चुनावी बांड असंवैद्यानिक, एसबीआई चुनावी बांड जारी करना बंद करे: सुप्रीम कोर्ट
चुनावी बांड (Electoral bond) की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना बड़ा फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की तमाम दलीलें खारिज करते हुए चुनावी बांड को असंवैधानिक करार दिया और तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। अब एसबीआई (जिसके जरिए चुनावी बांड जारी होते थे) को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को बताना है कि किस पार्टी को चुनावी बांड से कितना चंदा मिला। और चुनाव आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर इसे प्रकाशित करना होगा।
भारत के चीफ जस्टिस ने कहा- कंपनी अधिनियम में संशोधन (कॉर्पोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति) असंवैधानिक है। चीफ जस्टिस ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) चुनावी बांड जारी करना बंद करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन राजनीतिक दलों ने जो बांड अब तक नहीं भुनाए हैं, उन्हें वापस करना होगा। राजनीतिक दलों को चुनावी बांड की रकम खरीदार के खाते में लौटानी होगी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा- ”संविधान केवल इसलिए आंखें नहीं मूंद लेता क्योंकि इसके दुरुपयोग की संभावना है। हमारी राय है कि काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है।”
अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बड़े चंदे को गोपनीय रखना असंवैधानिक है। यह सूचना के अधिकार का हनन है। इसके लिए कंपनी एक्ट और आईटी एक्ट में किए गए बदलाव भी असंवैधानिक हैं।छोटे चंदे की बात करना उचित नहीं है, लेकिन बड़ी राजनीतिक फंडिंग की जानकारी होना जरूरी है। हर चंदा हित साधने के लिए नहीं है। किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव उनकी निजता का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बड़े चंदे की जानकारी को छुपाया जा सके।
इससे पहले तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद पिछले साल 2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अहम है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि, चुनावी बांड से जुड़ी राजनीतिक फंडिग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है।