ग़ाज़ा के बाद लेबनान, इज़रायली आतंक का नया अड्डा बना
ग़ाज़ा के बाद अब लेबनान, इज़रायली आतंक का नया क्षेत्र बन गया है, जहां पिछले कुछ दिनों की बर्बर बमबारी के दौरान लगभग एक हज़ार बेगुनाह लोग मारे गए हैं। बमबारी से हजारों लेबनानी नागरिक सीमा पार कर सीरिया में शरण ले चुके हैं। लेबनान में भी इज़रायल ग़ाज़ा जैसी तबाही की कहानी दोहराना चाहता है। इज़रायल के जंगी पागलपन ने इस समय मध्य पूर्व को बारूद के ढेर में बदल दिया है। युद्ध उन्माद में घिरे इज़रायली प्रधानमंत्री या इजरायलियों की भाषा में क्राइम मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पिछले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा से संबोधित करते हुए दुनिया से सबसे बड़ा झूठ बोला। उन्होंने कहा कि “वे शांति चाहते हैं और दुनिया उनसे नफरत करती है।”
पूरे मिडिल ईस्ट में अशांति फैलाने वाला शांति की बात कर रहा था। 40 हज़ार से ज़्यादा ग़ाज़ा निवासियों का नरसंहार करने वाला शांति की बात कर रहा था। निर्दोष नागरिकों पर धोखे से हमला करने वाला दूसरों को चेतावनी दे रहा था। ग़ाज़ा के 12 से ज़्यादा मासूम बच्चों का क़ातिलदूसरों को आतंकी कह रहा था। वैश्विक अदालत द्वारा युद्ध अपराधी घोषित होने वाला दूसरों को लानती बता रहा था। महान शहीद और ग़ाज़ा के मज़लूमों के मददगार हसन नसरुल्लाह को धोखे से शहीद करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी ये कह रहा था कि अब लोगों को डरने की ज़रुरत नहीं है। पेजर धमाकों से बुज़दिलाना हमला करने वाला बहादुरी की बात कर रहा था। नेतन्याहू को अपनी हैसियत का अंदाजा उसी वक़्त हो गया जब दो चार देशों को छोड़कर, अक्सर देशों के प्रतिनिधि उसके भाषण से पहले उसका बॉयकॉट करते हुएबाहर निकल गए।
वैश्विक अदालत द्वारा युद्ध अपराधी घोषित किए जा चुके इज़रायली प्रधानमंत्री के स्टेज पर आते ही शोर मचने लगा। महासभा में फिलिस्तीन के समर्थन और इज़रायल के विरोध में नारे लगाए गए। इसके बाद विभिन्न देशों के राजनयिकों ने ग़ाज़ा और लेबनान में इज़रायली आक्रामकता के खिलाफ विरोध स्वरूप वॉकआउट किया। ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब नेतन्याहू महासभा में “शांति” की बात कर रहे थे, ठीक उसी समय इज़रायली सेना बेरूत के दक्षिणी शहर पर बम बरसा रही थी। उसका निशाना हिज़्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह थे।
ग़ाज़ा को पूरी तरह तबाह करने के बाद इज़रायली दरिंदे अब लेबनान पर हमला कर रहे हैं। यहां भी शहीद होने वाले आम नागरिक हैं, जिनमें बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की है। पिछले सप्ताह लेबनान में हुए पेजर धमाकों में दर्जनों लोग मारे गए थे, और इसके पीछे इज़रायल का हाथ होने की बात सामने आई थी। ग़ाज़ा को मिटाने की मुहिम शुरू करने से पहले इज़रायल ने अपने ऊपर हमास के हमलों का बहाना बनाया था, लेकिन लेबनान पर हमले से पहले उसे ऐसे किसी भी बहाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। अचानक पिछले हफ्ते लेबनान के निवासियों के मोबाइल पर यह संदेश आया कि वे हिज़्बुल्लाह के ठिकानों के आसपास से सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं। यह पहली और आखिरी चेतावनी थी और इसके बाद लेबनान के विभिन्न इलाकों में बमों की बारिश शुरू हो गई। ये हमले इतने अचानक और अप्रत्याशित थे कि लोगों को अपनी जान बचाने का समय भी नहीं मिला।
