19 जहाज़ ज़ब्त, फिर भी “ग्लोबल समूद फ़्लोटिला” बेड़ा ग़ाज़ा की तरफ़ बढ़ा
इज़रायल की नौसैनिक नाकाबंदी और 19 जहाज़ों को रोक लिए जाने के बावजूद “समूद” बेड़ा ग़ाज़ा की ओर अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। इस बेड़े का उद्देश्य है 18 महीने से जारी नाकाबंदी को तोड़ना और भूखे-प्यासे नागरिकों तक सीधे मानवीय मदद पहुँचाना। गुरुवार सुबह इज़रायली नौसेना ने 44 में से 19 जहाज़ों को रोक लिया। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कुल 34 जहाज़ों पर हमले या हस्तक्षेप हुआ, लेकिन 10 अब भी ग़ाज़ा से मात्र 40 समुद्री मील दूर अपनी राह पर हैं। इन जहाज़ों में 45 देशों से आए 532 कार्यकर्ता सवार हैं।
फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी “मआ” और क़तर के चैनल “अल-जज़ीरा” ने पुष्टि की है कि, हमले और रोक-टोक के बावजूद भी कई जहाज़ आगे बढ़ रहे हैं। बेड़े के प्रवक्ता ने कहा कि, कोई भी वैकल्पिक मार्ग या मध्यस्थता समस्या का हल नहीं है; असली समाधान नाकाबंदी तोड़कर सीधी राहत पहुँचाना है।
ग़ाज़ा इस समय गंभीर मानवीय संकट से जूझ रहा है। 2 मार्च से इज़रायल ने सभी रास्ते बंद कर दिए हैं, जिससे भोजन और दवा तक नहीं पहुँच पा रही। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ 7 अक्तूबर 2023 से अब तक 66 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए और 1.68 लाख घायल हुए हैं। अकाल से भी 455 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें 151 बच्चे हैं।
इज़रायल ने कई जहाज़ों को अपने बंदरगाह पर ले जाकर सवार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया। इनमें स्वीडिश कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग भी शामिल हैं। “ग़ाज़ा ब्लॉकेड ब्रेकिंग कमेटी” ने बताया कि “अल्मा” और “सिरिस” नामक जहाज़ों पर हमला हुआ और क्रू को धमकाया गया, लेकिन कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। “अल-अरबी अल-जदीद” के अनुसार 70 कार्यकर्ताओं को अग़वा कर लिया गया और 6 बड़े जहाज़ इज़रायल के क़ब्ज़े में हैं।
इज़रायली कार्रवाई की दुनियाभर में निंदा हुई। फ़्रांस ने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की। संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्टर फ्रांसेस्का अल्बनीज़ ने इसे ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया और पश्चिमी देशों पर मिलीभगत का आरोप लगाया। हमास ने इस क़दम को “समुद्री डकैती” और “युद्ध अपराध” बताया। तुर्की ने इसे “राज्य आतंकवाद” कहा, जबकि कोलंबिया ने इज़रायली राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया।
इटली सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों में प्रदर्शन हुए। इटली की मज़दूर यूनियनों ने आम हड़ताल की घोषणा कर दी और सभी बंदियों की तत्काल रिहाई की मांग की। “समूद” बेड़ा अब इज़रायल की नाकाबंदी को तोड़ने की वैश्विक प्रतीक बन चुका है और सवाल यही है कि क्या यह कारवां मानवीय मदद ग़ानज़ा तक पहुँचाने में सफल होगा या नहीं।


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