मदरसा संचालकों ने ‘मदरसा एक्ट’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया

मदरसा संचालकों ने ‘मदरसा एक्ट’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया

‘यूपी मदरसा एजुकेशन बोर्ड एक्ट 2004’ को संविधान के अनुसार करार देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुंबई और आसपास के उलेमा और मदरसों के संचालकों ने स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि न्यायपालिका अपनी निष्पक्षता बनाए रखेगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सकारात्मक बताते हुए उलेमा काउंसिल के महासचिव मौलाना महमूद दरियाबादी ने कहा, “हम इस फैसले का स्वागत करते हैं, लेकिन हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था में जो फैसले निचली अदालतों से आ रहे हैं, उन्हें देखकर यह सवाल उठता है कि आखिर इन मामलों को सुप्रीम कोर्ट तक जाने की जरूरत क्यों पड़ रही है?”

उन्होंने आगे कहा, “बहुत से मामले ऐसे होते हैं जिन पर निचली अदालतों या उच्च न्यायालय में ही उचित फैसले आ सकते हैं। इससे समय और खर्च भी बचता है, लेकिन कुछ फैसले ऐसे आ रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट जाए बिना काम नहीं बन रहा है। कई मामले अभी भी विभिन्न अदालतों में लंबित हैं, जो विशेषकर मुसलमानों से जुड़े हैं और हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर ध्यान देगा और इन मामलों में न्यायालयों में सकारात्मक रवैया अपनाया जाएगा।”

मौलाना सैयद मोईनुद्दीन अशरफ उर्फ मोईन मियां ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है जिससे सत्य और असत्य का अंतर स्पष्ट हो गया है।” उन्होंने यह भी कहा कि “धार्मिक मदरसे हमारी कौम की धरोहर हैं। यह कौम के पिछड़ने का कारण नहीं, बल्कि प्रगति और अस्तित्व का माध्यम हैं, जिन्हें नुकसान पहुंचाकर सरकार कौम के भविष्य को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह कोशिश नाकाम हो गई।” मोईन मियां के अनुसार, “इस फैसले से जनता का न्यायपालिका पर विश्वास और मजबूत हुआ है और हमें उम्मीद है कि मुसलमानों के जो संवेदनशील मामले अदालतों में लंबित हैं, उन पर भी जल्द ही निष्पक्षता से फैसला सुनाया जाएगा।”

मौलाना मोहम्मद जहीद खान कासमी, उप-संचालक, मदरसा मिराज-उल-उलूम ने कहा, “उत्तर प्रदेश में 500 से 700 मदरसे ही ऐसे हैं जो सरकार से पूरी ग्रांट लेते हैं। इनके अलावा, 11 से 12 हजार मदरसे ऐसे हैं जो सरकार को अपनी पूरी जानकारी तो देते हैं, लेकिन सरकारी सहायता नहीं लेते। सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, वह उन मदरसों के लिए है जो सरकारी सहायता नहीं लेते और अपने पाठ्यक्रम के मामले में स्वतंत्र हैं। इस फैसले से ऐसे मदरसों के छात्रों की आगे की पढ़ाई में सुधार होगा और मदरसों का स्वतंत्र पाठ्यक्रम भविष्य में बरकरार रहेगा।”

मुफ्ती सैयद मोहम्मद हुदैफा कासमी, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र (महमूद मदनी) के नाजिम-ए-तंजीम और मदरसा सिराज-उल-उलूम भिवंडी के शिक्षक ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में जो मामला था, वह केवल उन मदरसों के संबंध में था जो पंजीकृत हैं और सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं, लेकिन सभी मदरसों को निशाने पर रखा गया था। यदि ये लोग यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को निशाना बनाने में सफल हो जाते, तो अन्य मदरसों को भी बड़ा नुकसान होता, जो दंगों में होने वाले नुकसानों से भी कई गुना अधिक होता।”

उन्होंने आगे कहा, “असल में इनकी नजरें कहीं और थीं और निशाना कहीं और। अल्लाह का शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने न केवल मदरसा एक्ट को वैध करार दिया, बल्कि सरकार को भी यह सवाल उठाने के लिए फटकार लगाई कि सिर्फ मदरसों पर ही ध्यान क्यों दिया जा रहा है, सरकारी सहायता प्राप्त करने वाले अन्य धर्मों के शैक्षिक संस्थानों के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा?”

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