सिंघम’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों का संदेश हानिकारक: न्यायमूर्ति गौतम पटेल

सिंघम’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों का संदेश हानिकारक: न्यायमूर्ति गौतम पटेल

कानून की सही प्रक्रिया की परवाह किए बिना त्वरित न्याय देने वाले एक हीरो कॉप की सिनेमाई छवि एक बहुत ही हानिकारक संदेश देती है। ‘सिंघम’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म का ज़िक्र कर बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने यह बातें कहीं।

पुलिस सुधारों के बारे में न्यायाधीश ने कहा कि प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक अवसर चला गया। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीश ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह को सलाम करते हैं, जिन्होंने पुलिस तंत्र के कामकाज के तरीके में सुधार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने यह भी कहा कि कानून प्रवर्तन मशीनरी में तब तक सुधार नहीं किया जा सकता है जब तक कि हम खुद में सुधार नहीं करते।

न्यायाधीश ने कहा कि जब जनता सोचती है कि अदालतें अपना काम नहीं कर रही हैं तो पुलिस के कदम उठाने पर वह जश्न मनाती है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि जब बलात्कार का एक आरोपी कथित तौर पर भागने की कोशिश करते समय मुठभेड़ में मारा जाता है तो लोग सोचते हैं कि यह न सिर्फ ठीक है, बल्कि इसका जश्न मनाया जाता है। उन्हें लगता है कि न्याय मिल गया है, लेकिन क्या सच में मिला है?’

बता दें कि सिंघम फिल्म 2011 में आई थी। रोहित शेट्टी द्वारा निर्देशित यह एक्शन फिल्म 2010 की तमिल फिल्म का रीमेक है और इसमें अजय देवगन एक पुलिस अधिकारी की मुख्य भूमिका में हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति गौतम पटेल ने भारतीय पुलिस फाउंडेशन के वार्षिक दिवस और पुलिस सुधार दिवस के अवसर पर शुक्रवार को एक समारोह में इसी फिल्म का ज़िक्र कर पुलिस सुधार की बात कही।

पुलिस सुधारों के बारे में न्यायाधीश ने कहा कि प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक अवसर चला गया। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीश ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह को सलाम करते हैं, जिन्होंने पुलिस तंत्र के कामकाज के तरीके में सुधार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने यह भी कहा कि कानून प्रवर्तन मशीनरी में तब तक सुधार नहीं किया जा सकता है जब तक कि हम खुद में सुधार नहीं करते।

न्यायाधीश ने कहा कि जब जनता सोचती है कि अदालतें अपना काम नहीं कर रही हैं तो पुलिस के कदम उठाने पर वह जश्न मनाती है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि जब बलात्कार का एक आरोपी कथित तौर पर भागने की कोशिश करते समय मुठभेड़ में मारा जाता है तो लोग सोचते हैं कि यह न सिर्फ ठीक है, बल्कि इसका जश्न मनाया जाता है। उन्हें लगता है कि न्याय मिल गया है, लेकिन क्या सच में मिला है?’

जस्टिस पटेल ने कहा, ‘फिल्मों में पुलिस न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करती है, जिन्हें विनम्र, डरपोक, मोटे चश्मे वाले और अक्सर बहुत खराब कपड़े पहने हुए दिखाया जाता है। वे अदालतों पर दोषियों को छोड़ देने का आरोप लगाते हैं। नायक पुलिसवाला अकेले ही न्याय करता है।

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