नीतीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह ने नई पार्टी का ऐलान किया
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के कद्दावर नेता आरसीपी सिंह ने अपनी नई ‘राजनीतिक पार्टी’ का ऐलान किया है, जिसे उन्होंने ‘आप सब की आवाज’ नाम दिया है। यह घोषणा आरसीपी सिंह के जनता दल (यूनाइटेड) से अलग होने के बाद हुई है। नई पार्टी का गठन ऐसे समय में हुआ है जब बिहार की राजनीति में हलचल और नए समीकरण बनने की चर्चा है।
जद(यू) से लंबे जुड़ाव और पार्टी में मतभेदों के कारण अलग होने के बाद आरसीपी सिंह ने नई पार्टी के जरिये जनता के लिए काम करने का संकल्प लिया है। पटना में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान उन्होंने पार्टी का ऐलान किया और पार्टी की विचारधारा, उद्देश्यों और लक्ष्यों पर विस्तृत जानकारी दी।
आरसीपी सिंह ने कहा कि ‘आप सब की आवाज’ का गठन जनता की वास्तविक समस्याओं को उठाने और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए किया गया है। उनका कहना है कि बिहार की राजनीति में एक नया विकल्प देना और बिहार के विकास को नई दिशा देना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। सिंह का कहना है कि उनकी पार्टी बिहार के हर नागरिक की आवाज बनेगी और उन्हें समानता और विकास के अवसर दिलाने का काम करेगी।
आरसीपी सिंह ने जदयू से अपने मतभेदों पर खुलकर बात की और बताया कि किस तरह से वह जनता दल यूनाइटेड के भीतर दबाव और सीमाओं का सामना कर रहे थे। उनका मानना है कि वर्तमान सत्ताधारी पार्टियां जनता के मुद्दों से भटक गई हैं और व्यक्तिगत स्वार्थों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। सिंह का दावा है कि उनकी नई पार्टी इस प्रकार की राजनीति से अलग है और लोगों को प्राथमिकता देने का वादा करती है।
आरसीपी सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी का एजेंडा विकास, रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं पर केंद्रित रहेगा। बिहार की जनता, खासकर ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर करना और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना उनकी प्राथमिकता होगी। ‘आप सब की आवाज’ पार्टी का नाम रखने के पीछे उनका यह संदेश है कि यह पार्टी वंचित और शोषित वर्ग की आवाज बनेगी, जो लंबे समय से उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
आरसीपी सिंह ने आगामी बिहार विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी की भूमिका के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अपनी जमीनी पकड़ को मजबूत करने के लिए विभिन्न जिलों में जनसभाओं और रैलियों का आयोजन करेगी। सिंह का कहना है कि वह किसी पार्टी से गठबंधन करने के बजाय जनता का समर्थन जुटाने पर अधिक ध्यान देंगे।