CAA के खिलाफ यूनियन मुस्लिम लीग और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून लागू कर दिया है। गृह मंत्रालय ने सोमवार, 11 मार्च को इसके नियम जारी किए। इसके साथ ही यह तय हो गया है कि अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर आने वाले गैर-मुसलमानों को नागरिकता मिल सकेगी।
सीएए लागू होने के अगले ही दिन इसके खिलाफ मुस्लिम संगठन सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) की ओर से मंगलवार को कहा गया कि ये कानून मुस्लिमों से भेदभाव करता है।
याचिका में कहा गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेडिंग है। ऐसे में केंद्र सरकार को इसे लागू नहीं करना चाहिए था। आईयूएमएल की तरफ से देश की सबसे बड़ी अदालत में दी गई याचिका में सीएए को असंवैधानिक बताया गया है। मुस्लिम संगठन ने इस दौरान सीएए पर स्टे लगाने की मांग की है।
सीएए के खिलाफ पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में तमाम अर्जियां दाखिल हुई थीं। इन सभी पर अब तक कोर्ट ने सुनवाई नहीं की है। वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। उनके लिए ही सीएए लागू किया गया है। जबकि, सीएए का विरोध करने वाले ये तर्क देते हैं कि संविधान में बराबरी की बात की गई है।
ऐसे में केंद्र सरकार खास धर्म के लोगों के लिए अलग से कानून नहीं बना सकती। कुछ विरोधियों का ये भी तर्क है कि पाकिस्तान में तो अहमदिया और शिया मुसलमानों पर भी अत्याचार होता है। ऐसे में उनको भी सीएए के जरिए नागरिकता दी जानी चाहिए।