टीएमसी का चुनाव आयोग पर हमला, SIR में 39 मौतों का ख़ून आपके हाथों पर है
तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर के दौरान कथित रूप से 39 लोगों की मौत के लिए चुनाव आयोग और विशेष रूप से मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी के दस सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में पूर्ण चुनाव आयोग से करीब डेढ़ घंटे लंबी बैठक की और आरोप लगाया कि अत्यधिक दबाव, अव्यवस्थित कार्यप्रणाली और अपर्याप्त प्रशिक्षण ने बीएलओ और कर्मचारियों को ऐसी स्थिति में धकेल दिया कि कई लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से बीमार हैं।
तृणमूल नेताओं ने आरोप लगाया कि बीएलओ को न पर्याप्त सहायता दी गई, न समय का सही प्रबंधन किया गया, जिससे वे मानसिक और शारीरिक तनाव का सामना करते हुए बीमार पड़े। बैठक के बाद राज्यसभा में तृणमूल के फ्लोर लीडर डेरेक ओब्रायन ने दावा किया कि उन्होंने सीईसी को स्पष्ट रूप से बताया कि उनके हाथों पर “खून लगा है” और इस प्रक्रिया में हुई मौतें रोकी जा सकती थीं। तृणमूल का कहना था कि अब तक 39 मौतों में 4 बीएलओ शामिल हैं, जबकि 15 बीएलओ गंभीर रूप से बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हैं। पार्टी नेताओं ने सवाल उठाया कि आखिर इन मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा और क्या चुनाव आयोग इस संकट की नैतिक जवाबदेही स्वीकार करेगा।
तृणमूल ने एसआईआर प्रक्रिया के “मकसद” पर भी गंभीर सवाल उठाए और कहा कि यह अभियान विशेष रूप से बंगाली भाषी मतदाताओं को निशाना बना रहा है। महुआ मोइत्रा और डेरेक ओब्रायन ने तर्क दिया कि अगर असल उद्देश्य अवैध घुसपैठ को रोकना है, तो फिर बांग्लादेश और म्यांमार से सटे उत्तर-पूर्व के राज्यों को एसआईआर से बाहर क्यों रखा गया। उन्होंने कहा कि असम में केवल “स्पेशल रिविजन” के नाम पर औपचारिकता निभाई जा रही है, जबकि बंगाल और उत्तर प्रदेश में व्यापक कार्रवाई चल रही है। महुआ मोइत्रा ने सवाल उठाया कि जिन मतदाता सूचियों को चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सही बताया था, वे अचानक एक साल के भीतर अविश्वसनीय कैसे हो सकती हैं। यदि सूची गलत है, तो मौजूदा संसद की वैधता पर भी प्रश्न उठता है।
तृणमूल ने बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) की नियुक्ति संबंधी नियमों में हालिया बदलाव को भी पक्षपातपूर्ण बताया। पहले बीएलए उसी बूथ के मतदाता होते थे, पर नए नियम में पूरे विधानसभा क्षेत्र के किसी भी बूथ का मतदाता बीएलए बन सकता है। तृणमूल का आरोप है कि इससे भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी बूथ पर तैनात करने की सुविधा मिल जाएगी, जो चुनावी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि बंगाल बीजेपी के कई नेता सार्वजनिक रूप से दावा कर रहे हैं कि एसआईआर के दौरान एक करोड़ मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे, जिनमें अधिकांश बंगाली भाषी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग होंगे। तृणमूल ने पूछा कि ऐसे दावों पर चुनाव आयोग क्यों चुप है और क्या संवैधानिक संस्थान अब एक ही राजनीतिक एजेंडे के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने अब तक इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। एसआईआर का दूसरा चरण 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जारी है, जिनमें 2026 में चुनाव वाले पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु शामिल हैं। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी है कि तृणमूल इस मुद्दे को 2026 के विधानसभा चुनाव में “बंगाली अस्मिता” के रूप में उभारने की रणनीति बना रही है।


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