शिवसेना विवाद में पूर्व राज्यपाल का निर्णय पक्षपाती: सुप्रीम कोर्ट
महाराष्ट्र में तीन साल पुराने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन ने एकनाथ शिंदे द्वारा शिवसेना में तख्तापलट के बाद सत्ता खो दी। बाग़ी खेमे ने पिछले साल जून में भाजपा के साथ नई सरकार बनाई। तब से ठाकरे और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ‘असली शिवसेना’ के रूप में मान्यता के लिए लड़ रहे हैं। शिवसेना में उद्धव बनाम शिंदे की लड़ाई पर सुनवाई में उद्धव ठाकरे खेमे को सुप्रीम कोर्ट से आज राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पर तीखे सवालों की झड़ी लगा दी।
विश्वास मत के राज्यपाल के आह्वान पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा कि उनको किसी भी ऐसे क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जो सरकार के गिरने का कारण बनता है। अदालत ने पूछा कि सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? उन्होंने तत्कालीन राज्यपाल के रवैये को पक्षपाती क़रार दिया।
सुप्रीम कोर्ट शिंदे सरकार की नींव पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें तर्क दिया गया है कि शिंदे और 15 अन्य विद्रोहियों को विश्वास मत के समय अयोग्य घोषित कर दिया गया था। मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि एक राज्यपाल को सावधानी से शक्ति का प्रयोग करना चाहिए और इस बात से अवगत होना चाहिए कि विश्वास मत के लिए बुलाने से सरकार गिर सकती है।
पिछले महीने चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह सौंप दिया था। इधर, चुनाव चिह्न सौंपे जाने के चुनाव आयोग के फ़ैसले को चुनौती दी गई है और इस मामले में आयोग ने आज जवाब दायर कर अपने फ़ैसले को सही क़रार दिया है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, ‘वे तीन साल तक साथ रहे। उन्होंने तीन साल तक कांग्रेस और एनसीपी का साथ निभाया। तीन साल के खुशहाल बंधन के बाद रातों-रात क्या हो गया?’
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने कहा, “राज्यपाल को खुद से यह सवाल पूछना होगा- ‘आप लोग तीन साल से क्या कर रहे थे? अगर चुनाव होने के एक महीने बाद यहा होता और वे अचानक भाजपा को दरकिनार कर कांग्रेस में शामिल हो जाते, तो यह अलग बात होती।
तीन साल आप एक साथ रहते हैं। और अचानक एक दिन 34 का समूह कहता है कि असंतोष है…।’ संविधान पीठ ने बार-बार पूछा कि फ्लोर टेस्ट का आधार क्या था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया, ‘गवर्नर का विश्वास मत वह है जहाँ सदन में बहुमत हिल जाता है। यह इंगित करने के लिए कुछ भी कहाँ था?’
जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि विद्रोहियों ने उद्धव ठाकरे में विश्वास खो दिया है तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘पार्टी में असंतोष अपने आप में राज्यपाल को विश्वास मत बुलाने का औचित्य नहीं ठहराता है।’ सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल इस बात से बेखबर नहीं हो सकते कि तीन दलों के गठबंधन में असहमति सिर्फ एक में होती है।