एथिक्स कमेटी द्वारा अपने निष्कासन के विरुद्ध महुवा सुप्रीम कोर्ट पहुंची
तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा ने अपनी संसद सदस्यता रद्द किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। उन्होंने तर्क दिया है कि एथिक्स कमेटी के पास उन्हें निष्कासित करने का अधिकार नहीं था और इस बात पर जोर दिया कि व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेने का कोई ठोस सबूत नहीं था। मोइत्रा ने हीरानंदानी और उनके पूर्व साथी जय अनंत देहाद्राई से जिरह की इजाजत नहीं दिए जाने पर भी उन्होंने नाराजगी जाहिर की।
8 नवंबर को महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट के बाद उनके निष्कासन का प्रस्ताव सदन में पेश हुआ था। मोइत्रा की सदस्यता रद्द करने का प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हो गया था। वोटिंग के दौरान सदन में जमकर हंगामा हुआ। ANI के अनुसार, इस दौरान मोइत्रा को सदन के अंदर बोलने की इजाजत नहीं दी गई थी। इसके बाद उन्होंने लोकसभा के बाहर अपना बयान पढ़ा था।
उन्होंने कहा, यह विडंबना है कि जिस एथिक्स कमेटी को एक नैतिक दिशा-निर्देश के रूप में बनाया गया था, आज उसका दुरूपयोग किया जा रहा है।”
अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए मोइत्रा ने इस फैसले की तुलना ‘कंगारू अदालत’ द्वारा सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को, विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है। असम के कछार जिले में 1974 में जन्मी मोइत्रा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयीं।
न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ में निवेश बैंकर रहीं मोइत्रा ने राहुल गांधी की ‘‘आम आदमी का सिपाही’’ पहल से प्रेरित हो कर राजनीति का रुख किया। उन्होंने 2009 में कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल होने के लिए लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग करियर त्याग दिया। कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई में तैनात की गयीं मोइत्रा ने पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ निकटता से काम किया।