अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलता रहेगा, परंतु किसी के दबाव में नहीं: मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को दिए अपने संबोधन में आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और समाज सेवा की महत्ता पर विस्तार से विचार रखे। उन्होंने कहा कि जितना विरोध संघ का हुआ है, उतना किसी भी संगठन का नहीं हुआ, लेकिन स्वयंसेवकों ने हमेशा समाज के प्रति सात्विक और शुद्ध प्रेम दिखाया है। यही कारण है कि अब विरोध की धार कम हो गई है। अमेरिकी टैरिफ विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता देश के लिए जरूरी है। स्वदेशी अपनाने का अर्थ विदेशों से संबंध तोड़ना नहीं है, बल्कि यह है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और लेन-देन बराबरी और स्वतंत्रता की शर्तों पर हो, किसी दबाव में नहीं।
आरएसएस प्रमुख ने स्वयंसेवकों को प्रेरित करते हुए कहा कि नेक लोगों से दोस्ती करें और अच्छे कामों की सराहना करें, चाहे वे विरोधियों ने ही क्यों न किए हों। गलत करने वालों के प्रति कठोरता नहीं, बल्कि करुणा दिखाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ में कोई इंसेंटिव या प्रोत्साहन नहीं मिलता, बल्कि कई हतोत्साहन हैं, लेकिन फिर भी स्वयंसेवक समाज की निस्वार्थ सेवा करते हैं क्योंकि इससे उन्हें आत्मसंतोष और अलग तरह का आनंद मिलता है।
हिंदुत्व की परिभाषा समझाते हुए मोहन भागवत ने कहा कि इसका आधार सत्य और प्रेम है और भारत का लक्ष्य विश्व कल्याण है। उन्होंने कहा कि धर्म का प्रसार होना चाहिए, लेकिन धर्मांतरण कभी धर्म का उद्देश्य नहीं रहा। धर्म एक शाश्वत सत्य है, जो सभी के जीवन को दिशा देता है।
उन्होंने आर्थिक विकास के नकारात्मक पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह पर्यावरण के लिए विनाशकारी है और गरीब-अमीर के बीच की खाई को और चौड़ा कर रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को केवल मीडिया रिपोर्टों के आधार पर आंकना गलत होगा क्योंकि देश में जितनी बुराई है, उससे चालीस गुना ज्यादा अच्छाई मौजूद है।
भागवत ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच की दूरियों को कम करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि हिंदू विचारधारा वसुधैव कुटुम्बकम की है और इस्लाम भी उसी सत्य की ओर ले जाता है, इसलिए दोनों समाजों को करीब लाने के लिए दोनों ओर से प्रयास आवश्यक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी परिस्थिति में कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उपद्रवी ऐसे मौकों का फायदा उठाते हैं।
उन्होंने अंत में कहा कि भारत का बने रहना दुनिया के लिए अनिवार्य है, क्योंकि धर्म और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने वाला दूसरा कोई देश नहीं है। भारत को विश्व गुरु की भूमिका विनम्रता


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