केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच तनातनी
पिछले दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के कर्मचारियों, खासकर उच्च स्तर पर काम करने वाले और अहम पदों पर काम करने वाले, आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति के फैसले में दिल्ली में चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता को वैधता प्रदान किया था। यह फैसला कई मायनों में ख़ास था। खासकर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल के पर काट दिए और दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दरकिनार करने के लिए उनकी सभी नीतियों और हथकंडों को निष्प्रभावी कर दिया था।
सर्वप्रथम यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेक मामलों में निर्वाचित सरकारों के पक्ष में दिया गया, और राज्यपालों द्वारा संवैधानिक और वैधानिक शक्तियों की अवहेलना करने के निर्णय को अवैध घोषित करना था। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार को हटाने के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी प्रकाश डाला। दिल्ली सरकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी काफी मायने रखता है। जाहिर है, इस फैसले से केंद्र के विभिन्न राज्यों को बड़ी राहत मिली, खासकर उन राज्यों में जहां गैर-एनडीए,बीजेपी सरकारें सत्ता में हैं।
गैर-एनडीए,बीजेपी सरकारों ने, विशेष रूप आम आदमी पार्टी ने लगातार यह आरोप लगाया है के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को बाधित करने का प्रयास किया जाता है और राज्यपालों द्वारा निर्वाचित सरकारों को नीचा दिखाने, कामकाज में बाधा डालने, राजनीतिक निर्णयों में हस्तक्षेप करने और कानूनी और संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में बाधा डालने का प्रयास किया गया है।इसीलिए दिल्ली के मामले में केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार में सीधी टक्कर है।
सत्येंद्र जैन, जिनके स्वास्थ्य को देखते हुए उपचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दी है, और मनीष सिसोदिया कथित तौर पर वित्तीय अनियमितताओं में शामिल हैं और उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं। ये दोनों मंत्री मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी हैं। चूंकि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सीमा से लगे पंजाब में सरकार बनाई है, इसलिए बीजेपी को लगता है कि आम आदमी पार्टी आने वाले चुनावों में न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि नैतिक क्षेत्र में भी उसे बड़ी चुनौती दे सकती है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का सत्ता में होना पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का विषय है। जबकि भाजपा के लिए यह नाक की समस्या बन गई है। तमाम राजनीतिक और कानूनी पैंतरेबाजी के बावजूद दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी बीजेपी की परेशानी का कारण है।
हालांकि बीजेपी ने , सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिसमें आम आदमी पार्टी की सरकार को अफसरों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार मिला, दिल्ली सरकार से अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण की शक्तियों को बेअसर करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया। जाहिर है, यह एक बड़ा कदम था और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक और कानूनी रूप से केंद्र के ‘मनमाने’ दृष्टिकोण को चुनौती देने का फैसला किया है।
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के ग्रीष्मावकाश से एक दिन पहले जारी किया गया था और समय सिर्फ इसलिए था ताकि दिल्ली सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती न दे सके।
केंद्र सरकार ने अपनी शक्तियों और इस प्राधिकरण का उपयोग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना की घोषणा की है, हालांकि कमान मुख्यमंत्री को दी गई है, और उपराज्यपाल को किसी भी विवाद को सुलझाने का अधिकार दिया गया है। जाहिर है, इस प्राधिकरण की स्थापना ने एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल को वो शक्तियां दे दी हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनसे छीन ली गई थीं। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले को चुनौती दी है और सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई है।
केंद्र सरकार उक्त प्राधिकरण की स्थापना को एक मजबूत कानूनी रूप देना चाहती है और इस संबंध में संसद में एक विधेयक पेश करना चाहती है। भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच मतभेद और सत्ता खींचने का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन आज की बदलती परिस्थितियों में यह आवश्यक हो गया है कि,चुनी हुई सरकारों को और अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि जनता द्वारा चुनी गई सरकार स्वतंत्र रूप से अपने कर्तव्यों का पालन कर सके। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि दिल्ली कोई राज्य नहीं बल्कि भारत की राजधानी है और अगर केंद्र सरकार वंशाराम का प्रशासन किसी सहायक या सरकार को सौंप दे तो इससे कई तरह की दिक्कतें होंगी।


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