गुजारा भत्ते पर, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऐतराज जताया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महिलाओं के भरण पोषण पर एक बड़ी लकीर खींचते हुए कहा कि ऐसे मामलों में धर्म बाधा नहीं है। कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए भी भरण पोषण के लिए पति की जिम्मेदारी तय की। जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की डबल बेंच ने इस पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मुस्लिम महिला ही नहीं, किसी भी धर्म की महिला भरण पोषण की हक़दार है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत महिला मेंटेनेंस का केस पति पर डाल सकती है। इसमें धर्म रुकावट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने 1985 के शाह बानो बेगम मामले में दिये गए शीर्ष अदालत के ऐतिहासिक निर्णय की यादें ताजा कर दीं। इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की रविवार को नई दिल्ली में बैठक बुलाई गई है। बोर्ड ने इस मुद्दे को पहले ही 10 सदस्यीय कानून कमेटी को दे दिया है। संगठन के एक पदाधिकारी के अनुसार, वह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कानूनी सुझाव देगी, जिस पर 51 सदस्यीय शीर्ष कार्यकारी कमेटी में चर्चा होगी और सर्वसम्मति से आगे का निर्णय लिया जाएगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा है कि बोर्ड ने 3 प्रस्ताव पास किये हैं। पहला मुस्लिम महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 (वर्तमान में BNSS की धारा 144) के तहत गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऐतराज जताया है।
बोर्ड का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शरिया कानून से कॉन्फ्लिक्ट करता है। उन्होंने कहा कि मुसलमान शरिया कानून का पाबंद है। वो ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता जो शरिया से कॉन्फ्लिक्ट करता हो। सैयद कासिम रसूल इलियास ने के हवाले से कहा है कि “हमने ये महसूस किया है हिंदुस्तान में हिन्दुओं के लिए हिंदू कोड बिल है, मुसलमानों के लिए शरिया लॉ है। संविधान के आर्टिकल 25 में हमें अपने मजहब के अनुसार जिंदगी गुजारने की आजादी दी गई है, ये हमारा मौलिक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का जिक्र करते हुए मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा है कि सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले को ‘इंट्रेस्ट ऑफ वुमेन’ यानी औरतों की भलाई के लिए बताया है, जबकि हमारा ये मानना है कि कोर्ट का ये फैसला औरतों के लिए और मुसीबत खड़ी करेगा। उन्होंने तर्क दिया है कि अगर आदमी को तलाक के बाद भी सारी जिंदगी मेंटेनेंस देना होगा तो वो तलाक ही नहीं देगा, और रिश्तों में जो तल्खी आएगी उसकी वजह से जिंदगी भर औरत को भुगतना होगा। उन्होंने कहा है कि मु्स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमेटी ने बोर्ड को अथॉरिटी दी है कि लीगल कमेटी से बात कर इस फैसले को कैसे वापस लिया जा सकता है इस पर काम करे।


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