तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं: सुप्रीम कोर्ट

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में घोषणा की है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं। यह निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले में आया है, जिसमें कोर्ट ने महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को मजबूत करने का प्रयास किया है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत देशभर में किया जा रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपने जीवन-यापन और आर्थिक सुरक्षा के लिए अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त कर सकती हैं। इस फैसले को महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

क्या है पूरा मामला ?
यह मामला एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर आधारित था, जिसने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की मांग की थी। पहले की अदालतों में यह मुद्दा मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवादास्पद बना रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी समान अधिकार की हकदार हैं और उन्हें आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 और 21 महिलाओं को समानता और जीवन का अधिकार प्रदान करता है। मुस्लिम महिलाओं को भी इन अधिकारों का पूर्ण लाभ मिलना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि तलाकशुदा महिलाओं को उनके जीवन-यापन के लिए गुजारा भत्ता मिलना आवश्यक है ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।

प्रतिक्रिया और प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के जीवन में एक नया सवेरा लाएगा और उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगा। कई विधिक विशेषज्ञों ने भी इस फैसले की सराहना की है और इसे भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। यह फैसला न केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए बल्कि सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है। इस फैसले से महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा और वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी।

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