कश्मीर फाइल्स को लेकर जेएनयू फिर चर्चा में, विवादों से पुराना नाता
विवादास्पद फिल्म द कश्मीर फाइल्स को लेकर देशभर में चर्चाओं का बाजार गर्म है। राजनीतिक दलों में खींचतान और बयानबाजी के बाद फिल्म को अच्छी पब्लिसिटी मिल गई है जिसका बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को लाभ भी मिल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री तक इस फिल्म की तारीफ कर चुके हैं और भाजपा शासित कई राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया है। कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर बनी फिल्म में बहुत सी चीजों को लेकर विवाद जारी है। अब इस विवाद में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी का नाम भी शामिल कर लिया गया है।
कश्मीर फाइल्स से जेएनयू का नाम जोड़ते हुए कुछ लोगों का कहना है कि फिल्म में जो विश्वविद्यालय दिखाया गया है वह जेएनयू ही है। विश्वविद्यालय को टारगेट करते हुए फिल्म में जानबूझकर उसका नाम बदला गया है। पल्लवी जोशी ने इस फिल्म में जिस महिला प्रोफेसर का किरदार निभाया है वह जेएनयू की प्रोफेसर राधिका मेनन से प्रभावित बताया जा रहा है। इस फिल्म के अनुसार राधिका मेनन ने स्टूडेंट्स को आजाद कश्मीर की लड़ाई के लिए उभारने का काम किया था।
एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए अनुपम खेर ने कहा कि फिल्म में सच दिखाया गया है। हमने उस यूनिवर्सिटी का नाम बदल दिया जहां हमने आजादी के गीत सुने थे। जहां हमने सुना था अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है। हमने वहां सब को सुना, तो उसे फिल्म में दिखाने में क्या गलत है ? आप बताइए क्या टुकड़े टुकड़े गैंग शब्द कहां से आया?
याद रहे कि दुनिया भर में अपने विषयों और रिसर्च को लेकर अलग पहचान रखने वाला देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू पिछले कुछ समय से विवादों के घेरे में रहा है। 2016 में जेएनयू परिसर में हुए एक विवाद के बाद एक विशेष विचारधारा की ओर से सोशल मीडिया पर शट डाउन जेएनयू ट्रेंड कराया गया था।
जेएनयू में सबसे बड़ा विवाद 9 फरवरी 2016 को सामने आया जब भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की तीसरी वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें कथित रूप से भारत विरोधी नारे लगाए जाने के आरोप लगाए गए थे। इस कार्यक्रम के बाद एबीवीपी और अन्य छात्र गुट आपस में भिड़ गए थे।
11 फरवरी को कुछ टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम के वीडियो टेलीकास्ट में देश विरोधी नारे लगाने के आरोप जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथी उम्र खालिद पर लगाए गए थे, हालांकि छात्र इस तरह के नारे लगाने के आरोपों से इनकार करते रहे हैं।
2019 में भी फीस बढ़ोतरी को लेकर जेएनयू में छात्रों ने आंदोलन शुरू किया था। छात्रों ने कैंपस से लेकर संसद तक पैदल मार्च निकाला था। इस दौरान पुलिस और छात्रों के बीच झड़पें हुई। 2020 में एक बार फिर जेएनयू उस समय चर्चा में आया जब 5 दिसंबर को नकाबपोश लोगों ने जेएनयू के हॉस्टल में घुसकर छात्रों से मारपीट की जिसके गुनहगार अभी तक पकड़े नहीं जा सके हैं।
बता दें कि 2005 में जेएनयू कैंपस में कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों और अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन किए जाने से नाराज छात्रों ने भारत सरकार के खिलाफ नारेबाजी की थी।


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