ग़ाज़ा नरसंहार के 2 साल: बेंजामिन नेतन्याहू के 9 झूठ और सच्चाई
ग़ाज़ा पर इज़रायली हमलों को पूरे दो साल पूरे हो चुके हैं। 7 अक्टूबर 2023 से लेकर आज तक इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ग़ाज़ा पर हमले जारी रखने और “वैश्विक सहानुभूति” हासिल करने के लिए कई झूठ बोले हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया, इज़रायली मीडिया और सोशल मीडिया एल्गोरिदम के ज़रिए इज़रायल ने अपने झूठ को “सच” साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाया, लेकिन इस दौरान अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने इन झूठों का पर्दाफाश कर दिया।
आइए जानते हैं नेतन्याहू के 9 बड़े झूठ और उनकी हकीकत —
झूठ नंबर 1:
हमास ने 40 इज़रायली बच्चों के सिर काट दिए।
सच्चाई:
किसी भी बच्चे का सिर काटे जाने का कोई सबूत या तस्वीर कभी पेश नहीं की गई। यह झूठ इज़रायली सेना और मीडिया के माध्यम से फैलाया गया, बाद में खुद इज़रायली अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यह केवल प्रोपेगेंडा था।
झूठ नंबर 2:
हमास ने 7 अक्टूबर को सामूहिक बलात्कार और यौन हिंसा की।
सच्चाई:
इज़रायली स्वयंसेवी संगठन ZAKA के एक सदस्य ने बाद में माना कि उसके दावों का कोई सबूत नहीं था। इसके उलट, इज़रायली सैनिकों द्वारा फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के साथ दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के कई सबूत सामने आए हैं।
झूठ नंबर 3:
हमास फ़िलिस्तीनी नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करता है।
सच्चाई:
इस आरोप का कोई प्रमाण नहीं है। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों और डॉक्टरों ने बताया कि अस्पतालों या नागरिक इलाकों में हमास की सैन्य मौजूदगी नहीं थी। इसके विपरीत, इज़रायली सेना खुद कई बार फ़िलिस्तीनियों को मानव ढाल बनाती रही है।
झूठ नंबर 4:
हमास मानवीय सहायता की चोरी करता है।
सच्चाई:
अमेरिकी एजेंसी USAID और खुद इज़रायली सेना ने स्वीकार किया कि हमास द्वारा सहायता चोरी किए जाने का कोई सबूत नहीं है। बाद में नेतन्याहू ने माना कि सहायता की लूट वास्तव में अपराधी गिरोहों द्वारा की जा रही थी।
झूठ नंबर 5:
फ़िलिस्तीनी पत्रकार हमास के लिए काम करते हैं।
सच्चाई:
अल-जज़ीरा और अन्य मीडिया संस्थानों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। इज़रायल ने बाद में उन्हीं पत्रकारों को निशाना बनाकर मार दिया। रॉयटर्स ने साबित किया कि जिन कैमरों को इज़रायल ने निशाना बनाया, वे हमास के नहीं बल्कि उनके अपने पत्रकारों के थे।
झूठ नंबर 6:
हमास युद्धविराम समझौतों में रुकावट डाल रहा है।
सच्चाई:
हमास ने क़तर, मिस्र, तुर्की और अमेरिका की मध्यस्थता में रखे गए कई युद्ध-विराम प्रस्तावों को स्वीकार किया, लेकिन नेतन्याहू ने बार-बार इन्हें ठुकराया ताकि अपनी राजनीतिक कुर्सी बचाने के लिए युद्ध जारी रख सकें।
झूठ नंबर 7:
फ़िलिस्तीनियों की मौत के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताए जा रहे हैं।
सच्चाई:
फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों के अनुसार अब तक 67,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जबकि वास्तविक संख्या 2 लाख के करीब हो सकती है।
झूठ नंबर 8:
इज़रायली सेना केवल हमास के ठिकानों पर सटीक हमले करती है।
सच्चाई:
दर्जनों रिपोर्टें साबित करती हैं कि इज़रायल ने स्कूलों, अस्पतालों, घरों और शरणार्थी शिविरों पर अंधाधुंध बमबारी की है, जिनमें अधिकतर आम नागरिक, महिलाएं और बच्चे मारे गए।
झूठ नंबर 9:
इज़रायली सेना दुनिया की सबसे “नैतिक” सेना है।
सच्चाई:
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इज़रायली सेना पर युद्ध अपराध, लूटपाट, क़ैदियों पर अत्याचार और सामूहिक हत्याओं के आरोप लगाए हैं। कई वीडियो में सैनिकों को फ़िलिस्तीनी घरों को लूटते और निर्दोष नागरिकों की हत्या करते देखा जा चुका है।
नतीजा:
दो सालों में इज़रायल के इन झूठों ने न सिर्फ़ इंसानियत का मज़ाक उड़ाया है, बल्कि दुनिया को दिखा दिया है कि “प्रोपेगेंडा” के ज़रिए किसी भी अत्याचार को कैसे सही ठहराया जा सकता है — अगर मीडिया और ताक़त दोनों आपके साथ हों।


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