अरब देशों का नाटो जैसे सैन्य गठबंधन का प्रस्ताव
ओआईसी और अरब लीग के सदस्य देशों के विदेश मंत्री क़तर पहुँच गए हैं। यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब ईरान ने चेतावनी दी है कि, इज़राइल का अगला निशाना सऊदी अरब और तुर्की हो सकते हैं, जिससे बैठक की अहमियत और बढ़ गई है। क़तर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान बिन जासिम अल-थानी ने इज़रायल के ख़िलाफ़ “सामूहिक जवाब” देने की बात कही है।
पिछले हफ्ते क़तर पर हुए इज़रायली हमले के बाद अरब देश सतर्क हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले की निंदा और ट्रंप की इस आश्वासन के बावजूद कि “आगे ऐसा नहीं होगा”, ईरान ने चेताया है कि इज़रायल अगली बार सऊदी अरब और तुर्की को निशाना बना सकता है। इस बीच क़तर अपने रुख़ पर कायम है कि हमास नेताओं को निशाना बनाने के बहाने उसकी ज़मीन पर किया गया हमला दोहा की संप्रभुता पर सीधा हमला है और उसका जवाब देने का हक़ दोहा सुरक्षित रखता है।
हालात की समीक्षा और आगे की रणनीति तय करने के लिए क़तर ने दोहा में 22 सदस्यीय अरब लीग और 57 सदस्यीय इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) की आपात बैठक बुलाई है। यह बैठक सोमवार को होगी जिसमें सदस्य देशों के विदेश मंत्री शामिल होंगे। संभावना है कि, बैठक में इज़रायल के ख़िलाफ़ कड़े प्रस्ताव और अरब देशों की सुरक्षा योजनाओं पर चर्चा होगी।
सऊदी और तुर्की पर इज़रायली हमले की योजना उजागर
ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के पूर्व प्रमुख मोहसिन रज़ाई ने सोमवार की बैठक से पहले अरब और इस्लामी देशों को आगाह किया कि, एक-एक कर निशाना बनने से बेहतर है कि मुस्लिम देश एकजुट होकर इज़रायल की आक्रामकता का सामना करने के लिए सैन्य गठबंधन बनाएँ। ईरानी मीडिया ने दावा किया है कि, उसने इज़रायल की योजना का पर्दाफाश किया है, जिसके अनुसार तेल अवीव तुर्की और सऊदी अरब को निशाना बनाने की तैयारी कर रहा है।
ख़ास बात यह है कि, दोनों ही अमेरिका के सहयोगी हैं। तुर्की पर हमला बेहद विनाशकारी हो सकता है क्योंकि यह देश नाटो का सदस्य है। अमेरिका की अगुवाई वाले इस सैन्य गठबंधन के किसी भी सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाता है और पूरा गठबंधन उस देश के बचाव के लिए बाध्य है। नाटो में इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, फ़्रांस और इटली समेत 32 देश शामिल हैं।
शनिवार को ईरान के सुरक्षा प्रमुख अली लारीजानी ने भी क़तर पर हमले को इस्लामी देशों के लिए चेतावनी करार देते हुए कहा कि, अरब और मुस्लिम देशों को इज़रायल के “पागलपन” का मुकाबला करने के लिए केवल बयानबाज़ी और निंदा प्रस्तावों तक सीमित न रहकर “संयुक्त ऑपरेशन रूम” बनाना चाहिए।
अरब देशों के नाटो-जैसे गठबंधन की चर्चा
क़तर, जो क्षेत्र में अमेरिका का सबसे बड़ा सहयोगी है और ग़ाज़ा युद्ध में मध्यस्थता कर रहा है, पर हुए हमले के बाद अरब देशों के सैन्य गठबंधन की चर्चा फिर तेज़ हो गई है। ‘द नेशनल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में पहली बार रखे गए इस प्रस्ताव को मिस्र ने फिर से आगे बढ़ाया है जिस पर अरब देश गंभीरता से विचार कर रहे हैं। 2015 में शर्म-अल-शेख में हुई अरब शिखर बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया था और सभी देश सिद्धांततः सहमत भी हुए थे, लेकिन आगे कोई प्रगति नहीं हो सकी।
उस समय यह प्रस्ताव यमन के बड़े हिस्से पर हूथी विद्रोहियों के क़ब्ज़े के जवाब में आया था, हालांकि बाद में यमन में विद्रोहियों से लड़ने के लिए सऊदी अरब की अगुवाई में एक सैन्य गठबंधन बना लिया गया। ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, क़तर पर इज़रायली हमले के बाद मिस्र ने यह प्रस्ताव दोहराया है कि संयुक्त सेना का मुख्यालय क़ाहिरा में हो। ध्यान रहे कि अरब देशों में मिस्र के पास सबसे बड़ी सेना है।
इज़रायल समर्थकों को तेल सप्लाई बंद करने का सुझाव
सोमवार को होने वाली अरब लीग और ओआईसी की संयुक्त बैठक में क़तर पर इज़रायली हमले के जवाब में विभिन्न विकल्पों पर विचार होगा। क़तर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान बिन जासिम अल-थानी, जिन्होंने न्यूयॉर्क में ट्रंप से मुलाकात की थी, ने कहा है कि क़तर इज़रायल के ख़िलाफ़ “सामूहिक जवाब” पर विचार करेगा क्योंकि यह हमला पूरे अरब क्षेत्र की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है।
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, बैठक में यह प्रस्ताव भी रखा जा सकता है कि इज़रायल से राजनयिक संबंध तोड़े जाएँ और उन देशों को तेल की सप्लाई रोक दी जाए जो इज़रायल का समर्थन करते हैं। मिस्र, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को ऐसे अरब देश हैं जिन्होंने इज़रायल को मान्यता दी हुई है और जिनके उससे राजनयिक संबंध हैं।


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