हम 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था तो बन जाएंगे, असली समस्या प्रति व्यक्ति आय की है: सिब्बल
जब कोई नई सरकार सत्ता में आती है, तो स्वाभाविक रूप से देश की जनता उससे यह उम्मीद करती है कि वह अगले पांच वर्षों के लिए अपना विजन पेश करे। लेकिन यह सरकार पहले ही दस साल गुज़ार चुकी है और इस दौरान इसका प्रदर्शन सुस्त और असंगत रहा है। हमें उम्मीद थी कि, वित्त मंत्री के बजट भाषण में हमें कुछ विजन मिलेगा कि सरकार भविष्य में क्या करने का इरादा रखती है, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इस सरकार के पास कुछ नहीं है।
अगर आप दुनिया के इतिहास पर नज़र डालें, खासकर यूरोपीय शक्तियों की, तो आप देखेंगे कि जब औद्योगिक क्रांति आई, तो दो चीजें हुईं: एक, सार्वभौमिक शिक्षा का प्रसार हुआ, और दूसरी, प्रौद्योगिकी का विकास हुआ। चीन ने जब अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, तो उसने सबसे पहले अपने हर बच्चे और हर युवा की शिक्षा को सुनिश्चित किया। लेकिन आज तक भारत में न तो पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा दी गई है और न ही इसे गुणवत्तापूर्ण बनाया गया है। अगर शिक्षा और कौशल पर निवेश नहीं किया गया, तो हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा कैसे कर सकते हैं?
आज दुनिया में एआई और आधुनिक प्रौद्योगिकी की एक नई क्रांतिकारी लहर आ रही है। सरकार ने इसके लिए विभिन्न केंद्र बनाने की घोषणा की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार समझती है कि एआई क्या है और इसका उपयोग कैसे होगा? एक तरफ, अगर हम एआई को अपनाते हैं, तो बेरोजगारी बढ़ सकती है, क्योंकि बहुत सी नौकरियां खत्म हो जाएंगी। दूसरी तरफ, अगर हम इसे नज़रअंदाज़ करते हैं, तो हम वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा का मौका खो देंगे। सरकार के पास इस चुनौती का कोई स्पष्ट समाधान नहीं है।
देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्थिति भी चिंताजनक है। 38% बच्चे जन्म के समय कमजोर होते हैं। 21% बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि अगर स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश नहीं किया गया, तो देश का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। बजट में स्वास्थ्य के लिए सिर्फ 9% की वृद्धि की गई है, जो अपर्याप्त है।
आर्थिक विकास और रोजगार की बात करूं, तो वित्त मंत्री ने कहा है कि भारत जल्द ही पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन हकीकत यह है कि देश पहले ही 6% की विकास दर से आगे बढ़ रहा है। चाहे सरकार कुछ करे या न करे, हम वहां कुछ सालों में पहुंच ही जाएंगे। लेकिन असली सवाल यह है कि हम 8% से 10% की विकास दर कैसे हासिल करेंगे? क्योंकि अगर अर्थव्यवस्था तेजी से नहीं बढ़ती, तो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि संभव नहीं होगी और न ही हम विकसित बन सकेंगे। प्रति व्यक्ति आय के मामले में देखें, तो रूस की प्रति व्यक्ति आय 14,000 डॉलर, चीन की 13,000 डॉलर, ब्राजील की 11,000 डॉलर है, जबकि भारत की सिर्फ 2,490 डॉलर है। यह स्पष्ट है कि भारत को वास्तविक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है, न कि सिर्फ ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी जैसे नारों की।
अगर इन मोर्चों पर सरकार नाकाम है, तो उद्योग और शोध के क्षेत्र में भी बहुत अच्छे कदम नहीं उठाए गए हैं। अमेरिका हर साल 650 बिलियन डॉलर शोध और विकास पर खर्च करता है। चीन 500 बिलियन डॉलर खर्च करता है, जबकि भारत सिर्फ 50 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। अगर हम शोध और विकास पर निवेश नहीं करेंगे, तो हम प्रौद्योगिकी में कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकेंगे। उदाहरण के लिए, मोबाइल फोन के अधिकांश हार्डवेयर यूरोपीय देशों में बनते हैं, जबकि हम सिर्फ सॉफ्टवेयर समाधान प्रदान करते हैं, जो अंततः विदेशी कंपनियों के नियंत्रण में चला जाता है।
इस समय भारत में 140 करोड़ लोगों में से सिर्फ 3.19 करोड़ लोग वास्तव में आयकर चुकाते हैं, लेकिन उन्हें ही राहत दी जा रही है। बाकी 137 करोड़ लोगों के बारे में यह सरकार नहीं सोच रही है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के गरीब और अत्यंत गरीब 50% लोग अपनी आय का सबसे ज्यादा हिस्सा अप्रत्यक्ष कर के रूप में चुकाते हैं। गरीब वर्ग अमीर वर्ग के मुकाबले 6 गुना ज्यादा कर चुकाता है, क्योंकि अप्रत्यक्ष कर ज्यादातर जीएसटी और अन्य सरकारी शुल्कों के रूप में वसूला जाता है। मेरी अपील है कि यह लूट-खसोट रोकी जाए और गरीबों को राहत दी जाए।


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