राजस्थान: क्या कांग्रेस एकजुट हो गयी है?

राजस्थान: क्या वाकई कांग्रेस एकजुट हो गयी है?

कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद पार्टी का मनोबल ऊंचा है। पार्टी का नेतृत्व भी सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाता नजर आ रहा है। कर्नाटक में, दो वरिष्ठ नेता, डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया आमने-सामने थे, लेकिन एक दूरदर्शी राजनेता की तरह, नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दोनों के बीच मतभेदों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

चुनाव जीतने से पहले प्रचार के दौरान खड़गे की निरंतरता और दूरदर्शिता ने काम किया। उन्होंने शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच के मतभेदों को आसानी से सुलझा लिया क्योंकि वे खुद कर्नाटक से थे, और जमीनी हालात से वाकिफ थे। खड़गे ने पार्टी के दोनों नेताओं के बीच के मतभेदों को पार्टी के चुनाव अभियान में बाधा नहीं बनने दिया और न ही किसी मंच पर उनके मतभेद जनता के सामने आ सके।

चुनाव जीतने के बाद जब राज्य सरकार के नेतृत्व की बात आई तो लगा कि कांग्रेस के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने जिस मेहनत और लगन से काम किया था, शायद वह मेहनत बेकार चली जाए, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने इन मतभेदों को दूर कर दिया। कांग्रेस की नई सरकार नमें चुनाव परिणाम आने के 36 घंटे के भीतर नेतृत्व और कैबिनेट के गठन पर अहम फैसले किए गए।

जब कर्नाटक नई सरकार बनाने की ओर बढ़ रहा था और नतीजे आने लगे थे, उसी समय सचिन पायलट का धरना शुरू हो गया जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार से भाजपा शासन के भ्रष्टाचारों की जांच करने का आग्रह किया। यह एक ऐसा चुनावी मुद्दा था जो सीधे तौर पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को प्रभावित और नुकसान पहुंचाने वाला था।

कई हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं कि अशोक गहलोत ने एक चालाक लोमड़ी की तरह अपनी सरकार को बचाने के लिए भाजपा के आंतरिक विभाजन का इस्तेमाल किया और वसुंधरा राजे की मदद से मध्य प्रदेश में भाजपा के अभियान को विफल कर दिया। राजस्थान में पिछले साढ़े चार साल से अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार शानदार ढंग से काम कर रही है।

इसमें कोई शक नहीं कि राजस्थान में पार्टी को खड़ा करने के लिए सचिन पायलट ने काफी मेहनत की। उनके उत्साह और करिश्मे ने जनता का दिल जीत लिया और कांग्रेस संगठन को मजबूत किया। यह कार्य इसलिए भी कठिन था क्योंकि राजस्थान में लंबे समय तक भाजपा का शासन रहा था और वसुंधराराजे जैसी चतुर राजनीतिज्ञ ने भाजपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व का निर्माण करते हुए तीन कार्यकाल पूरे किए थे।

आम कांग्रेस कार्यकर्ता का मनोबल कम था। हालाँकि, सत्ता से बेदखल होने में भाजपा सरकार का सत्ता विरोधी कारक भी था। लेकिन इन सबके बावजूद एक बात सच है कि अगर सचिन पायलट नहीं होते तो शायद इतनी बड़ी कामयाबी हासिल नहीं होती। आज स्थिति यह है कि 2020 से सचिन पायलट अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ कभी दबे तो कभी खुले तौर पर बयानबाजी कर रहे हैं।

2020 में बीजेपी ने उनके गुस्से और असंतोष को भुनाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही। सचिन पायलट ने इस बीच उपमुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया,और तब से गहलोत सरकार के साथ सीधे टकराव में हैं। यह स्थिति समय समाप्त होती दिख रही थी जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने दोनों नेताओं, सचिन पायलट और अशोक गहलोत को एकजुट होने और इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मना लिया।

सचिन पायलट को मध्य प्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी हश्र नजर आ गया है, जिसे प्रदेश नेतृत्व परेशान कर रहा है। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच कौन सा फॉर्मूला तय हुआ है, यह न तो पार्टी नेतृत्व ने बताया है, और न ही ये दोनों नेता बता पाए हैं।

कुछ दिनों पहले कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रवक्ता संजय कुमार झा ने एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने पार्टी के एक सच्चे और शुभचिंतक के रूप में सुझाव दिया था कि 2020 की उथल-पुथल से पहले दोनों नेताओं की जो स्थिति थी, अगर उसे बहाल कर दिया जाए तो वर्तमान में कांग्रेस के भीतर होने वाली इस धींगा मुश्ती को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

संजय झा का मकसद था कि सिद्धारमैया और शिवकुमार की तरह ये दोनों नेता, अपने मतभेद भुलाकर पार्टी को राजस्थान में जीत की ओर ले जाएं, जैसा कि उन्होंने कर्नाटक में किया था। राजस्थान में हालांकि स्थिति काफी अलग है और अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है।

लेकिन यह भी सच है कि अशोक गहलोत ने एक अच्छे प्रशासक की तरह सरकार चलाई है। उन्होंने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जो कांग्रेस पार्टी की सरकार को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। गरीबों के लिए चलाई जा रही योजना का असर इसके काम करने के खूबसूरत अंदाज में देखा जा रहा है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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