नए श्रम क़ानून पर ट्रेड यूनियनों का कड़ा विरोध

नए श्रम क़ानून पर ट्रेड यूनियनों का कड़ा विरोध

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को श्रम सुधारों से जुड़ी चार प्रमुख श्रम संहिताएँ लागू कर दीं। इनमें वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थितियाँ संहिता 2020 शामिल हैं। इन संहिताओं के लागू होने के साथ ही अब तक प्रभावी 29 अलग-अलग श्रम कानून समाप्त हो गए। सरकार का दावा है कि ये संहिताएँ मज़दूरों के हितों को मज़बूत करेंगी और श्रम व्यवस्था को सरल बनाएँगी। दूसरी ओर, देश की 10 प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने इनका घोर विरोध करते हुए इन्हें “पूरी तरह मालिक-पक्षीय” और “श्रमिकों के साथ धोखा” बताया है।

यूनियनों का कहना है कि इन संहिताओं को एकतरफा तरीके से लागू किया गया है, जिससे कल्याणकारी राज्य की मूल संरचना कमज़ोर होती है। यूनियनों ने इन कानूनों की वापसी की मांग करते हुए 26 नवंबर को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इस संयुक्त बयान पर INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए हैं।

सरकार का पक्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई श्रम संहिताओं को “स्वतंत्रता के बाद का सबसे व्यापक और प्रगतिशील श्रम सुधार” बताया है। उनके अनुसार ये संहिताएँ न्यूनतम वेतन, समय पर भुगतान, सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षित कार्य-परिसर सुनिश्चित करेंगी। सरकार का मानना है कि ये सुधार रोज़गार के नए अवसर, उत्पादकता में वृद्धि तथा विकसित भारत की ओर तेज़ प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

नई संहिताओं में प्रमुख प्रावधान

  • महिलाओं को सभी क्षेत्रों में, जिनमें खनन और भारी उद्योग भी शामिल हैं, उनकी सहमति और उपयुक्त सुरक्षा प्रबंधों के साथ रात में काम करने की अनुमति होगी।
  • संविदा अवधि पर नियुक्त कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के समान सभी सुविधाएँ दी जाएँगी।
  • ग्रेच्युटी की पात्रता पाँच वर्ष से घटाकर एक वर्ष कर दी गई है।
  • 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच सुविधा अनिवार्य होगी।

गिग वर्करों को कानूनी पहचान
नई संहिताओं में Swiggy, Zomato, Porter, Ola, Uber, Rapido जैसे प्लेटफ़ॉर्मों से जुड़े गिग वर्करों को पहली बार औपचारिक रूप से श्रमिक दर्जा दिया गया है, जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जा सकेगा। सरकार का कहना है कि संहिताएँ समान काम के लिए समान वेतन को भी सुनिश्चित करती हैं।

यूनियनों की आपत्तियाँ
यूनियनों का आरोप है कि सरकार ने उनकी किसी भी मांग या सुझाव पर विचार नहीं किया और 2019 से अब तक हुए उनके सभी विरोध प्रदर्शनों को नज़रअंदाज़ किया। उनका कहना है कि सरकार ने इंडियन लेबर कॉन्फ्रेंस बुलाने के अनुरोध तक को स्वीकार नहीं किया।

संयुक्त बयान में यूनियनों ने इन संहिताओं को “श्रमिकों के खिलाफ युद्ध की घोषणा” बताया है। उनका आरोप है कि केंद्र ने पूंजीपति समूहों के दबाव में ऐसी व्यवस्था बना दी है जो “स्वामी-सेवक जैसी शोषणकारी संरचना” की ओर लौटने का संकेत देती है। यूनियनों ने घोषणा की है कि इन संहिताओं के विरोध में वे 26 नवंबर को व्यापक देशव्यापी आंदोलन करेंगी।

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