भारत ने यूरोप को आईना दिखाया, यूक्रेन ही क्यों एशिया की ओर भी देखो
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को लगभग 2 महीने हो चुके हैं। पश्चिमी जगत, नाटो और अमेरिका के उकसावे में आकर रुस से टकराने वाले यूक्रेन को लेकर पश्चिमी जगत की ओर से रूस के खिलाफ जारी प्रोपेगेंडा अपने चरम पर है।
अमेरिका से लेकर यूरोपीय देश लगातार भारत पर यूक्रेन के समर्थन एवं रूस के विरुद्ध एकजुट होने के लिए दबाव बना रहे हैं। भारत सरकार ने किसी भी तरह का दबाव ना मानते हुए अभी तक तटस्थ नीति अपनाई है।
यूक्रेन संकट पर भारत के रुख की आलोचना किए जाने पर पलटवार करते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि पश्चिमी शक्तियां एशिया के सामने आने वाली चुनौतियों से बेखबर है। अफगानिस्तान में पिछले साल की घटनाएं एवं क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
जयशंकर ने कहा कि यूरोप के लिए यूक्रेन संकट एक चेताने वाला पल हो सकता है ताकि उसे यह भी पता लगे कि एशिया में क्या हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में एशिया दुनिया का आसान भाग नहीं रहा है। भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि हम युद्ध की तत्काल समाप्ति चाहते हैं और कूटनीति एवं आपसी बातचीत के रास्ते पर लौटने का आह्वान करते हैं। यूक्रेन संघर्ष पर हमारा रुख बहुत स्पष्ट है हमने इसे साफ तौर पर व्यक्त भी किया है। हम लड़ाई को रोकने की बात पर ज़ोर देते हैं और दोनों पक्षों से कूटनीति और बातचीत के रास्ते पर लौटने का आग्रह करते हैं।
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि आप ने यूक्रेन के बारे में बात की थी। हमें याद है 1 साल से भी कम समय पहले अफगानिस्तान में क्या हुआ था। जहां नागरिक संस्थाओं को अपने फायदे के लिए दुनिया ने उसी के हाल पर छोड़ दिया था।
बता दे कि भारतीय विदेश मंत्री ने यह बयान नार्वे और लक्जमबर्ग के विदेश मंत्रियों के साथ-साथ स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में दिया है। जयशंकर ने कहा कि हम स्पष्ट रूप से पिछले 2 महीने से यूरोप की बहुत सारी दलीलें सुन रहे हैं कि यूरोप में जो घटनाक्रम हो रहा है एशिया को उसकी चिंता करनी चाहिए क्योंकि यह एशिया में भी हो सकता है।
भारतीय विदेश मंत्री ने यूरोपीय देशों को आईना दिखाते हुए कहा कि जब एशिया में नियम आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जा रही थी तब यूरोप भारत को और अधिक व्यापार करने की सलाह दे रहा था। हम आपको कम से कम ऐसी सलाह तो नहीं दे रहे हैं। हमने आपको सलाह दी है कि यूरोप को एशिया की ओर भी देखना चाहिए। इसकी सीमाएं स्थिर नहीं है।