भूमि के कथित अवैध अधिग्रहण में सोरेन की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई सबूत नहीं: हाईकोर्ट
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कथित भूमि घोटाले के मामले में जमानत दी। यह फैसला 13 जून को सोरेन की जमानत याचिका के संबंध में आदेश सुरक्षित रखने के न्यायालय के फैसले के बाद आया। उन्हें शाम तक जेल से रिहाई मिल गई।
सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता ने कई करोड़ रुपये की जमीन का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने के लिए, फर्जी लेनदेन और जाली दस्तावेजों के माध्यम से रिकॉर्ड में हेरफेर करने की योजना चलाई थी। सोरेन को जनवरी में गिरफ्तार किया गया था। जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी रजिस्टर या राजस्व रिकॉर्ड में भूमि के कथित अवैध अधिग्रहण में सोरेन की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है।
पीठ ने कहा,
व्यापक संभावनाओं के आधार पर मामले का समग्र परिप्रेक्ष्य विशेष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से याचिकाकर्ता को रांची के शांति नगर, बारागैन में 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्जे के साथ-साथ “अपराध की आय” से जुड़ी हुई भूमि में शामिल नहीं मानता है। किसी भी रजिस्टर/राजस्व रिकॉर्ड में उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में याचिकाकर्ता की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई संकेत नहीं है।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) का यह दावा कि उसकी समय पर की गई कार्रवाई ने अभिलेखों में जालसाजी और हेराफेरी करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोका, इस आरोप की पृष्ठभूमि में अस्पष्ट कथन प्रतीत होता है कि भूमि पहले से ही याचिकाकर्ता द्वारा अधिग्रहित की गई और उस पर उसका कब्जा था, जैसा कि PMLA Act की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए कुछ बयानों के अनुसार है और वह भी वर्ष 2010 के बाद से।
ED ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए सोरेन पर राज्य की राजधानी में स्थित बारगेन अंचल में 8.86 एकड़ भूमि को अवैध रूप से अधिग्रहित करने के लिए मुख्यमंत्री के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। ED के वकील ने गवाहों की गवाही पेश की, जिन्होंने कथित तौर पर अवैध लेनदेन में सोरेन की संलिप्तता की पुष्टि की।
हाईकोर्ट में सिंगल बेंच के जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने सोरेन और अन्य आरोपियों को अवैध रूप से जमीन हासिल करने से रोक दिया, अस्पष्ट है। क्योंकि अन्य गवाहों ने कहा है कि सोरेन ने पहले ही जमीन हासिल कर ली थी।
ईडी का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने रिकॉर्ड में जालसाजी और हेरफेर करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोक दिया था, एक अस्पष्ट बयान प्रतीत होता है। जब इस आरोप की पृष्ठभूमि में विचार किया गया तो पता चला कि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी और याचिकाकर्ता के पास थी। वह भी वर्ष 2010 के बाद से मौजूद थी।
अदालत ने कहा ईडी जिस समय के इस मामले की जांच कर रही है, उस अवधि के दौरान सोरेन झारखंड में सत्ता में नहीं थे। कोर्ट ने कहा, “उस जमीन से कथित विस्थापितों के पास अपनी शिकायत के निवारण के लिए अधिकारियों के पास न जाने का कोई कारण नहीं था। अगर याचिकाकर्ता ने उस जमीन का अधिग्रहण किया था और उस पर कब्जा किया था जब याचिकाकर्ता सत्ता में नहीं था।”