रूसी तेल के इस्तेमाल पर भारत से क्यों नाराज है यूरोपीय संघ?

रूसी तेल के इस्तेमाल पर भारत से क्यों नाराज है यूरोपीय संघ ?

यूरोपीय संघ इन दिनों भारत से नाराज है। रूस यूक्रेन के युद्ध से एक तरफ़ जहाँ पूरी दुनियां की अर्थ व्यवस्था को नुक़सान पहुंचा था, वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिका और रूस की करेंसी में मज़बूती देखने को मिली थी, हालांकि यूक्रेन युद्ध के ज़िम्मेदार यही दो देश हैं। इन सब के बावजूद यूरोपीय संघ इन दिनों भारत से नाराज़ चल रहा है, और उसका कारण है तेल के कारोबार में भारत की तरक़्क़ी।

यूरोपीय संघ की शिकायत है कि भारत सरकार रूस से तेल ख़रीद रही है और यूरोपीय देशों को तेल उत्पाद बेच रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूस यूक्रेन युद्ध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चतुराई का परिचय देते हुए अपने देश को युद्ध से दूर रखा,और यूक्रेन से अपने सभी नागरिकों को सफलता पूर्वक, सुरक्षित वापस बुला लिया जो काफ़ी सराहनीय और साहसिक क़दम था।

यूक्रेन जंग से अपने आपको अलग थलग रखने का भारत को काफ़ी फ़ायदा हुआ, भारत को रूस से काफी कम क़ीमत पर तेल ख़रीदने का मौक़ा मिला। यूरोपीय संघ को यही बात खटकने लगी और उसने भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने यूरोपीय संघ के दबाव को अनदेखा करते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा, जिसके कारण तेल के कारोबार में भारत की आमदनी में ख़ूब इज़ाफ़ा हुआ,और यूरोपीय संघ इसे पचा नहीं पा रहा।

यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने कहा है कि यूरोपीय संघ को भारत के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि वह रूस से कच्चा तेल लेकर उससे बने रिफाइंड उत्पाद यूरोपीय बाजार में बेच रहा है। इन उत्पादों में डीजल भी शामिल है। यह बात उन्होंने कुछ दिनों पहले एक इंटरव्यू में कही थी।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद, भारत ने रूस से सबसे अधिक तेल खरीदा है। और भारत को इसका फायदा भी हुआ है। तेल कंपनियां रिफाइंड उत्पादों का उत्पादन और बिक्री कर रही हैं और मुनाफा कमा रही हैं। इससे यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध निष्प्रभावी साबित हो रहे हैं।

जोसेफ बोरेल कहते हैं, “भारत के लिए रूस से तेल लेना सामान्य बात है, लेकिन अगर यह रूसी तेल को रिफाइन करने और हमें उत्पाद बेचने का केंद्र बन रहा है, तो हमें इसके विरुद्ध ठोस कदम उठाने होंगे।” विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूक्रेन पर रूस के हमले का जिक्र किया, जिसमें खाद्य सुरक्षा का मुद्दा भी शामिल था, लेकिन रूसी तेल पर चर्चा नहीं हुई।

दूसरी ओर यूरोपीय आयोग की उपाध्यक्ष मार्गरेट वेस्टिगर ने कहा है कि यूरोपीय संघ इस मसले पर भारत से बात करेगा, लेकिन ”यह भारत पर उंगली उठाने जैसा नहीं, बल्कि हाथ बढ़ाने जैसा होगा। मार्गरेट के शब्दों से पता चलता है कि यूरोपीय संघ कारोबार के लिए भारत पर कितना निर्भर है, जिसके कारण वह खुलकर कोई भी बात नहीं कर पा रहा है।

रूस यूक्रेन में युद्ध की आग भड़का कर जहां यूरोपीय संघ ने हथियारों का धड़ल्ले से व्यापार किया, और ख़ूब मुनाफ़ा कमाया, वहीं भारत सरकार ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए अपने आपको इस युद्ध से दूर रखते हुए दोनों मुल्कों को बातचीत के ज़रिए समझौता करने की सलाह दी । बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व ने पूरे विश्व को साफ़ संदेश दे दिया है कि भारत अपने हित के लिए किसी भी ताक़त के दबाव में नहीं आने वाला है,और अब भारत वही करेगा जो उसके हित में होगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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