रुद्रप्रयाग में “गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित” के पोस्टर से अल्पसंख्यकों में डर और आक्रोश

रुद्रप्रयाग में “गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित” के पोस्टर से अल्पसंख्यकों में डर और आक्रोश

उत्तराखंड: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कई गांवों में हाल ही में लगाए गए “गैर-हिंदुओं और रोहिंग्या मुसलमानों का प्रवेश वर्जित” वाले पोस्टरों ने प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के शासन वाली इस राज्य में इन पोस्टरों के माध्यम से स्पष्ट संदेश दिया गया है कि गैर-हिंदू समुदाय, खासकर मुस्लिम और रोहिंग्या मुसलमानों का क्षेत्र में स्वागत नहीं किया जाएगा। इन पोस्टरों ने न केवल अल्पसंख्यक समुदायों में भय का माहौल पैदा किया है, बल्कि सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों के बीच भी व्यापक आलोचना का कारण बने हैं।

चमोली विवाद से जुड़ा मामला
यह मामला ऐसे समय में उभरा है जब पिछले सप्ताह चमोली जिले में एक मुस्लिम युवक पर एक स्थानीय महिला के साथ कथित यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने सड़कों पर उतरकर मुसलमानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन से आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। प्रशासन ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इसके बावजूद यह मामला और गहराता गया।

चमोली की घटना की चिंगारी अब रुद्रप्रयाग के ग्रामीण इलाकों तक फैल चुकी है, जहां सौनप्रयाग गांव सहित कई अन्य गांवों में “गैर-हिंदू” और “रोहिंग्या मुसलमानों” के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर लगा दिए गए। इन पोस्टरों में साफ तौर पर चेतावनी दी गई है कि अगर गांव में गैर-हिंदू या रोहिंग्या मुसलमान प्रवेश करते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस घटना ने अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुसलमानों, में गुस्सा और डर दोनों को बढ़ा दिया है। रुद्रप्रयाग के गांवों में लगे इन पोस्टरों से स्थानीय मुस्लिम समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है। कई मुस्लिम परिवार अब गांव छोड़ने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं उनके खिलाफ हिंसक कार्रवाई न हो जाए। हालांकि, पुलिस ने इसकी सूचना मिलते ही तत्काल पोस्टर को हटवा दिया है। इसके साथ ही पुलिस ने पोस्टर लगाने वालों को कठोर कार्यवाई की चेतावनी भी दी है।

एमआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के उत्तराखंड राज्य अध्यक्ष नीर काज़मी ने इस स्थिति पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) से मुलाकात की और एक सप्ताह के भीतर ठोस कार्रवाई की मांग की है। काज़मी ने चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने इस मुद्दे पर शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो उनकी पार्टी पुलिस के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेगी।

पुलिस की प्रतिक्रिया और कार्रवाई
इस मामले में उत्तराखंड पुलिस के प्रवक्ता दिनेश भट्ट ने कहा है कि पुलिस ने गांव वालों और स्थानीय समुदायों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए बातचीत शुरू कर दी है। भट्ट ने यह भी कहा कि “यदि किसी भी प्रकार से माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की गई, तो पुलिस सख्त कार्रवाई करेगी।” उन्होंने यह भी पुष्टि की कि पोस्टरों को लेकर पुलिस स्थिति पर नजर रख रही है और इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के प्रयास कर रही है।

राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द्र पर सवाल
इस घटना ने राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द्र को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा की है और इसे प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक हिस्सा बताया है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि वह ऐसे मामलों को बढ़ावा दे रही है, जो सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहे हैं।

रुद्रप्रयाग और चमोली की घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है। ऐसी घटनाएं न केवल स्थानीय शांति को भंग करती हैं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक एकता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इन मुद्दों से निपटने के लिए क्या कदम उठाता है, ताकि राज्य में शांति और सौहार्द्र बनाए रखा जा सके।

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