कैसे पूरा होगा विपक्षी एकता का सपना
विपक्षी एकता का सवाल इस देश में सबसे कठिन सवालों में से एक है। ऐसे में अब तक लोगों को जो कड़वे अनुभव हुए हैं, वह किसी से छिपे नहीं हैं। जब भी केंद्र में विपक्षी दलों के गठबंधन की सरकार बनी है, उसका अंत अच्छा नहीं रहा है। इसलिए लोगों को इस प्रयोग पर ज्यादा भरोसा नहीं है, लेकिन मौजूदा स्थिति में कोई दूसरा विकल्प नहीं है, इसलिए इस पर काम शुरू कर दिया गया है।
एक बार फिर सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर बीजेपी को शून्य पर आउट करने की योजना बनाई जा रही है। बीजेपी को जीरो पर आउट करने का विचार जितना सुखद है उतना ही परेशान करने वाला भी। किसी ने सही कहा है कि
विपक्षी नेताओं को एकजुट करने का विचार मेंढ़कों को तौलने जैसा है। इसका मुख्य कारण यह है कि विपक्ष का हर नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना देखता है, जबकि देश में प्रधानमंत्री की केवल एक ही कुर्सी होती है। इतने सारे नेताओं का एक कुर्सी पर बैठना संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री की कुर्सी एक ही व्यक्ति को दी जानी चाहिए। वह ‘एक’ कौन होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है जिस पर विपक्षी गठबंधन अक्सर बहस करता रहा है। मुझे याद है कि जनता दल के दौर में जब नेताओं के बीच खींचतान चल रही थी, तब देश के सबसे बड़े कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण ने एक अनोखा कार्टून बनाया था। इस कार्टून में एक मीटिंग में प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर खूब चर्चा हो रही है, तभी अचानक एक शख्स मीटिंग में आकर कहता है कि उसे विपक्षी गठबंधन का फॉर्मूला मिल गया है। यानी पांच प्रधानमंत्री, तीन डिप्टी प्रधान मंत्री, आदि। यह वह दौर था जब वीपी सिंह कैबिनेट में देवीलाल देश के पहले उपप्रधानमंत्री बने थे।
यह तो गुजरे जमाने की बातें हैं, लेकिन इस बार विपक्ष को एकजुट करने का नीतीश कुमार का उपक्रम सफल होने की संभावना ज्यादा दिख रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार सभी विपक्षी दलों से पिछड़ रही है। जिस तरह से केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई और ईडी को विपक्षी नेताओं के पीछे लगा दिया गया है, उससे पता चलता है कि यह सरकार देश में ‘विपक्ष मुक्त’ लोकतंत्र चाहती है। यही कारण है कि हर मोर्चे पर विपक्ष को परेशान करने की कोशिश की जा रही है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिलहाल मिशन 2024 पर तेजी से काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी गठबंधन स्थापित करना है। उन्होंने इस संबंध में हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की है। इससे पहले वह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से भी मुलाकात कर चुके हैं। निःसंदेह नीतीश कुमार एक गंभीर राजनेता हैं और जेपी आंदोलन के एकमात्र नेता हैं जो फिलहाल व्यवहारिक राजनीति में सक्रिय हैं।
इस आंदोलन में उनके साथी रहे लालू प्रसाद यादव अपनी बीमारी के कारण व्यावहारिक राजनीति से हट गए हैं, जबकि जेपी आंदोलन के दो नेता शरद यादव और राम विलास पासवान अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह भी सच है कि कई बार बीजेपी से हाथ मिलाने के कारण नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि कुछ हद तक धुंधली जरूर हुई है, लेकिन फिलहाल वह जिस भूमिका में नजर आ रहे हैं, उनकी इस भूमिका पर यकीन करना मुश्किल नहीं लग रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है, लेकिन उन्होंने खुद इस विचार को खारिज कर दिया है।
