एक राष्ट्र एक चुनाव: रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी

एक राष्ट्र एक चुनाव: रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी

नई दिल्ली: लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभा के सहित विभिन्न निकायों के एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति ने गुरुवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation One Election) पर आज अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दिया है। समिति ने देश भर में लोकसभा और विधानसभा एक साथ कराए जाने की सिफारिश की रिपोर्ट सौंपी है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को यह रिपोर्ट पूर्व राष्ट्रपति और समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने सौंपी। इस अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के पूर्व नेता रहे गुलाम नबी आज़ाद सहित सहित सहित समिति के अन्य सदस्य मौजूद थे।

पिछले साल सितंबर में गठित समिति को मौजूदा संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावनाएं तलाशने और सिफारिशें करने का काम सौंपा गया था। प्रस्तावित रिपोर्ट में लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एक एकल मतदाता सूची को लेकर कोई सिफारिश की गई है।

एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दें पर जहां भाजपा और उसके सहयोगी दल समर्थन में हैं वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इसका विरोध कर रहे हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके लोगों, कानूनी जानकारों, समाज के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वालों और राजनैतिक दलों से उनकी राय ली थी।

कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भी शामिल हैं।

समिति ने अपनी रिपोर्ट देने से पहले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों, उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों से मुलाकात की। इसने जनवरी में जनता से टिप्पणियाँ भी आमंत्रित की थी।जनवरी में एक बयान में, समिति ने कहा कि उसे 20,972 प्रतिक्रियाएं मिलीं, जिनमें से 81 प्रतिशत एक साथ चुनाव के पक्ष में थीं।

समिति को संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, आरपी अधिनियम, 1951 और उनके तहत बनाए गए नियमों में विशिष्ट संशोधनों का सुझाव देने के लिए कहा गया था। इसे यह जांचने का भी काम सौंपा गया था कि क्या संविधान में किसी भी संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

इस समिति में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी शामिल किया गया था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था कि यह समिति एक “दिखावा” है।

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