गुजरात दंगों को इतिहास के सबसे बड़े दंगे के रूप में पेश करना ग़लत: पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि गुजरात में 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों को लेकर एक झूठी कहानी गढ़ने का प्रयास किया गया था और केंद्र की सत्ता में बैठे उनके राजनीतिक विरोधी चाहते थे कि उन्हें सजा मिले, लेकिन अदालतों ने उन्हें निर्दोष साबित किया।
2002 के दंगों में अपनी सरकार की संलिप्तता के आरोपों को खारिज करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि बार-बार की न्यायिक जाँच में उन्हें निर्दोष पाया गया। पीएम ने कहा, ‘न्यायपालिका ने इस मामले की गहन जांच की। हमारे राजनीतिक विरोधी केंद्र में सत्ता में थे, फिर भी वे आरोपों को साबित नहीं कर सके। अदालतों ने दो बार स्थिति की समीक्षा की और हमें पूरी तरह निर्दोष पाया। असली दोषियों को सजा मिली है।’
पीएम मोदी ने पिछले 22 वर्षों में गुजरात में बड़े दंगों के नहीं होने को अपनी सरकार की उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा, ‘हमने तुष्टिकरण की राजनीति से हटकर योगदान की राजनीति अपनाई। आज गुजरात पूरी तरह शांत है और विकसित भारत के सपने में योगदान दे रहा है।’ यह दावा उनकी उस रणनीति को दिखाता है जिसमें विकास को सांप्रदायिक विभाजन से ऊपर रखा गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि 2002 के दंगे गुजरात में पहली बड़ी हिंसा नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘यह धारणा कि ये सबसे बड़े दंगे थे, ग़लत सूचना है। 2002 से पहले गुजरात में 250 से अधिक दंगे हो चुके थे। 1969 के दंगे तो छह महीने तक चले थे। पतंग उड़ाने या साइकिल की टक्कर जैसी मामूली बातों पर भी हिंसा भड़क उठती थी।’
उन्होंने दावा किया कि इन दंगों को राज्य के इतिहास में सबसे बड़े दंगे के रूप में पेश करना ग़लत है, क्योंकि गुजरात में दशकों से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होती रही हैं। पीएम मोदी का यह बयान न केवल उस दौर की घटनाओं को नए नज़रिए से पेश करने की कोशिश करता है, बल्कि मोदी के नेतृत्व और गुजरात के विकास मॉडल पर भी बहस को जन्म देता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर एक नया नज़रिया पेश किया है, जिसमें ऐतिहासिक हिंसा, न्यायिक जांच और विकास पर जोर है। उनके बयान का संकेत है कि वह अपने नेतृत्व की ताक़त को दिखाना चाहते हैं।