ग़ाज़ा में भुखमरी से 1200 बुज़ुर्गों की मौत
यूरोप-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स वॉच नामक संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि, ग़ाज़ा में 1200 से अधिक बुज़ुर्ग भुखमरी की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं।फार्स न्यूज़ एजेंसी की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, इस केंद्र ने शनिवार को जानकारी देते हुए कहा कि इज़रायली घेराबंदी के जारी रहने के कारण हजारों अन्य बुज़ुर्ग भी मौत के खतरे में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बुज़ुर्गों की मौत, ग़ाज़ा में इज़रायल की “भुखमरी और इलाज से वंचित रखने” की नीति का सीधा परिणाम है, जो हाल के दिनों में चरम पर पहुँच चुकी है।
केंद्र के अनुसार, हर दिन दर्जनों बुज़ुर्ग लोग गंभीर स्थिति में अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों की ओर जाते हैं ताकि उन्हें जीवित रहने के लिए पोषण संबंधी ड्रिप (IV) मिल सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोप-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स वॉच की फील्ड टीम ने कई बुज़ुर्गों की मौत को ग़ाज़ा के शरणार्थी शिविरों में दर्ज किया है, जो इज़रायल द्वारा थोपे गए अकाल की प्रत्यक्ष वजह से हुई हैं।
संयुक्त राष्ट्र की फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिए सहायता और पुनर्वास एजेंसी (UNRWA) के आयुक्त जनरल फिलिप लाजारिनी ने ग़ाज़ा के मानवीय संकट की भयावहता का वर्णन करते हुए कहा:
“आज सुबह ग़ज़ा में मेरे एक सहयोगी ने मुझसे कहा: यहां लोग ना जिंदा हैं, ना मरे हुए – वे बस चलती-फिरती लाशें हैं। UNRWA के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, ग़ाज़ा शहर में हर पाँच में से एक बच्चा गंभीर कुपोषण का शिकार है, और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
लाजारिनी ने कहा:
“हमारे केंद्रों में आने वाले ज़्यादातर बच्चे अत्यधिक दुबले, बेहद कमजोर और मौत के कगार पर हैं। अगर उन्हें तुरंत चिकित्सकीय देखभाल नहीं मिली, तो उनके मरने का ख़तरा है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि 100 से अधिक लोगों, विशेष रूप से बच्चों की मौत की रिपोर्टें मिली हैं जो भुखमरी के कारण हुई हैं।
उन्होंने कहा:
“यह संकट अब इतना बढ़ गया है कि, राहतकर्मी, जो दूसरों की जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं, खुद भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। जब माता-पिता को खाने के लिए कुछ नहीं मिलता, तो पूरा मानवीय ढांचा बिखरने लगता है। वे इतने भूखे हैं कि अब अपने बच्चों की देखभाल की भी ताक़त नहीं बची है।”
यूरोप-मेडिटेरेनियन ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि ज़्यादातर मामलों में बुज़ुर्गों की मौत को “प्राकृतिक मौत” क़रार दे दिया जाता है, क्योंकि इसे नरसंहार का शिकार बताने के लिए कोई आधिकारिक प्रक्रिया मौजूद नहीं है। रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि यह सब इज़रायल की जानबूझकर अपनाई गई नीति का परिणाम है, जो भुखमरी और चिकित्सा से वंचित रखने को नागरिकों की हत्या का हथियार बना चुका है।
रिपोर्ट के अंत में बताया गया है कि फील्ड टीम ने ग़ाज़ा में कई ऐसे दर्दनाक बयान दर्ज किए हैं जिनमें बुज़ुर्गों ने भूख से मरने से पहले अपनी हालत बयान की थी। जो जीवित हैं, वे भी बेहद कठिन हालात में ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं, क्योंकि ग़ाज़ा का बुनियादी सेवाओं का ढांचा लगभग पूरी तरह से तबाह हो चुका है।


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