केजरीवाल को जमानत दी तो वह मुख्यमंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर बेहद अहम टिप्पणी की है। ईडी की तरफ़ से दलील दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वह अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देता है, तो वह मुख्यमंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकते क्योंकि इसका अन्य मुद्दों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। हालाँकि, इसने यह भी कहा कि वह एक मुख्यमंत्री हैं और कोई आदतन अपराधी नहीं।
अदालत ने जमानत का विरोध कर रही ED से कहा कि चुनाव चल रहे हैं और केजरीवाल मौजूदा मुख्यमंत्री हैं। चुनाव 5 साल में सिर्फ एक बार आते हैं। अदालत ने केजरीवाल से कहा कि हम आपको जमानत दे देते हैं तो आप ऑफिशियल ड्यूटी नहीं करेंगे। हम नहीं चाहते कि आप सरकार में दखलअंदाजी करें। अगर चुनाव नहीं होते तो अंतरिम जमानत का सवाल ही नहीं उठता था।
सुप्रीम कोर्ट ने आख़िरकार इस बात को समझा कि लोकसभा चुनाव के दौरान किसी राष्ट्रीय पार्टी के मुखिया और मुख्यमंत्री को चुनाव प्रचार और चुनाव में अपनी भूमिका निभाने से नहीं रोका जा सकता है। अगर लोकतंत्र के इस मूल स्वभाव को नज़रअंदाज़ किया जाता कि चुनाव में भागीदार सभी प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को समान अवसर दिए जाने चाहिए तो निश्चित रूप से भविष्य के लिए अप्रिय परिस्थितियों की बुनियाद मज़बूत होती।
आज भी सिर्फ़ और सिर्फ़ विपक्ष के नेता ही सेलेक्टिव तरीक़े से जाँच एजेंसियों के चंगुल में हैं जबकि भ्रष्टाचार के आरोपी जो सत्ता पक्ष से हैं आज़ाद हैं। जांच एजेंसियों से ऐसे भ्रष्टाचारी बच भी निकलते हैं जब विपक्ष से सत्तापक्ष की ओर निष्ठा का परिवर्तन कर लेते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद की गयी। इतना ही नहीं, केजरीवाल की गिरफ्तारी जिस शराब घोटाले में हुई है उसमें उनका नाम दो साल बाद जोड़ा गया।
अरविंद केजरीवाल जमानत पर छूटेंगे तो इसका व्यापक प्रभाव (Cascading Effect) पड़ सकता है। ईडी की यह दलील अजीबोगरीब है कि अरविंद केजरीवाल को जमानत के दौरान मुख्यमंत्री का अधिकार नहीं होना। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर हामी भरी। बड़ा सवाल यही है कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री का अधिकार किसने दिया है?
केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- हम किसी फाइल पर साइन नहीं करेंगे। शर्त है कि LG किसी भी काम को इस आधार पर ना रोकें कि फाइल पर साइन नहीं है। ऐसा कुछ नहीं बोलूंगा, जो नुकसान पहुंचाने वाला हो।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री और आम आदमी में फर्क किया जाना सही नहीं है। राजनेताओं के लिए अलग कैटेगरी ना बनाएं। जनता के बीच गलत संदेश जाएगा। लंच के बाद जस्टिस खन्ना ने कहा- फिलहाल हम देखते हैं कि दलीलें खत्म होती हैं या नहीं। अगर नहीं तो परसों (9 मई) की डेट देंगे। अगर संभव नहीं हुआ तो अगले हफ्ते की तारीख देंगे।