ज्ञानवापी मस्जिद केस: मुस्लिम पक्ष की अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट में मंज़ूर
सुप्रीम कोर्ट ज्ञानवापी जामा मस्जिद प्रबंधन समिति की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाने की मांग वाली याचिका को सुनवाई योग्य बताया है। समिति ने मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष उठाया। पीठ इस पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई और इसे मस्जिद समिति की अन्य याचिकाओं के साथ मिलाने का आदेश दिया।
बता दें कि मस्जिद प्रबंधन समिति की कई अर्जी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। पिछली कई सुनवाइयों में समिति ज्ञानवापी मस्जिद के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति, चिह्नित स्थल की कार्बन डेटिंग और पूजा स्थलों की सुरक्षा के आलोक में विरोधी पक्षों की याचिकाओं की सुनवाई की मांग दोहराती रही है।
गौरतलब है कि पिछले साल 19 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 में दायर उस याचिका के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की दलीलों को खारिज कर दिया था, जिसमें ज्ञानवापी जामिया मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाने की मांग की गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद का ‘धार्मिक चरित्र’ सिर्फ कोर्ट ही तय कर सकता है।
कोर्ट ने मस्जिद समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर पांच याचिकाओं को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने आगे कहा था कि पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम के आलोक में जिला न्यायालय में दायर मामला प्रतिबंधित नहीं है।
मस्जिद प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की पीठ को बताया कि यह याचिका 1991 में दायर याचिका के खिलाफ है जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार्य घोषित किया है। इसके अलावा हाई कोर्ट के अन्य आदेशों के खिलाफ भी याचिकाएं दायर की गई हैं लेकिन इसे आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया।
हिंदू पक्ष की ओर से पेश वकील ने कहा कि पहले सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद पीठ ने इसे मस्जिद समिति की अन्य याचिकाओं के साथ विलय करने का फैसला किया। गौरतलब है कि वाराणसी की जिला अदालत ने 31 जनवरी को ज्ञान वापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा की अनुमति दी थी।
मस्जिद समिति ने फैसले को चुनौती देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने जिला अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील भी दायर की। हालाँकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिला अदालत के फैसले को बरकरार रखा। समिति ने पहले सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि असली मुद्दा याचिकाओं की स्वीकार्यता का है और पूजा स्थल अधिनियम के अनुसार, इन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की जा सकती है।
समिति ने इस बात पर जोर दिया था कि हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार्य नहीं है, इसलिए मुस्लिम पक्ष की लंबित याचिकाओं पर सुनवाई की जानी चाहिए। ऐसे में मस्जिद प्रबंधन समिति और देश के मुसलमानों की निगाहें अब पूजा स्थलों के संरक्षण कानून पर टिकी हैं। इस कानून पर सुनवाई में देरी के कारण उप-अदालतें अपने स्तर पर एकतरफा फैसले दे रही हैं, जिससे विवाद बढ़ रहा है।