जयपुर बम धमाके में बरी हुए आरोपियों को रिहा करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 29 मार्च को विस्फोट पीड़ितों और राजस्थान सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें जयपुर उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत में मौत की सजा पाए चार मुस्लिम युवकों को बरी किए जाने को लेकर चुनौती दी गई थी।
इस दौरान दो सदस्यीय खंडपीठ ने जहां एक ओर आरोपियों को जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया, वहीं दूसरी ओर जयपुर हाईकोर्ट द्वारा जांच एजेंसी पर की गई कठोर टिप्पणी पर रोक लगा दी. यह जानकारी जमीयत उलमाए हिंद की ओर से जारी विज्ञप्ति में दी गई है।
हालांकि, भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमानी ने अदालत से आरोपियों की जेल से रिहाई का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने अदालत को बताया कि आरोपियों पर बम विस्फोट जैसे गंभीर आरोप हैं.बम विस्फोटों में सैकड़ों लोगों की जान गई थी.अगर आरोपी जेल से छूटें तो वह देश छोड़कर भाग सकते हैं। सुनवाई के दौरान भारत के न्यायमूर्ति आर वेंकट रमानी ने आज अदालत से कहा कि उन्हें आरोपी शहबाज़ अहमद की रिहाई पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि उसे निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया है।
जस्टिस ओका ने कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगा सकते. आरोपियों को जेल से रिहा किया जाए,जेल से रिहाई के लिए उन पर कड़ी शर्तें लगाई जा सकती हैं, जिसमें पासपोर्ट जमा करना,रोजाना एटीएस पुलिस स्टेशन पर हाजिरी शामिल आदि शामिल है।
मौत की सजा से बरी हुए अभियुक्त सरवर आज़मी और मोहम्मद सलमान के लिए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लुथरा, रेबेका जॉन और सिद्धार्थ अग्रवाल पेश हुए, जबकि शहबाज़ अहमद, जिन्हें निचली अदालत और जयपुर उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था,आज अदालत में पेश हुए। जबकि जमीयत उलेमा (अरशद मदनी) कानूनी सहायता समिति की ओर से अधिवक्ता गौरव अग्रवाल और अधिवक्ता मुजाहिद अहमद पेश हुए।
एक तरफ जहां राज्य सरकार और बम विस्फोट पीड़ितों ने मौत की सजा से छूटे चार आरोपियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई है,वहीं निचली अदालत से बरी हुए शहबाज अहमद के खिलाफ भी याचिका दायर की गई थी ,जिस पर आज सुनवाई हुई।
गौरतलब हो कि जयपुर हाई कोर्ट ने हाल ही में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बम धमाके के आरोपी मुस्लिम युवकों सैफुर्रहमान अंसारी, अब्दुल रहमान अंसारी, मोहम्मद सरवर, मोहम्मद हनीफ आजमी, मोहम्मद सैफ शादाब अहमद और मोहम्मद सलमान शकील अहमद को आरोपों से बरी कर दिया था। इनमें से चार मुलज़िमों को न केवल मामले से बरी कर दिया गया बल्कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच करने का भी आदेश दिया गया था,जिन्होंने उन्हें झूठे मामले में फंसाया था।