कैश कांड के दोषी, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के पास ‘इस्तीफ़ा’ एकमात्र विकल्प
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के मामले में सरकार उन्हें हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। ऐसे में संसद में महाभियोग से बचने के लिए न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के पास इस्तीफ़ा देना ही एकमात्र विकल्प बचा है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और बर्खास्तगी की प्रक्रिया से परिचित अधिकारियों ने बताया कि यदि किसी सदन में जस्टिस वर्मा अपना बचाव करते हुए कह दें कि वे इस्तीफ़ादे रहे हैं, तो उस मौखिक घोषणा को भी उनका इस्तीफ़ा माना जा सकता है।
यदि वे स्वेच्छा से इस्तीफ़ा देते हैं तो उन्हें रिटायर्ड हाईकोर्ट जज के रूप में पेंशन और अन्य सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन अगर उन्हें संसद के जरिए हटाया जाता है, तो वे इन सुविधाओं से वंचित हो जाएंगे। संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत, हाईकोर्ट का जज अपने हस्ताक्षरित पत्र द्वारा राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा दे सकता है। इसके लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती। जज इस्तीफे में भविष्य की कोई तिथि दे सकता है और उस दिन से पहले इस्तीफ़ा वापस भी ले सकता है।
जज को हटाने का दूसरा रास्ता संसद के जरिए महाभियोग है। हाल ही में भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी। यह सिफारिश एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट पर आधारित थी, जो सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों द्वारा गठित की गई थी।
सीजेआई खन्ना ने वर्मा को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव लाया जा सकता है। राज्यसभा में इसके लिए कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर और लोकसभा में 100 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है। जजेज़ (इंक्वायरी) एक्ट 1968 के अनुसार, प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित सदन के अध्यक्ष या सभापति एक तीन सदस्यीय समिति गठित करते हैं जो आरोपों की जांच करती है। इसमें सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट के जज, किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित कानूनविद शामिल होते हैं।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि इस मामले में स्थिति थोड़ी भिन्न है क्योंकि सीजेआई द्वारा गठित आंतरिक समिति पहले ही अपनी रिपोर्ट दे चुकी है। उन्होंने कहा कि प्रक्रिया का पालन तो किया जाएगा, लेकिन यह भी देखना होगा कि पहले से की गई जांच को किस तरह समाहित किया जाए। रिजिजू ने कहा कि “जजेज़ इंक्वायरी एक्ट के तहत समिति का गठन करना ज़रूरी है या नहीं, इसका निर्णय स्पीकर लेंगे।” उन्होंने कहा कि आंतरिक समिति की रिपोर्ट एक “द्वितीयक विषय” है, मुख्य उद्देश्य महाभियोग प्रस्ताव लाना है।


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