धार्मिक स्थलों के प्रबंधन मामले में सरकार को निर्देश नहीं देंगे: सुप्रीम कोर्ट
धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के मामले में सुप्रीम कोर्ट सरकार के काम में दखल देने के मूड में नहीं है। हाल ही में दायर हुई एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में खास नीति बनाने के निर्देश सरकार को नहीं देंगे। याचिका में मांग की गई थी कि हिंदुओं, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय को भी मुसलमानों की तरह पूजा स्थल के प्रबंधन के अधिकार मिलने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण खत्म करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है ये याचिका सुनवाई के लायक नहीं है। केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस याचिका का विरोध किया है।
मुख्य न्यायाधीश ने इसी के साथ अश्विनी उपाध्याय से ये भी कहा कि आप यह मांग संसद या सरकार से कर सकते हैं ना कि कोर्ट से। इस तरह की मांग को अदालत कैसे मंजूरी दे सकती है, आप अपनी याचिका वापस लें।
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण खत्म करने की मांग लेकर सुप्रीम में जनहित याचिका लगाई थी। उन्होंने अपनी याचिका में मांग की थी कि हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों को मुसलमानों, पारसियों और ईसाइयों की तरह राज्य के हस्तक्षेप के बिना अपने धार्मिक स्थलों का प्रबंधन करने का समान अधिकार मिले।
कोर्ट ने कहा, ‘धार्मिक स्थलों के संबंध में सरकार को कोई निर्देश नहीं देंगे कि आप X करें Y करें या Z करें। यह मामला पूरी तरह नीति और संसद का है। हम विधायिका के क्षेत्र में नहीं जाएंगे।’ एसजी ने याचिकाकर्ता को सरकार से बात करने की सलाह दी। याचिकाकर्ता का कहना था कि दिल्ली में कालका मंदिर का प्रबंधन सरकार करती है, लेकिन जामा मस्जिद का नहीं।
शीर्ष न्यायालय में तीन और याचिकाएं दाखिल हुईं थी, जहां तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में धार्मिक स्थलों पर सरकार के कब्जे को चुनौती दी गई थी। कोर्ट का कहना था कि इन याचिकाओं में राज्य की तरफ से बनाए गए कानूनों को चुनौती दी गई है। कोर्ट इस मामले को देखेगी। इन तीन याचिकाओं के लिए कोर्ट में एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन, एडवोकेट साई दीपक, एडवोकेट सुब्रमण्यम स्वामी पेश हुए थे।