युवा भारतीयों में ‘विराट कोहली मानसिकता’ वे भारत में खुश नहीं: रघुराम राजन

युवा भारतीयों में ‘विराट कोहली मानसिकता’ वे भारत में खुश नहीं: रघुराम राजन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का विरोध करने वाले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को एक और बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में भारतीय युवा अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए विदेश जा रहे हैं। क्योंकि वे भारत में खुश नहीं हैं। उन्होंने कहा कि युवा भारतीयों में ‘विराट कोहली मानसिकता’ है और वे उन स्थानों पर चले जाते हैं] जहां उन्हें बाजारों तक पहुंच बहुत आसान लगती है।

रघुराम राजन से जब पूछा गया कि बहुत सारे भारतीय इनोवेटर्स अब सिंगापुर या सिलिकॉन वैली जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा, ‘वे वास्तव में विश्व स्तर पर और अधिक विस्तार करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि एक युवा भारत है जिसकी मानसिकता विराट कोहली जैसी है। मैं दुनिया में किसी से पीछे नहीं हूं।

विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा कि मानव पूंजी में सुधार और उनके स्किल सेट को बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हमें यह पूछने की ज़रूरत है कि ऐसा क्या है जो उन्हें भारत में रहने के बजाय बाहर जाने के लिए मजबूर करता है? लेकिन वास्तव में जो बात दिल को छू लेने वाली है वह इनमें से कुछ उद्यमियों से बात करना और दुनिया को बदलने की उनकी इच्छा को देखना है और उनमें से कई भारत में रहकर खुश नहीं हैं।

राजन ने कहा कि हमें यह पूछने की जरूरत है कि ऐसा क्या है जो उन्हें भारत के अंदर रहने के बजाय भारत से बाहर जाकर बसने के लिए मजबूर करता है? लेकिन वास्तव में जो बात दिल को छू लेने वाली है वह इनमें से कुछ उद्यमियों से बात करना और दुनिया को बदलने की उनकी इच्छा को देखना है और उनमें से कई भारत में रहकर खुश नहीं हैं। रघुराम राजन जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में ‘2047 तक भारत को एक उन्नत अर्थव्यवस्था बनाना: इसमें क्या होगा’ विषय पर एक सम्मेलन में बोल रहे थे।

राजन ने कहा कि भारत लोकतंत्र से मिलने वाले लाभ उठा नहीं पा रहा है। यही कारण है कि मैंने 6 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही। अगर आपको पता करना है कि हम अभी क्या हैं तो जीडीपी के आंकड़ों में गड़बड़ी को दूर करें। हम 6 प्रतिशत जनसांख्यिकीय लाभांश के बीच में है। यह चीन और कोरिया के जनसंख्या लाभ से काफी कम है। जब हम कहते हैं कि यह बहुत अच्छा है तो हम उलझ रहे हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि हम जनसांख्यिकीय लाभांश खो रहे हैं, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हम लोगों को नौकरी नहीं दे रहे हैं।

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