संघर्ष-विराम की मांग की गई है, जबकि ग़ाज़ा और लेबनान में इज़रायल द्वारा किए गए कथित अपराधों पर कोई कठोर कदम उठाने का आह्वान नहीं किया गया। उन्होंने इसे “अरब नेतृत्व की निष्क्रियता” करार दिया और कहा कि बयान में इज़रायल के खिलाफ न्याय की मांग करने में इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है, जो केवल शांति प्रयासों को कमजोर करता है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अल-हूती ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि सम्मेलन के बयान में अरब शासकों और अमेरिका के घनिष्ठ संबंधों पर चुप्पी साधी गई है। उनका मानना है कि अमेरिका, जो इज़रायल का प्रमुख सहयोगी है, ग़ाज़ा के नरसंहारों में सहभागी है। अल-हूती के अनुसार, अमेरिका की इज़रायल के प्रति समर्थन नीति ने क्षेत्र में शांति प्रयासों को अवरुद्ध किया है और अरब देशों को अमेरिका की नीतियों का विरोध करते हुए स्वतंत्र भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार, अल-हूती का बयान इस ओर संकेत करता है कि अरब नेतृत्व को न केवल इज़रायल की आक्रामक नीतियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए, बल्कि अमेरिका के साथ अपने संबंधों पर भी पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि क्षेत्र में न्यायपूर्ण शांति की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।


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