नीतीश कुमार के साथ ताजा बैठक के बाद कोलकाता में ममता बनर्जी और लखनऊ में अखिलेश यादव ने बीजेपी को हराने और एकजुट होकर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए विपक्षी दलों का एक मोर्चा बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। जाहिर है, आम चुनाव में सिर्फ एक साल बचा है और अगर अभी से इसकी तैयारी नहीं की गई तो बहुत देर हो जाएगी।इस सक्रियता का लक्ष्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में लोकसभा की एक-तिहाई सीटें जीतना है।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है, जहां 42 लोकसभा सीटें हैं, जबकि बिहार से 40 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं। इस दृष्टि से ये तीनों प्रांत महत्वपूर्ण हैं। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ विपक्षी गठबंधन के विभिन्न पहलुओं पर डेढ़ घंटे तक सार्थक चर्चा की। दोनों ने विपक्षी दलों के लिए एक मोर्चा बनाने की वकालत की और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट होकर तैयारी करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
इसके बाद नीतीश कुमार ने लखनऊ में अखिलेश यादव से एक घंटे तक बातचीत की। बाद में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने विपक्षी गठबंधन की मुहिम में अपना समर्थन देने का ऐलान किया। जाहिर है यह खबर उन सभी लोगों के लिए एक स्वागत योग्य खबर है जो बीजेपी की राजनीति से तंग आ चुके हैं और देश में नए बदलाव का सपना देख रहे हैं। लेकिन सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं बदलता। इसके लिए व्यावहारिक संघर्ष एवं सहयोग आवश्यक है। इस देश में विपक्षी गठबंधन जिन अनुभवों से गुजरा है, उसमें लोगों की आशंकाएं भी सही हैं।
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्षी गठबंधन का आधार क्या होगा? कुछ क्षेत्रीय दल गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन की बात करते हैं, जिससे विपक्ष के विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। कांग्रेस अपने तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी राष्ट्रीय पहचान आज भी बरकरार है। कांग्रेस के बिना विपक्ष की एकता बेमानी है। यही कारण है कि तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी ने भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय गठबंधन में शामिल होने पर लचीलेपन के संकेत दिए हैं। हालांकि अब तक वह गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस तीसरे मोर्चे की वकालत करती रही है।
हालाँकि, इस मामले में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और नवीन पटनायक की दिशा अभी भी स्पष्ट नहीं है। पिछले एक महीने में नवीन पटनायक के अलावा कम्युनिस्ट पार्टियों समेत जितने भी नेताओं से नीतीश कुमार ने मुलाकात की है, उनमें से किसी तरफ़ से भी विपक्षी गठबंधन के लिए कोई बाधा नहीं है। सभी ने एकजुट होकर बीजेपी खिलाफ सहमति जताई है। नीतीश की कोशिशों को न सिर्फ ममता और अखिलेश बल्कि राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल ने भी सराहा है। अब नीतीश कई और नेताओं से मुलाकात करेंगे।
अगला पड़ाव इन सभी की संयुक्त बैठक है, जो काफी अहम होगी और इस बैठक में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी। बैठक में न्यूनतम कार्यक्रम, सीट वितरण और नेता के चुनाव पर आम सहमति बनाने पर चर्चा होगी। जाहिर है, इन मुद्दों को सुलझाना आसान नहीं होगा और भविष्य भी इसी पर निर्भर करेगा। विपक्ष के पास ज्वलंत मुद्दों की कोई कमी नहीं है।
महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती आर्थिक असमानता, सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक विवाद, नफ़रत जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे सीधे लोगों से जुड़े हैं और मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को आकर्षित करते हैं। यह कितना सफल होगा और यह सत्तारूढ़ दल की रणनीति का मुकाबला कैसे करेगा। विपक्ष को इकट्ठा करना मौजूदा हालात में एक बैनर के नीचे रहना सबसे जरूरी है। इसमें नेता को अपने अहंकार का त्याग करना होगा, तभी सकारात्मक परिणाम मिलेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।


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