18 साल बाद इज़रायल ने लेबनान पर इतना भयावह हमला किया है। इज़रायल का कहना है कि लेबनान की सशस्त्र संगठन हिज़्बुल्लाह इज़राइल पर हमला करने वाली थी, जिसे रोकने के लिए उसने यहां हमले शुरू किए हैं। इन हमलों में हिज़्बुल्लाह के 1600 से ज्यादा ठिकानों को निशाना बनाने का दावा किया गया है। दूसरी ओर हिज़्बुल्लाह ने भी जवाबी कार्रवाई की है। उसने उत्तरी इज़राइल में दो सैन्य अड्डों, एक ठिकाने और विस्फोटक सामग्री बनाने वाली फैक्ट्री को निशाना बनाते हुए मिसाइल हमले किए हैं। इस तरह मध्य पूर्व में युद्ध का एक और मोर्चा खुल गया है। यह ऐसे समय में हुआ है जब इज़रायल ग़ाज़ा में एक साल की बर्बरता के बाद भी अपना लक्ष्य हासिल करने में विफल रहा है।
इज़रायल की लगातार युद्ध स्थिति के कारण दुनिया भर में यहूदियों की जान-माल को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। सही सोच रखने वाले यहूदी इस युद्ध के खिलाफ हैं। यही कारण है कि नेतन्याहू के जंगी पागलपन के खिलाफ इज़रायल में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लाखों यहूदियों ने नेतन्याहू को शांति का दुश्मन करार देते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है। ऐसा प्रतीत होता है कि समय बीतने के साथ नेतन्याहू का युद्ध उन्माद बढ़ता जा रहा है और वह तबाही को न्योता दे रहे हैं। दुनिया का कोई भी देश एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध नहीं करता, लेकिन नेतन्याहू ने इस समय कई मोर्चों पर युद्ध छेड़ रखा है। लेबनान नेतन्याहू के युद्ध उन्माद का दूसरा निशाना है।
ग़ाज़ा में पिछले एक साल के दौरान इज़रायली सेना ने जो दरिंदगी, बर्बरता और क्रूरता दिखाई है, उसके परिणामस्वरूप अब तक सीमित आंकड़ों के अनुसार 42,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। लगभग एक लाख लोग घायल हुए हैं और ग़ाज़ा का 95% इलाका मलबे में तब्दील हो चुका है। हालांकि, कुछ अन्य सूत्रों ने ग़ाज़ा में मौतों की कुल संख्या लगभग दो लाख बताई है। 23 लाख की आबादी वाला ग़ाज़ा पट्टी इस समय दुनिया के सामने एक मलबे के ढेर के रूप में खड़ी है। मानव जाति के हालिया इतिहास में इतने भीषण नरसंहार की कहानी कहीं दर्ज नहीं की गई है। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने केवल प्रस्ताव पास कर इज़रायल के क्रूर हाथों को रोकने का नाटक किया है। जबकि इज़रायल अपने अवैध अस्तित्व से अब तक ऐसे सैकड़ों प्रस्तावों को अपने पैरों तले रौंद चुका है।
पश्चिमी दुनिया की दोगलापन यह है कि वहां के बड़े-बड़े मानवाधिकार चैंपियन बार-बार इस बात का ढिंढोरा पीटते हैं कि वे सभ्य समाज का हिस्सा हैं। लेकिन जब इज़रायल की क्रूरता और बर्बरता की बात आती है, तो उनमें से अधिकांश कायर चूहों की तरह अपने-अपने बिलों में छिप जाते हैं। कुछ कमजोर देश ज़रूर इज़रायल के साथ अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंध तोड़ने का साहस करते हैं, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन, जैसे देश इज़रायल को हथियारों की आपूर्ति करते हैं ताकि वह मानवता को और भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर सके। इस समय भी जब इज़रायल ने लेबनान पर आग और खून की बारिश शुरू कर दी है और ग़ाज़ा निवासियों के सबसे बड़े हमदर्द और अल अक़्सा के सबसे बड़े मोहाफिज़ हसन नसरुल्लाह को शहीद कर दिया है तो, अमेरिका ने इज़रायल की मदद के लिए 40,000 सैनिक भेजने की घोषणा की है। इसके अलावा, अमेरिका ने इज़रायल को 8.7 अरब डॉलर की सैन्य सहायता भी दी है। यह सहायता दरअसल इज़रायल की सैन्य श्रेष्ठता को बनाए रखने के प्रयासों के लिए है। इज़रायल का कहना है कि यह सहायता इज़रायल की सुरक्षा के लिए अमेरिका के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।
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