देश के युवाओं को हत्यारे बनाते ज़हरीले बयान

देश के युवाओं को हत्यारे बनाते ज़हरीले बयान

विकास और राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर सत्ता में आई सरकार के दस साल पूरे होने वाले हैं। पिछले नौ वर्षों ने देश के पूरे सामाजिक परिदृश्य को बदल दिया है। एकता, सौहार्द, भाईचारा, प्रेम, मानवता, गंगा जमुनी सभ्यता, साम्प्रदायिक सौहार्द जैसे तमाम उच्च नैतिक मूल्यों की जगह हर जगह नफरत ही नफरत है। यहां तक ​​कि प्रमाणिक परंपराएं भी बदल दी गई हैं। समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए सब कुछ किया जा रहा है, जिससे देश में भाईचारा और सौहार्द खत्म हो रहा है।

राष्ट्रवाद और देशभक्ति की पवित्र भावनाओं को निर्माण की बजाय विनाश की ओर मोड़ दिया गया है। सोशल मीडिया पर चल रहे जहरीले बयानों और अफवाहों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि हर कोई दूसरे व्यक्ति को अपना और अपने देश का दुश्मन मानने लगा है।

देश के नेताओं का कट्टर व्यवहार युवाओं में नफरत पैदा कर उन्हें देश की संपत्ति बनाने के बजाय हत्यारा और मुजरिम बना रहा है। इन युवाओं ने इसी को अपना कर्तव्य समझ लिया है कि वे अपने पसंदीदा शासकों से असहमत होने वाले किसी भी व्यक्ति को उम्र का भेदभाव किए बिना ख़त्म कर दें। 31 जुलाई की सुबह मुंबई से जयपुर जाने वाली ‘जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस’ में जो हुआ, वह उस नफरत का नतीजा था जो हमारे शासक युवाओं के मन में भर रहे हैं।

क्रूरता का जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें चार लोगों की हत्या करने के बाद आरपीएफ कांस्टेबल कोच में मौजूद लोगों को धमकाता नजर आ रहा है, और उसे यह कहते सुना जा सकता हैं कि भारत में रहना है तो मोदी, योगी कहना होगा। कमाल की बात तो यह है कि इस वॉयरल वीडियो में उसने जो कुछ कहा उसके इस बयान की प्रधानमंत्री कार्यालय या मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई निंदा भी नहीं की गई।

घटना के बारे में बताया जा रहा है कि सुबह 5:30 बजे जब ट्रेन विरार (पाल घर) और मीरा रोड (ठाणे) के बीच तेज गति से चल रही थी, तभी आरपीएफ कॉन्स्टेबल चेतन सिंह ने कथित तौर पर बी-5-कोच में पर कुछ यात्रियों से झगड़ा किया और उनसे बहस करने के बाद उनको अपने स्वचालित हथियार का निशाना बना लिया।

उसके सहयोगी सब-इंस्पेक्टर टीका राम मीना ने हस्तक्षेप किया और उसे शांत होने के लिए कहा, लेकिन चेतन सिंह ने नफ़रत और गुस्से में अंधे होकर अपने वरिष्ठ अधिकारी की भी बात नहीं मानी और अपने हथियार से उन पर और तीन अन्य यात्रियों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिससे टीका राम मीना और तीन अन्य यात्रियों की मौत हो गई। जिसमें दक्षिण मुंबई के 48 वर्षीय अख्तर अब्बास अली, नालासोपारा (पाल घर) के 50 वर्षीय अब्दुल कादिर मुहम्मद हुसैन और असगरी काई की मौके पर ही मौत हो गई।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में आरोपी चेतन सिंह हाथ में बंदूक लेकर यात्रियों को धमकाता नजर आ रहा है। वीडियो में एक यात्री का शव भी उसके पैरों के पास पड़ा हुआ दिख रहा है। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि घटना के बाद चेतन सिंह ने कोच में मौजूद अन्य यात्रियों को धमकाया। लेकिन किसी यात्री ने किसी तरह घटना का वीडियो बना लिया जिसमें आरोपी चेतन सिंह विपरीत दिशा में खड़ा नजर आ रहा है, और उसके हाथ में बंदूक है।

वीडियो में चेतन सिंह यह भी कहते सुनाई दे रहा है कि यह लोग पाकिस्तान से ऑपरेट करते थे। बाद में उसने कहा कि उसने उन्हें मार डाला। ऐसा नहीं है कि नफरत की कोख से जन्मी यह भयावह घटना भारत में पहली बार हुई है, इससे पहले भी ऐसी दर्जनों घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें नफरत से पीड़ित युवाओं ने धार्मिक और राकनीतिक आधार पर हत्या जैसे गंभीर अपराध किए हैं.जिसमें राजस्थान में अफ़ज़ारूल और कन्हैया की निर्मम हत्या शामिल है।

तथाकथित राष्ट्रवाद के नशे में चूर होकर किसी को देश का दुश्मन मानकर दूसरे नागरिकों खासकर दूसरे धर्मों को मानने वाले मुसलमानों की हत्या करना कोई मायने नहीं रखता, लेकिन इस घटना में पहली बार यह बात सामने आई है कि हत्यारे के हाथ में हथियार है, और उसकी जुबां पर मोदी और योगी का नाम भी था।

कहने का तात्पर्य यह नहीं है की उसे सरकार द्वारा प्रोत्साहन मिला लेकिन इतना अवश्य कहना है कि हर बात पर बुलडोज़र चलवाने वालों ने तुरंत इस आरपीएफ कांस्टेबल के घर पर बुलडोज़र क्यों नहीं चलवाया? अगर इस कांस्टेबल के घर भी बुलडोज़र चलता तो शायद भविष्य में कोई तरह का अपराध नहीं करता। अब तो देश का यह हाल हो गया है कि लोग ख्याति प्राप्त करने के लिए निर्दोषों की हत्या कर रहे हैं।

इस आरपीएफ कांस्टेबल ने नफरत और क्रोध में डूबकर जो घिनौना और मानवता को शर्मसार करने वाला कार्य किया और जो कुछ कहा वह भारत के सामाजिक सौहार्द और विनाश का प्रतिबिंब है।

यह आपदा कहीं बाहर से नहीं आई है, बल्कि इसके लिए जिम्मेदार उन राजनेताओं के बयान शामिल हैं, जो पिछले कुछ सालों से देश में जहर फैला रहे हैं। कोई लोगों को उनके कपड़ों से पहचानता है, तो कोई खुलेआम एक ख़ास वर्ग के लोगों की गैरमी निकाल कर उन्हें मई और जून के महीने में शिमला का एहसास कराने का ऐलान करता है। देश के अस्तित्व और नागरिकों की सुरक्षा के लिए अब जरूरी है कि ऐसे माहौल के खिलाफ अभियान चलाया जाए और राजनेताओं के जहरीले बयानों पर रोक लगाई जाए ताकि हमारे युवा हत्यारे और मुजरिम बनने के बजाय देश की संपत्ति बन सकें …

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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