बीफ फैक्टरियां चलाने वालों के नाम भी सार्वजनिक किए जाएं: अरशद आज़मी
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर खाने-पीने की दुकानों, ढाबों और होटलों पर मालिकों का नाम लिखना अनिवार्य करने के आदेश पर राजनीति गर्म हो गई है। सरकार का तर्क है कि खाने-पीने की वस्तुओं में आपत्तिजनक सामग्री की मिलावट और जनता के स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन विपक्षी दलों ने इस निर्देश पर गहरी नाराजगी जाहिर की है।
यहां तक कि सामाजिक स्तर पर भी इस आदेश के खिलाफ व्यापक असंतोष और चिंता देखी जा रही है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने इस फरमान पर कड़ा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि सरकार ऐसे आदेशों के जरिए दलितों और मुसलमानों का रोजगार खत्म करने की कोशिश कर रही है।
गौरतलब है कि कांवड़ यात्रा के दौरान भी ढाबों और होटलों समेत खाने-पीने की सभी दुकानों पर मालिकों का नाम लिखना अनिवार्य किया गया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। लेकिन अब एक बार फिर सरकार के इस तरह के निर्देश जारी होने पर आलोचनाएं हो रही हैं। मामला सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है, बल्कि हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार भी आश्चर्यजनक रूप से योगी सरकार के नक्शे-कदम पर चलने की कोशिश कर रही है। उसने भी अपने यहां ऐसे ही आदेश जारी किए हैं।
इससे पहले, यूपी की योगी सरकार ने खाने-पीने की चीज़ों में कथित तौर पर थूक और पेशाब जैसी गंदी और अपवित्र वस्तुओं की मिलावट का बेतुका और उकसाऊ आधार पेश करते हुए दिशानिर्देश जारी करने का दावा किया और कहा कि ऐसी निंदनीय हरकतों को रोकने के लिए ही यह सख्ती दिखाई जा रही है।
सरकार के इस कदम पर समाजवादी पार्टी ने तीखी नाराजगी जताई और सवाल किया कि मिलावट खत्म करने और खाद्य पदार्थों के मानकों को बनाए रखने की कोशिशें समाज की भलाई के लिए जरूरी हैं, लेकिन ढाबा और रेस्तरां मालिकों के नाम और अन्य विवरण जाहिर करने की क्या जरूरत है? इससे किस उद्देश्य और हितों की पूर्ति करनी है?
योगी सरकार के इस आदेश की आलोचना में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि अब पुलिस पूरी राज्य के सभी दुकानदारों से पैसे वसूल करेगी और फर्जी मामले दर्ज करेगी। बीजेपी दलितों और पिछड़े वर्ग की दुकानें बंद कराना चाहती है और बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए ही इस तरह के आदेश जारी कर रही है।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने इस पर कहा कि अगर खाद्य पदार्थों की पवित्रता और मानक का मामला है तो उनमें मिलावट की रोकथाम के लिए सीधे और स्पष्ट रूप से संबंधित कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन अगर ढाबा और रेस्तरां मालिकों की सांप्रदायिक प्रोफाइलिंग के लिए यह कदम उठाया जा रहा है तो हम इसका कड़ा विरोध करेंगे।
मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरशद आज़मी ने एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और कहा कि ‘नाम का बोर्ड’ लगाने का निर्देश एक अनावश्यक कदम है क्योंकि हर दुकान का पहले से ही पंजीकरण होता है, जिसमें सभी जानकारी दर्ज होती है। उन्होंने आगे कहा कि अगर दुकानदारों को अपनी पहचान जाहिर करने की जरूरत महसूस हो रही है तो बीफ फैक्टरियां चलाने वालों के नाम भी सार्वजनिक किए जाएं, ताकि समान मानक बनाए रखे जा सकें।
अरशद आज़मी ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह निजता का मामला है और इस तरह के आदेश व्यापारियों के लिए और मुश्किलें पैदा करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि जनता धर्म या जाति के आधार पर खरीदारी नहीं करती, बल्कि जरूरत और गुणवत्ता को ध्यान में रखती है।
यह मामला सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं है, बल्कि हिमाचल की कांग्रेस सरकार भी योगी के नक्शे-कदम पर चलने की कोशिश कर रही है। राज्य के शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी ऐसा ही आदेश जारी किया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किया गया है।